शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

सावधानी हटी , दुर्घटना घटी

भारतीय फिल्मे कभी कोई जागृति पैदा नही करती । वो केवल कमाई करती है । आपको यदि ऐसा लगता है कि इससे सामाजिक चेतना जागृत होती है तो ये ठीक वैसा ही भ्रम है जैसे किसी पुरूष को वेश्यागमन के समय ऐसा लगे कि स्त्री उसके प्रेम मे आकण्ठ डूबी हुई है । ये क्षणिक उन्माद है और इसका मूल आधार है - अर्थोपार्जन ।


करोड़ों भारतीयों के लख़्तेजिगर, तथाकथित यूथ आइकॉन अर्थात शाहरूख, सलमान और आमिर खान द्वारा अभिनीत मल्टीप्लेक्सों मे करोडो की कमाई करने वाले फिल्मो के सुदर्शन चक्रो को सडक किनारे हस्त चलित दुकान अर्थात हाथ ठेले पर इन यूथ आईकानो के असली औकात के हिसाब से बीस बीस रूपये मे बेचता एक नवयुवक अपने परिवार के उदर तृष्णा को शांत करने के उपक्रम मे निरंतर लगा हुआ है । 

(अंग्रेजी माध्यम मे जीवन यापन करने वाले सज्जन सुदर्शन चक्र के नाम से भ्रमित ना हो, हिन्दी मे DVD  को शायद सुदर्शन चक्र ही कहा जायेगा।)

 
कानून के हिसाब से पाईरेसी का ये अवैध धंधा उसके रक्षको की विश्राम स्थली अर्थात सिटी कोतवाली के सामने ही निर्बाध रूप से चल रहा है । कोतवाल साहब भी अपने महकमे के मूल मंत्र “विथ यू, फॉर यू, आल्वेस फॉर यू”  के नैतिक बन्धन मे बँधे होने के कारण ठेले वाले नवयुवक “इस्माईल बजरंगी” को अपना दिव्य सूक्ष्म संरक्षण प्रदान कर रखा है जिससे वह संवैधानिक कष्टो के मानसिक संताप से मुक्त हो कानून के आर्थिक उन्नति में अपना योगदान दे सके ।

यद्यपि भगवान सदैव भावना के ही भूखे होते है, लेकिन फिर भी भक्त अपनी सकुशलता और तरक्की के लिए हफ्ते मे एक दिन भगवान के सरकारी निवास मे मत्था टेककर अपनी पूरी श्रद्धा से भोग प्रसाद अर्पित कर कृतज्ञता प्रकट करता है । अपनी इसी प्राचीन दिव्य संस्कृति को अक्षुण रखने की नीयत से कोतवाल साहब ने भी इस महान धार्मिक परम्परा को सामाजिक परम्परा मे रूपांतरण कर अपने कार्यक्षेत्र मे लागू किया है ।

इस्माईल बजरंगी भी कोतवाल साहब के इस सामाजिक परम्परा मे पूर्ण आस्था रख सप्ताह मे एक दिन जाकर कानून के रक्षको को संवैधानिक कष्टो के मानसिक संताप से मुक्त रखने के लिए निर्धारित भोग लगाकर अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है । हालाँकि कुछ असंतुष्ट और विध्नसंतोषी नास्तिक बुद्धजीवियो द्वारा इस पुनीत कर्म को “हफ्ता वसूली” जैसे घृणित शब्दो से कलंकित करने का कुत्सित प्रयास निरंतर किया जाता रहा है।

कोतवाली से थोड़ी ही दूरी पर सड़क के दूसरी तरफ बनारसी पान मन्दिर पर हमारी नियमित उपस्थिति बिल्कुल उसी प्रकार होती जैसे किसी मौलवी साहब की मस्जिद में । दुकान के सामने खड़े भर हो जाने से अधर श्रृंगार की सामग्री तैयार हो जाती । कुछ देर वहीं बौध्दिक जुगाली करने के पश्चात हम अपने जीविका उपार्जन के श्रम हेतु निर्धारित केन्द्र की ओर प्रस्थान करते। इसी पान मन्दिर से जरा बाजू हटकर सड़क किनारे इस्माईल बजरंगी सुदर्शन चक्र का ठेला लगाता था ।

आप ठेले वाले नवयुवक का नाम इस्माईल बजरंगी होने से जरा चकित होंगे। लाजमी भी है, ये उसका असली नाम नहीं है । उसका असली नाम तो शायद किसी को पता नहीं पर हर रोज सुबह अखाड़े में जाने वाला यह हनुमान भक्त विषम परिस्थितियों में भी सदैव मुस्कुराता रहता इसलिए लोग इसे इस्माईल बजरंगी कहते हैं।

25 फरवरी को हमारा निजी शहीद दिवस होता है। कर्सिव राईटिंग में पढ़ने लिखने वाले लोग इसे मैरिज एनवर्सरी जैसा कुछ कहते है। 12 वर्ष पहले हम इसी दिन कुछ लोगों के बहकावे में आकर खुद ही जानते बूझते अपनी आजादी से हाथ धो बैठे थे। चूँकि हम ऐसे क्षेत्र बस्तर के निवासी हैं जो नक्सलवाद की छत्रछाया में फल फूल रहा है और वहाँ शहीदी सप्ताह मनाने का रिवाज है । अत: परम्परानुसार हम भी अपने शहीदी सप्ताह में अपने बासी खून में उबाल लाने के उद्देश्य से “ये देश है वीर जवानों का” , “दिल दिया है जाँ भी देंगे” टाईप के देशभक्ति गीतों वाले सुदर्शन चक्र हेतु इस्माईल बजरंगी की सेवा लेने का निश्चय किया।

इसी प्रयोजनार्थ हम अपनी फटफटी पर अर्धविराजमान होकर बनारसी पान मन्दिर के सामने जुगाली करते हुए इस्माईल बजरंगी के ठेले को काफी देर से निहार रहे थे । काफी सभ्रांत दिख रहे एक सज्जन को ठेले पर अकेले काफी देर से कई सुदर्शन चक्र परखने के बाद भी मानसिक संतुष्टि नही मिल पा रही थी । उनके इस उफापोह को समझने और उनके सभ्रांत होने की भ्रांति मिटाने के उद्देश्य से हम भी ठेले के समीप पहुँच गये। सभ्रांत सज्जन हमें अपने समीप पाकर जरा असहज हुए जा रहे थे । उसी वक्त जरा दूर खड़ी कार की खिड़की से एक महिला की आवाज आई – सुनो जी, अगर नही मिल रहा है तो चलो, दूसरी जगह मिल जायेगी ।

पता नही उन्हे महिला का दबाव था या खुद को सभ्रांत दिखाने की असहजता, पर हडबड़ी मे उन्होने भयाक्रांत होकर इस्माईल से धीमे स्वर में पूछा - क्यूँ वो वाली सीडी नही है क्या ?

इस्माईल बोला – कौन सी ? नीली वाली ?  फिर उनसे मौन सहमति पाकर पूछा – इंग्लिश या देशी ?

उसने कहा – नई वाली कुछ है ?

अमूमन मुझे इंग्लिश और देशी के सम्बन्ध मे केवल इतना ही मालूम था कि ये शराब ठेको की दो अलग अलग मान्यता प्राप्त सरकारी किस्मे है । सीडी के बारे में पहली बार सुना ।

इस्माईल ने ठेले के नीचे झोले मे कुछ बगैर लेबल वाली दो कोरी सीडी निकाल कर उन्हे दिया । उन्होने उसे 100 रूपये देकर कहा – प्रिंट तो साफ सुथरी है ना ?

इस्माईल बोला – एकदम साहब , पसन्द न आये तो मुँह पर फेंक कर चले जाना ।

सज्जन के जाने के बाद हमने इस्माईल से पूछा – अबे इस्माईल, तू मुझे दो बात बता ? पहली बात तो ये कि तू पिक्चर वाली सीडी बीस रूपये मे बेचता है और ब्लेंक सीडी 50 रूपये मे और दूसरी ये कि ब्लेंक सीडी मे प्रिंट साफ सुथरी होने का क्या मतलब है ?

 इस्माईल नई कविता का गुमनाम कवि निकला ।
उसने बिल्कुल साम्यवादी कवि सा गंभीर चेहरा बनाकर कवितानुमा ज्ञान पेला

भाई साहब, लगता है शहर मे आप नये आये 
इसलिए ऐसी नासमझी दिखाये 
इन ब्लेंक साफ सुथरी सीडी की बिल्कुल वैसी ही हैं अदायें
जैसे पॉश कालोनी की सम्भ्रांत दिखने वाली अमीरजदा महिलायें 
बाहर से कोरी,  साफ– सुथरी,  जहीन
लेकिन अन्दर मामला एच डी क्वालिटी रंगीन 
दोनो को समझना है तो अपनी हैसियत बढाईये
सीडी को प्लाज्मा टीवी पर और उन्हे अपने फार्म हाऊस मे बुलाईये
रिकार्डेड और लाईव मे फर्क भूल जायेंगे
ऐसा भी हो सकता है
जो टीवी मे दिख रही हो उसे ही अपने बिस्तर पर पायेंगे
बोलिये भाई साहब बालीवुड पिक्चर वाली सीडी चाहेंगे
या आप भी साफ सुथरी प्रिंट वाली ब्लेंक सीडी ही ले जायेंगे



हम उसके कड़वे शास्त्रीय तर्क से घबरा गये और जिस तरह आखिर मे उसने हमे लपेटा उससे कुछ हडबडाते हुए कहा - आपके पास कोई देशभक्ति गीत वाली सीडी हो तो बताना ।

इस्माईल बोला – साहब , अब हमको पक्का यकीन हो गया है । आप शहर मे ही नही इस देश मे ही नये आये हो । आज 20 फरवरी है, देशभक्ति तो 27 जनवरी को ही आऊटडेटेड हो गई । उसकी डिमाण्ड अब अगस्त के दूसरे सफ्ताह मे आयेगी । हाँ अगर आपको सही मे देशभक्ति के गीत वाली सीडी चाहिए तो देखता हूँ यदि स्क्रेप मटेरियल मे मिल गया तो कल मुफ्त मे ले जाना । लेकिन देशभक्ति ज्यादा ही उछाल मार रही हो तो नेट से डॉऊनलोड कर लेना ।

फिर उसने तंज किया - साहब यहाँ देशभक्ति हॉलिडे है, लाईफस्टाईल नही।

तभी एक कूल डूड  अपनी बाईक का गला दबाते हुए जबरिया रूका और लगभग चिल्लाकर कहा – हल्ल्लो अंकल, हनी सिंग का कोई लेटेस्ट रिलीज है क्या ?

इस्माईल ने अपने सर को क्षैतिज के समानांतर हिलाते हुए जवाब दिया और मेरी ओर देखकर कहा – चार बोतल वोदका , काम इनका रोज का ।

हमने कहा – इस्माईल भाई , इसमे इनकी कोई गलती नही है । दरअसल ये पैदा नही किये गये । इनके माँ-बाप तुम्हारी ये साफसुथरी वाली ब्लेंक सीडी देखकर इंज्वाय कर रहे थे और ये गैरइरादतन जबरिया ही बीच मे टपक पडे ।

बडे बुजुर्ग यूँ ही नहीं कह गये है - सावधानी हटी – दुर्घटना घटी 

बुधवार, 28 जनवरी 2015

बिन बुलाया मेहमान



अपनी ही मूर्खता के कारण अग्रिम व्यवस्था न होने के कारण ग़णतंत्र दिवस की सोमवारीय सुरामयी संध्या के जबरिया मंगलवारीय व्रत  बनने से क्षुब्ध देर रात टीवी पर ओबामा मामा की हरकतो को मजबूरी मे निहारते हुए हम लक्ष्मी वाहन की तरह जाग रहे थे और भोला शंकर हमारे मानसिक जख्मो पर बडे प्यार से ऐसे नमक लगा रहा था जैसे गाँधी जी ने 1930 मे इर्विन को लगाया था ।  

गणतंत्र दिवस पर "खरीदी बिक्री पर पाबंदी है, आत्मसात करने में नहीं "  इस संवैधानिक व्यवस्था में आस्था रखने वाले गण-मान्य नागरिक, भविष्य की विषम परिस्थितियों को पूर्व से भाँपकर सूखा संकट से निपटने की उचित व्यवस्था करने में विशेष योग्यता रखते हैं ।

ऐसे ही विशेष समुदाय के एक सज्जन को उनके ही सहधर्मियो देर रात हाईवे ढाबे से हैप्पी बर्थडे ऑफ रिपब्लिक इंडिया का बाकायदा जश्न मनाकर चतुष्चक्र वाहन से उनके घर के सबसे करीब वाले चौराहे पर किसी तरह सकुशल धरावतरण करवा दिया । नगर निगम द्वारा शहर की तंग गलियों को अतिक्रमण से बचाने के उद्देश्य से बनी नालियों मे खुद को आत्मसात होने से बचाते हुए वे अपने निजी पैरो के माध्यम से आटो पायलेट मोड मे बडी बारीकी से सड़क की चौड़ाई मापते हुए घर की ओर चले आ रहे थे ।


रात के सन्नाटे को चीरती हुई अपनी चाल से तालमेल बिठाती हुई उनकी लरजती आवाज के माध्यम से एक मधुर गीत हमारे कानों के भीतर किसी बांग्लादेशी घुसपैठिए की तरह चली आ रही थी ।

मेरे चन्दा
, मेरे अनमोल रतन 
तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूँ

हमने भोला शंकर को पूछा – अबे भोला , जरा खिडकी से झाँक कर तो देख , ये आधी रात को कौन कमबख्त लहराते हुए गाना गा रहा है ?

भोला ने बिना देखे ही तपाक से जवाब दिया – महाराज गाने के बोल और आवाज की मदहोशी से तो कोई आम आदमी ही लगता है ।

हमने कहा – वो कैसे ?

भोला बोला - क्योकि महाराज , इतनी रात को नशे मे भी चन्दे की बात तो कोई झाड़ू छाप आदमी ही कर सकता है ।

हम खुद ही खिडकी से झाँककर देखे तो मोफलर चाचा निकले । हमने पूछा- क्यूँ चचा , आज गणतंत्र दिवस मे नहीं गये का ?

चचा बिफरकर बोले – हमको तो किसी ने बुलाया ही नही जी , सब मिले हुए है ।

हमने कहा – अरे तो बिन बुलाये ही चले जाते । किसी का बारात मे थोडे ही धरना देने जाना था । अपने देश का त्यौहार है, खुशी का मौका है , लोकतंत्र किसी कि बपौती थोड़े न है, सबका बराबर का हक है ।


चचा बोले – वो तो ठीक है जी , लेकिन इतनी कड़ी सुरक्षा मे हम बिना पास घुसते कैसे ?  

हमने कहा - अरे चचा , पेपर मे त छापा रहा कि रेड कारपेट मे एक देशी कुकुर भी घुस गया था । उ हिसाब से आप भी आराम से घुस सकते थे । वैसे भी कही भी घुस कर चाटने मे कुकुर से पहिला हक आप-का बनता है ।

चचा बोले – यही तो भ्रष्टाचार है । इस बात पर हम धरना देंगें जी , आंतरिक लोकपाल के कोर्ट में मानहानि का दावा करेंगे ।

हमने पूछा – किसकी मानहानि का दावा करेंगे चचा ?

चचा कुछ कहते इससे पहले ही भोला शंकर बोल पड़ा – कुकुर की, और किसकी ?

हमने पूछा  - कैसे ?

भोला बोला – अरे महाराज , मोफलर चचा के बदले में कुकुर को घुसायेंगे तो उसका मानहानि हुआ कि नई ? 

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

दीवाली का दीवाला

कल दीपावली की रात थी । इस उम्मीद में पूरे घर मे रोशनी कर मेन गेट तक खुला इसलिए रख छोड़ा था कि लक्ष्मी जी डाईरेक्ट घर के अन्दर घुस जायें । आजकल पूरे देश में मोदी जी की लहर चल रही है, उनके धोखे में ही लक्ष्मी जी आ जायें इसलिए उनके स्टाईल का ही हैण्डलूम वाला ड्रेसकोड भी अपना लिया और इंतजार में बाहर स्टूल में बैठा हुआ था ।

 अब लक्ष्मी जी आतीं उससे पहले कालोनी के सारे बच्चे आ धमके । समवेत स्वर में बोले – अंकल जी, राकेट जलानी है , हमारी मदद करो ।

मैनें कहा – बेटा, राकेट चलाने की उम्र तुम लोगों की है । हमारी उम्र के लोगों को तो “अनार” और “फुलझड़ियों” का ही शौक होता है । हाँ कभी-कभी मौका मिले तो “आयटम बम” की इच्छा हो जाती है ।
आजकल के बच्चे बड़े इंटिलिजेंट होते हैं । तत्काल हमारी मनोभावना को समझ गये । बोले – अंकल जी , मन में ज्यादा लड्डू मत फोड़िये, डायबिटीज का खतरा होता है । आपको चलाने के लिए नहीं, व्यवस्था बनाने में मदद चाहते हैं ।

निकट भविष्य में होने वाली बेईज्जती को भाँपते हुए मैने विषय बदला और कहा – बोलो बेटा , कैसी मदद चाहते हो ?

उन्होने अपने मतलब की बात सीधे कही – अंकल जी, दस बारह खाली बोतल दे दीजीए ।

मैने कहा – अबे, मैं क्या कबाड़ी हूँ जो मेरे पास खाली बोतल मिलेगा ?

उनमें से एक वरिष्ठ बच्चा बोला – अंकल जी, मेरी बुआ फेसबुक पर आपको कंटिन्यू फालो करती है । उसने सारी अंटियों को बताया कि कही मिले ना मिले आपके यहाँ खाली बोतल जरूर मिल जायेगी । और हमें बेवकूफ मत बनाईये, आपका चेला भोला शकर ने यहीं की खाली बोतल बेचकर नई बाईक खरीदी है ।

इसी गहमागहमी के बीच बच्चो की टीम को पीछे से निर्देशित कर रहा भोला शंकर सामने आया और बोला – महाराज, ऐसा हो नही सकता कि आपके पास बोतल ना हो । आप तो बड़े परम्परावादी धार्मिक बने फिरते है, बच्चो की खुशी के लिए एक खाली बोतल नही दे सकते ।

मैने उनसे कहा – अबे भोला, बोतल तो है पर एक भी खाली नहीं है ।

भोला शंकर बच्चों की ओर मुखातिब होकर बोला - चलों बच्चो , गार्डन मे जाकर इकठ्ठे हो जाओ, मैं अभी खाली बोतल लेकर आ रहा हूँ । फिर चैरिटी के मूड में आते हुए मुझसे बोला –महाराज, तो खाली कर दे दीजीए ।

मैने कहा – अबे आज अपना मूड नहीं है । जा छत पर आलमारी में एक आधी बोतल है , उसे ही कहीं नाली में खाली कर बच्चों को दे दे ।

भोला तत्काल घर के अन्दर गया और अपने गुरूमाता के चरण स्पर्श कर हैप्पी दीपावली बोला । हमारी प्राईवेट लक्ष्मी ने उसे आशीर्वचन देते हुए बोली – भोला, दीपावली की मिठाई खाकर ही जाना ।

भोला बड़ा चालाक निकला, बोला – गुरू माते, आज बहुत मीठा खा लिया है, कुछ नमकीन और ठंडा पानी ही देना । अपना जुगाड होते ही वो गुरूमाता की नजर बचाते हुए नमकीन और पानी लेकर वह हमारे छत की ओर चुपके से निकल गया ।

आधे घण्टे बाद भोला गार्डन एरिया में बच्चों के साथ पूरे मस्ती में लहराते हुए राकेट उड़ाने का लुत्फ उठा रहा है ।

इसी बीच एक शुभचिंतक ने व्हाट्स अप पर मेसेज भेजा “तीन लोग आपका नंबर मांग रहे है
, मैंने नहीं दिया | पर आपके घर का पता दे दिया है | वो "दिवाली" के दिन आयेंगे | उनके नाम है - सुख , शांति  और  समृद्धि”

खैर सुख और समृद्धि तो शायद कालोनी के बड़े वाले बँगले पर रूक गई । केवल शांति ही हमारे आँगन तक पहुँच पाई इससे पहले वो कुछ कहती, लक्ष्मी पूजा खत्म कर गृहलक्ष्मी ने आदेशनुमा निवेदन किया – सुनो जी, सारे लोग अपनी अपनी पत्नी के साथ फोटू खींचकर फेसबुक पर चिपका रहें हैं, आप भी चिपकाईये ना ।

मैने कहा – चिपकाने को तो मैं भी चिपका दूँ , पर थूक किस तरफ लगाऊँ समझ नहीं आ रहा।

मेरा इतना ही कहना था कि उसके अन्दर किसी पाकिस्तानी रेंजर की आत्मा समा गई और निजी आयुध अस्त्रों से मेरी हालत भारतीय चौकी की तरह बनाने में जुट गई । सीमा पर तनाव देखकर आँगन में खड़ी शांति पलटकर जाती हुई बोली – जब तक मेरी सौतन इस घर में है मैं यहाँ नहीं रह सकती । हम दोनों का एक साथ गुजारा सम्भव नहीं ।

ये तो गनीमत था कि पड़ोसियों को मुझ पर हो रहे हमले की भनक नहीं पडी क्योंकि दीपावली के पटाखों के साथ आयुध अश्त्रों ने जुगलबंदी कर ली थी । बीच बीच में मेरे चीखने और कराहने की आवाज को उन्होने ये सोचकर ध्यान नहीं दिया कि महाराज खाँटी ब्राह्मण हैं, लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए शायद कोई विशेष तंत्र पूजा का मंत्रोच्चारण कर रहें हों ।

खैर, देर रात हम दोनों के बीच एक शिमला समझौता हुआ कि सुबह उठते ही दोनो की साझा तस्वीर फेसबुक पर बिना थूक लगाये चिपकाऊँगा ।

आज कामवाली बाई का राजकीय अवकाश है, सुबह उठते ही मैने घर का झाड़ू पोछा एवं बर्तन वगैरह साफ कर दिया है । गृहलक्ष्मी जी कालोनी की महिलाओं के साथ मिष्ठान आदान प्रदान कर दीवाली मिलन में व्यस्त है इसलिए स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण मे है ।


समझौते का पालन करते हुए तस्वीर भी चिपकाई जा रही है , इसमें प्रदर्शित भावभंगिमाओं को गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है ।

 

शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

भोला शंकर की कुटाई

भोला शकर ने आज कराहते हुए आवाज दी - नमोस्कार महाराज ।

हमने उसे बिना देखे अन्दर से ही चमकाया -  क्यूँ बे प्रेम शुक्ला के चारित्रिक सहोदर, कल रात कहाँ पिट रहा था, जो आया  नहीं । तू आया नही तो आईडिया भी नहीं आया , लोगबाग कितना परेशान हुए मालूम है ?

भोला श्रद्धा से परिपूर्ण स्वर में बोला - महाराज, आप वाकई मे धन्य है। मै दावे के साथ कह सकता हूँ कि आप महाभारत वाले ही संजय हो ।

हम टावेल से मुँह पोछते हुए बाहर निकले और अब भी उसे बिना देखे ही कहा -  कैसे बे ?

भोला बोला – महाराज, आज फिर आपने बिना देखे ही जान लिया की हम कल रात पीटे हैं । 
बिना  देखे ही कईसे जान लेते हैं आप ये सब ? माने के पूछ रहें हैं । 

हमने मुँह से टावेल हटाया तो देखा भोला के शरीर पर कपड़े से ज्यादा अस्पताल की पट्टियाँ बँधी हुई हैं । चौकते हुए बोले – अबे, ये क्या? क्यूँ इतनी पीता है कि नाली में गिर पड़े । और सुन अब नाली में गिरने को मोदी जी के सफाई अभियान से मत जोड़ना समझा ।

भोला बोला – अब हमें इतना भी गिरा हुआ मत समझे महाराज । हम गिरे हुए नही है, पिटे हुए हैं । सही बात कहें तो जबरिया पिटवाये गये हैं ।

हमने कहा – ओ तेरी, अबे किस कमीने बेशर्म ने तुझे पीटा । एक दबे कुचले
7up कोलड्रिंक के ब्राण्ड एम्बेसेडर को पीटने मे उसे जरा भी लज्जा नहीं आई । कायदे से तो तुझ जैसे को पीटने पर पीटा संगठन को उग्र आन्दोलन करना चाहिए । 

भोला की आँखो में चमक आ गई, पूछा – ये पीटा वाले कौन हैं महाराज, मैं आज ही उनको जाकर सारी घटना बताता हूँ ।

हमने कहा – अबे
PETA मतलब People for the Ethical Treatment of Animals.



भोला का दर्द फिर से जाग उठा और बोला – महाराज आप भी ना आताताई हो , कहीं भी उँगली कर देते हो ।

हमने उसके मानसिक जख्मो पर मरहम लगाने के उद्देश्य से पुचकार कर पूछा – अरे नही रे भोला, ऐसी बात नही है। अच्छा बता, किन चर्मकारों ने तेरा ये हुलिया बनाया? आखिर तुझसे इतनी नफरत क्यूँ ?

 भोला बोला – नफरत नही महाराज, प्यार के भुक्खड़ लोगों ने मेरी ये गत बना दी । ये सब साले “जवाहर भगिनी सुरक्षा योजना” की पैदाईश है ।

हमने कहा – अबे ये “जवाहर भगिनी सुरक्षा योजना” क्या है ?

भोला बोला – महाराज, ये ऐसे लौंडो की फौज है जिन्हे हर लड़की मे महबूबा दिखती है और हर लडकी को इनमें फ्री ऑफ कॉस्ट भाई ।

हमने कहा – अब ये फ्री ऑफ कॉस्ट भाई क्या होता है ?

भोला बोला – महाराज, ऐसा भाई जिसको पैदा करने मे माँ को तकलीफ और परवरिश करने मे बाप को एक दमड़ी भी खर्चा नहीं करना पड़ता।
माने के “मान न मान, मै तेरा सलमान"

हमने कहा – अच्छा ये बता, ये पवित्र घटना हुई कैसे ?

भोला बोला – महाराज , कल शाम मै आपके ही घर की ओर आ रहा था, तब सामने से मेरे ही साईड पर एक नव युवती मुँह मे कफन लपेटे अपनी स्कूटी को ऑटो पायलेट मोड में डाले मोबाईल से बात करती हुई चली आ रही थी ।

हमने कहा -  अबे जब मुँह मे कफन बाँधी थी तो तुझे पता कैसे चला कि वो नवयुवती है ?

भोला बोला – मैने उसे प्रथम दृष्टया उसे संदेह का लाभ दिया महाराज ।

हमने कहा – अच्छा ठीक, फेर क्या हुआ ?

भोला बोला – अपनी ओर आता देख मैने प्रेशर हार्न दबा दिया ।

हमने कहा – किसका ?

भोला बोला –  अपनी बाईक का और किसका ?

हमने कहा –  फेर ?

भोला बोला –  फिर क्या था, नवयुवती और उसकी स्कूटी ने आपस में स्थान बदल लिया ।

हमने कहा – मतलब ? 

भोला बोला – मतलब युवती ने सड़क पकड़ ली और स्कूटी उस पर सवार हो गई ।

भोला घटना को विस्तार से बताने लगा – महाराज मैं जोर से चिल्लाया , देखकर नहीं चल सकती क्या? बच गई वरना प्रेग्नेंट हो जाती ।

बस मेरा इतना ही कहना था कि उसने जोर से चिल्लाया – बद्तमीज । 


उसका इस करूण आह्वाहन सुनकर “जवाहर भगिनी योजना” के स्वयंसेवी कार्यकर्ताओ की फौज इकठ्ठी हो गई । उसने अपनी सेंडिल मेरी ओर ऐसे उछाला जैसे कह रही हो “यलगार हो” । आदेश पाते ही JBY कार्यकर्ताओं ने हमारी ऐसी दुर्गति बनाई जैसे मोदी ने विपक्षियों की । हमने उनसे कहा भी – अबे हम “भोला” हैं लेकिन साले ऐसी तन्मयता से पीटते रहे जैसे मोदी की नकल कर  “भोला मुक्त भारत” बनाना चाहते हों । मैने उनसे कहा भी – भाई लोगों, मेरी मंशा बिलकुल साफ है, मैं इन्हे प्रेग्नेंट नही करना चाहता हूँ ।

हमने कहा – अच्छा, तू हेलमेट नही पहना था क्या ?

भोला बोला – महाराज आप भी ना अच्छा मजाक कर लेते हो । हम ठहरे ब्रह्मचारी आदमी , हमे हेलमेट पहनने की क्या जरूरत ?

हमने कहा – अबे अक्ल के अंधे, हम बाईक चलाते समय पहनने वाले हेलमेट की बात कह रहें है ।

भोला बोला – अच्छा वो, महाराज हम यातायात नियमो का सदैव पालन करते हैं, माने के उस समय हम बाकायदा हेलमेट पहने हुए थे ।

हमने पूछा- तो फिर सिर पर चोट कैसे आई? माने के क्या तेरा हेलमेट ISI मार्का वाला नहीं था?

भोला बोला – महाराज, सिर पर चोट पिटाई की दूसरी किस्त मे आई ।

हमने कहा – कैसे ?

भोला ने बताया –
JBY वाले वनबन्धु हमारी कुटाई से थक जाने के बाद प्रमाणपत्र लेने के उद्देश्य से उस युवती के पास ले गये और बोले कान पकड कर बोल के आईन्दा ऐसी गलती नही करेगा । मैं अपना कान पकडने के लिए जैसे ही हेलमेट निकाला उसी समय युवती ने भी अपना मुँह मे बाँधा कफन खोल दिया। जैसे ही मैने उसका चेहरा देखा आत्मग्लानी से भर गया । वो तो 45-50 साल पुरानी विंटेज मॉडल निकली जिसने शायद करवाचौथ पर अपना डेंटिंग पेंटिंग करवाया था । मैं ठगा हुआ महसूस करता हुआ बोला – माताजी मुझसे गलती हो गई आईन्दा ऐसी गलती नही करूँगा । लेकिन ऐसा कहते हुए अपनी खीज भी नहीं दबा सका और मुँह से अनायास निकल गया  वैसे भी आप प्रेग्नेंट नहीं हो सकती, उस उम्र को आप सदियो पहले
पार कर चुकी हैं ।

 बस इतना सुनना था कि उसका हील वाला सैडल और मेरा नंगा सिर दोनो प्यार में ऐसे खो गये जैसे टी-
20 वर्ल्‍ड कप में युवराज का बल्ला और स्‍टुअर्ट ब्रॉड की गेन्द ।

हमने कहा – वो सब तो ठीक ही किये पर तूने उसे प्रेग्नेंट वाली बात क्यूँ कही ?

भोला बोला – वाह महाराज , आप भी ना एकदम अंजान मत बनो । कई शिक्षाप्रद बालीवुड फिल्मो मे दिखाया गया है कि हिरोईन जब हीरो की गाड़ी से टकरा जाती है फेर उनकी नजरें मिलती है । उनके इस मेल मुलाकात से बागीचा के फूल आपस मे टकराते है । और चार छ महीना बाद हीरोईन कहती है – सुरेश, मै तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ ।

महाराज, मै ठहरा बाल ब्रह्मचारी, अपना ब्रह्मचर्य खतरे मे देख गुस्से मे आ गया और बोल दिया ।

बताईये कुछ गलत कहा क्या मैनें ????  

सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

मोफलर चाचा की हुदहुद

आधी रात से हुदहुद ने मौसम सुहाना बना दिया है । माने के लल्लन टोप मौसम है ऐसे में भोला शंक़र हमे ज्ञान दे रहा था - महाराज , आपको मालूम है , ये जो तूफान वगैरह आते हैं , जैसा कि आपके बस्तर के तरफ अभी आया हुआ है , उसका नामकरण प्रत्येक देश को बारी बारी से करने का मौका मिलता है । माने के जैसे पिछले बार पाकिस्तान ने नीलोफर  रखा था और इस बार ओमान ने हुद हुद रखा है । 

हमने कहा - अबे पप्पू के मानस भ्राता , हमको पता है , अब तू हमको इण्डिया टीवी देखकर ज्ञान मत बघारा कर ।

भोला ताव में आ गया और हमारी जबरन नालेज टेस्ट करने की नीयत से सवाल दागा -  अच्छा तो फेर ये बताओ ऐसा क्यूँ किया जाता है और तबाही मचाने वाले तूफान का नाम इतना मासूम क्यूँ होता है ?

हमने कहा - अरे बिलावल के फूफा , ऐसा इसलिए किया जाता है क्योकि आम लोगों को तूफान के बारे में लिखित या ब्रॉडकास्टिंग के जरिए जानकारी दिया जा सके और उनके बीच आसानी से इसका प्रचार हो और वे इससे बचाव हेतु सचेत हो सकें , इसलिए जरूरी है तूफान का नाम होना । 1950 तक तूफानों को उनके सन् के हिसाब से जाना जाता था, जैसे 1946 , 1946 बी। लेकिन 1950 के बाद तूफानों के खतरनाक व्यवहार को देखकर महिला नाम रखा जाने लगा । फिर शायद महिला मुक्ति मोर्चा और महिला अधिकारो के लिए लड़ने वाले तलाकशुदा मानवाधिकारियों के दबाव में 1979 से तूफानों का नाम पुरुषों के नाम पर भी रखा जाने लगा। पर अब भी जनमानस में जागरूकता लाने हेतु ज्यादा खतरनाक तूफान का नाम महिलाओं के नाम पर ही रखने का रिवाज है ।

भोला आश्चर्यचकित होकर बोला - सही में ऐसा है क्या महाराज ?

हमने कहा – और नहीं तो क्या । हमने तो जबरिया एक तूफान का नाम तेरे सम्मान में भी रखवाया था।

भोला शर्माते हुए बोला - आप भी ना महाराज , कभी कभी एकदम मोदीजी टाईप हो जाते हो ।

हमने कहा  - अबे नहीं बे, रिकार्ड उठाकर देख ,
भोला नाम का समुद्री तूफान बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल से 12 नवंबर 1970 को टकराया था। तूफान के साथ आई तबाही और उसके बाद बीमारी फैलने से 3 से 5 लाख लोगों की मौत हो गई थी।

भोला बोला – वाह महाराज, तब तो आप और मैं दूनो पैदा नहीं हुए थे ।

हमने कहा – अबे घोंचूँ, शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है । और हम संजय हैं , द्वापर युग में प्राईवेट चैनल नही होता था और उस समय के एकमात्र सरकारी मीडिया “प्रसार भारती” पूरा अधिकार हमारे ही कब्जे में था । जब कृष्ण कुरूक्षेत्र मे गीता उपदेश दे रहे थे तब हमने राजभवन मे उसका प्राईवेट लाईव टेलीकास्ट करने के एवज मे शर्त रखी थी कि कलयुग में हमारा एक चेला होगा “भोलाशंकर” उसके नाम से भी एक तूफान का नामकरण होना चाहिए ।  बस फिर क्या था , कृष्ण को अपने मीडिया मैनेजमेण्ट की खातिर हमारी बात माननी पड़ी और यमराज को नोटशीट लिखकर भेज दिया “कलयुग में जब भी बंगाल की खाड़ी में तूफान आयेगा भोला के नाम से जाना जायेगा।“
 
भोला हमारे दिव्य ज्ञान और अपने गुरूचयन पर अभिमान करते हुए बोला - महाराज , इसलिए तो आपकी इतनी इज्जत करते हैं , वरना अपन तो अपने बाप की भी ...  

मैने बीच में रोक कर बोला - भोला अब इसमें अन-अथराईज्ड बाप को बीच मे मत ला । ये हम दोनो की मजबूरी है ।

भोला पूछा- वो कैसे महाराज

हमने कहा  - अपन दोनो के पास कोई सेकेण्ड्री ऑप्शन ही नहीं है ।

भोला बोला -  ऑप्शन की माँ की आँख,  हमको ऐसा कोई ऑप्शन की जरूरत भी नहीं है । आपको चाहिए तो ढूँढ लो ।

हम बोले - ढूँढ तो लें, पर तुझसे कम दिमाग वाला कोई मिले तब ना ?

भोला बात को घुमाते हुए बोला - अब छोडिये इन बेमतलब  की बातों को । आप मुझे ये बताईये , ये पाकिस्तान , ओमान , अफगानिस्तान सबको तूफान का नाम रखने का मौका मिलता है । अपने भारत को नहीं मिलता क्या ?

हमने कहा – मिलता है ना ।

भोला बोला - अच्छा तो 2005 में अमेरिका में जो तूफान आया रहा उसका नाम कटॅरीना हम ही लोग रखे थे क्या?

हमने कहा – नई बे , इतना भयंकर नाम अपन क्यूँ रखेंगे । उ त साले अमेरिका वाले चिकनी चमेली के धोखे में आकर रखे और खुदे निपट गये । अपन दिमाग वाले लोग है, सोच समझकर ऐसा नाम रखते हैं कि तूफान पहुँचने से पहले ही फुस्स हो जाय और नुकसान न हो ।

भोला बोला – वो कैसे महाराज ?

हमने कहा – तू भूल गया क्या ?  पिछले साल जंतर मंतर स्टूडियो में पूरा मीडिया में विशेषज्ञ लोग दावा ठोक के कह रहे कि मई 2014 को दिल्ली में भयंकर जन सैलाब आयेगा जो देश को बदलकर देगा, और उसका नाम “जन लोकपाल” रख दिये थे ।

भोला बोला – हाँ महाराज ।

अपन ने समझदारी दिखाई और मोफलर चाचा के कान में मंतर फूँका – चाचा, नोबाल एवार्ड चाहिए तो पापिंग क्रीज के बाहर निकलो और इस तूफान का नाम बदलकर “आपा” रखो । चचा झाँसे में आ गया और आपा का पापा सोडा बॉटल की तरह ढक्कन खुलते ही फुस्स हो गया ।

 भोला बोला – अच्छा, तभी मोफलर चाचा बार बार कहते रहतें हैं “सब मिले हुए हैं जी और यही स्कैम है , हम इसकी जाँच करवायेंगे।“


शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

करवा चौथ और हम

भोला शंकर सुबह सुबह आया । हमे बिस्तर पर पड़ा देखकर बोला – महाराज ये क्या हाल बना रक्खा है ? नाक बन्द, आँख़े लाल लाल, तबीयत की बैण्ड बजा रक्खी है । कुछ लेते क्यूँ नहीं ?


हमने कहा अबे, सारे लोगों ने कहा- लेना छोड़ दो। उनके बहकावे मे हमारी गृहमंत्री आ गई और उसके दबाव में आकर हम दो दिन से कुछ नही ले रहें । तभी तो ये हाल है । अब उसे कौन समझाये कि सारे मर्जों की एक दी दवा है । पुराने जमाने में समझदार बुजुर्ग भी बीमार लोगों का हालचाल पुछते हुए कहते थे – बेटा लापरवाही मत करो, हकीम को दिखाकर जल्दी से कुछ दवा दारू लो ।

अब दो दिन से बिना दारू के खाली दवा ले रहें है , ऐसे में तबीयत क्या घण्ट ठीक होगी ?
 

भोला बोला – वो तो है ही महाराज लेकिन आज करवा चौथ है, कुछ ज्ञान चर्चा नही करेंगे ? लोगों को इसके महात्म्य के बारे में कुछ बताईये ।

हमने कहा – भोला, हालांकि करवा चौथ ऑफिशियली पति की लम्बी उम्र के लिए मनाया जाता है पर वर्तमान में इसका उससे कोई लेना देना नहीं है । करवा चौथ एक डिजायनर व्रत है जिसे हाई सोसायटी की पेज थ्री महिलायें अपनी काया और अपने पति की माया को हल्का करने के लिए मनातीं है । आजादी के बाद देश में गाँधीवादी तरीके से मनाये जाने वाला ये सबसे बड़ा व्रत है । जिसमें महिलायें अपनी अवैध माँगो को मनवाने के लिए पूरा सोलह श्रृँगार कर निर्जला अनशन करती हैं ।

भोला बोला - महाराज, इसके लिए की जाने वाली तैयारियों के बारे में कुछ बताईये?

हमने कहा – भोला, पितरों की बिदाई के बाद से ही करवाचौथ के लिए बाजार सजाया जाता है । सजने के लिए महिलाओं द्वारा फेशियल
, वैक्स आदि कराना शुरू कर दिया जाता है। इसके साथ ही करवाचौथ के दिन सजने के लिए भी एडवांस बुकिंग भी की जाती है । चूँकि दीपावली का त्यौहार भी करीब ही होता है इसलिए इन दिनों लीपाई पुताई के उत्पादों एवं कार्यों की महत्ता अधिक होती है । दोनों व्रतों की पौराणिक महत्ता को देखते हुए घर की दीवारों और महिलाओं पर लीपाई पुताई करने वाले संस्थानों द्वारा भी लुभावने ऑफर दिए जाते हैं।
 
जहाँ दीपावली के लिए हार्डवेयर दुकानों में बीस लीटर एशियन पेण्ट के साथ दो किलो जे के वॉलपुट्टी मुफ्त का ऑफर रहता है वहीं पार्लरों द्वारा फेशियल के साथ मेनीक्योर तो मसाज के साथ पेडीक्योर जैसे ऑफर करवाचौथ के लिए रखे जाते हैं। मेहंदी की बुकिंग पीक सीजन में रेल्वे रिजर्वेशन की तरह तीन माह पहले से ही महिलाओं द्वारा कराई जाती है। करवाचौथ पर महिलाएं का पार्लर में ही सजना व्रत का एक अहम हिस्सा है । कुल मिलाकर ये व्रत उन पुरातात्विक कारीगरों की अग्नि परीक्षा होती है जो पुरानी खण्डहर को एक दिन के लिए राजसी महल का वैभव प्रदान करने का दावा करते हैं ।


भोला की जिज्ञासा लगातार उत्सुकता मे परिवर्तित होती जा रही थी । उसने चहककर पुछा – महाराज, एक बात बताईये , करवा चौथ के दिन रात को छत पर ही पति का चाँद को छन्नी से छानकर व्रत तोड़ने का क्या कारण है? आँगन से भी तो यही काम हो सकता है ?  

हमने कहा – देख भाई भोला, हमारी जानकारी में ऐसा कोई नियम नहीं हैं । ये तो उन पेज थ्री महिलाओं द्वारा फिल्मों के माध्यम से प्रचारित किया गया है जिनको इस बात का यकीन नही होता कि अगले साल भी उनका पति यही होगा या कोई और । इसलिए वो छत पर जाकर छन्नी और चाँद के बहाने दूसरे छत पर नये वेकेंसी की तलाश में रहती हैं ।

भोला इससे पहले हमसे कुछ और उगलवाता, हमने उससे कहा - अच्छा अब भाग यहाँ से , वरना हमारे मुँह से गोपनीय बातें उजागर हो गई तो सारी पेज थ्री वाली महिलायें मोर्चा लेकर शाम को यहीं करवा चौथ मनाती दिखेंगी ।

भोला बोला – बस महाराज , जाते जाते एक बात बता दो , गुरूमाता जी करवा चौथ मना रही हैं कि नहीं ? माने आपके जेब का वजन केतना हल्का किया है ?


इतने में गृहमंत्री करेले का काढ़ा लेकर कमरे में आई और भोला को देखकर बोली – देखो भोला, हम कल से कह रहें हैं कि हम भी करवा चौथ का व्रत रखेंगे लेकिन ये है कि मानते ही नहीं ।   

मैने कहा- भाग्यवान, एक दिन उपवास रखने से हमारी उम्र और तुम्हारे भीमकाय शरीर के वजन में कोई फर्क नही पड़ने वाला । हमें कई सालों तक यूँ ही साथ साथ रहना है ।

उसने कहा – क्यों ?

मैने कहा – क्योंकि हम दोनो की उम्र बहुत लम्बी है ।

उसने कहा – आपको कैसे मालूम ?

मैने कहा – क्योंकि चित्रगुप्त ने यमराज को अच्छे से समझा दिया है कि तुझसे ज्यादा मुझे प्रताड़ित करने देने की फेसिलिटी और तेरे जितने भारी सामान को उठाने की कैपेसिटी उनके पास नही है ।

गृहमंत्री ने कहा – ये सब बेकार की बातें हैं । सीधे सीधे कहो कि मेरे लिए जेवर खरीदने की तुम्हारी इच्छा शक्ति नहीं है।

मैने कहा – देख गजगामिनी, जेवर खरीदने की तो प्रबल इच्छाशक्ति है लेकिन अभी हमारी आर्थिक स्थिति लोकसभा में काँग्रेस के जैसी ही है ।

उसने मुझ पर रहम खाते हुए कहा – चलो ठीक है इस साल अँगूठी ही दे देना ।

अभी अभी मेसर्स फोकटचन्द लूटचन्द ज्वेलर्स को अपनी गृहमंत्री की चीनी उँगली का माप बताते हुए अँगूठी आर्डर किया तो उसने बताया कि महाराज इस नाप का कंगन आता है अँगूठी नहीं । 


मंगलवार, 23 सितंबर 2014

श्राद्ध तर्पण

शहर के पॉशकालोनी की सबसे बड़ी कोठी में हीरों का व्यापार करने वाले युवाहृदयधारी वयोवृद्ध ने एक नवयौवना महिला से विवाह रचाया । इस बेमेल गठबंधन पर उच्च स्तरीय महिला परिचर्चा हेतु आसपड़ोस की फिजिकली अनफिट पड़ोसनो की ड्राईंग रूम पालिटिक्स दुर्भाग्य से आज हमारे घर आयोजित हो गई थी, सो मजबूरी में बाहर बरामदे में मच्छरो की संगीत सभा में खुद का रसास्वादन इसलिए करवाना पड़ रहा था क्योंकि आज कामुक मन में पड़ोसनो के ज्ञान चर्चा से लाभांवित होने की तीव्र लालसा उमड़ आई थी, अतएव पूरा ध्यान उसी ओर केन्द्रित था। उनको इसकी शंका न हो इसलिए खुद को कार्य में लीन दिखाने के उद्देश्य से बेमन से फेसबुक पर उँगली करने का अभिनय कर रहा था ।


उनकी निजी गुफ्तगू की एक से बढ़कर एक अत्यंत रूचिकर जानकारी मच्छरों के लिए अनधिकृत प्रवेश के उद्देश्य से बनाये गये जालीदार दरवाजे से छन छन कर हमारे कानों में बेईरादा टकरा रही थी | सारी पड़ोसन पहली बार किसी मुद्दे पर दिग्विजयी राय बनाती हुई कह रही थी कि करमजली ने इस बुढ्ढे में क्या देखकर उसका वरण कर लिया । अच्छी खासी सुन्दर है, उसे तो कोई भी बाँका नौजवान आसानी से मिल जाता । उनमें से एक असुर मर्दनी तत्व ज्ञानी विदुषी महिला ने इसका गूढ़ रहस्योघाटन करते हुए बताया कि वो करमजली नहीं , बहुत ही चालाक महिला है । मुआ पिलपिले बुढ्ढे के पास बेशुमार दौलत है, यही देखकर लार टपक गई होगी । उसके दौलत पर ऐश करेगी और बाकी जरूरत की चींजे इधर उधर मुँह मार के पूरी करेगी । 

खैर पड़ोसनों के गोलमेज सम्मेलन की बाकी बातें यहाँ उद्धृत कर बड़ी बिन्दियों वाली महिला मुक्ति सेना और स्त्री अधिकारों के लिए लड़ने वाले पत्नी प्रताड़ित वामहस्ती पुरूषों को मेरे खिलाफ मोर्चाबन्दी का कोई अवसर नहीं देना चाहता । लेकिन आंतरिक सत्य तो यही है कि पड़ोसन परिचर्चा से प्राप्त ज्ञान से उस नवयौवना महिला के सौंदर्यविहार हेतु चीनी उँगली का मन कुलाँचे मार रहा था ।



काफी दिनों बाद आज अचानक वही युवा बुजुर्ग मुझसे टकरा गये । बोले- महाराज, परसों आप फ्री हैं क्या ? 


हमने उनसे सम्बन्ध प्रगाढ़ करने के उद्देश्य से कहा- सेठजी, दफ्तर से कहाँ फुर्सत मिलती है लेकिन आपके लिए वक्त न निकाल पाये तो ऐसी भी व्यस्तता नहीं है । 

उनकी बुझती हुई मोतियाबिन्द नजरों में चमक आ गई , बोले – परसों, श्राद्धपक्ष मोक्ष अमावस्या है, मेरे पारिवारिक पुरोहित तीर्थ यात्रा हेतु कल रात को बैंकाक पटाया जा रहे हैं, यदि आप ब्राह्मण भोज के लिए मेरी कुटिया में आ सकें तो बड़ी मेहरबानी होगी । 

हमने कहा – सेठजी, माशाल्लाह अभी तो आप अच्छे खासे स्वस्थ है , तीन दिन में ऐसी क्या अनहोनी हो जायेगी जो आप श्राद्ध कर रहें हैं । 

उन्होने अपना क्रोधदमन करते कहा – महाराज, आपकी उँगली करने की आदत जायेगी नहीं । कम से कम मेरी उम्र का खयाल तो कीजिए । 

हमने मन ही मन सोचा – साले, शादी करते समय तुमने खुद किया था क्या? और मुस्कुराते हुए कहा – सेठजी, आप वक्त मुकर्रर कर दें । मैं तीन घंटे पहले ही चला आऊँगा ।  

उन्होने कहा – मेरा ड्राईवर आपको लेने आ जायेगा ।

खैर नीयत तिथि और समय पर हम उनके घर पहुँच गये । उनका निश्तेज मुख मण्डल अनेक स्थानों पर नीलवर्ण लिए कुछ उभरा हुआ सा दिखाई दे रहा था । मुझे देखते ही बोले- महाराज, मेरे पारिवारिक पुरोहित ने फोन पर बताया कि आज मूल नक्षत्र है इसलिए ब्राह्मण को पका हुआ भोजन न करवा कर अन्न और द्रव्य दान ही करें ।  

हमने सहर्ष उनसे दान ग्रहण किया तो वे चरण स्पर्श के उद्देश्य से श्रद्धानवत होकर हमारे पैरों की ओर झुके । हम पीछे हटते हुए बोले – ये क्या कर रहें हैं आप ? आप उम्र में मेरे पिता समान है , आपको मेरा चरण स्पर्श नहीं करना चाहिए । 

उन्होने कहा – महाराज, आप ब्राह्मण देवता हैं , शास्त्रों के अनुसार आपकी उम्र चाहे जो भी हो मुझे चरण स्पर्श करना ही चाहिए । 

हमने कहा- सेठजी, शास्त्रों के हिसाब से तो मुझे आपका चरण स्पर्श करना चाहिए।

उन्होने कहा – कैसे ? 

हमने कहा – देखिए आपने दान दिया और मैने लिया । उस हिसाब से आप दाता हुए और मैं ग्राही । नियमानुसार ग्राही को दाता के चरण स्पर्श करना चाहिए ।

वे गद्गद हो गये और बोले – महाराज, आपने तो ब्रह्मज्ञान कह दिया । आप उन विरलों में हैं, जो केवल जन्म से नहीं, ज्ञान से भी ब्राह्मण हैं । 

अपनी वास्तविक प्रशंसा सुन हम आत्मविभोर हो गये और बोले-  सेठजी, आप भी असली हीरों के जौहरी है । 

फिर अपनी पुरानी दबी हुई इच्छा को तृप्त करने हेतु मानसिक श्राद्ध के उद्देश्य से उनसे पूछा -  सेठानी जी दिखाई नहीं दे रही ? 

उन्हे हमारे प्रश्न पर शायद कुछ शंका हुई इसलिए बड़े रूखे स्वर में पूछा – क्यूँ ?

हमने तत्काल उनकी शंका को पहचाना और बात घुमाते हुए कहा – उनका भी चरण स्पर्श कर लेता तो अच्छा रहता । आखिर वो आपकी अर्धांगिनी है उस नाते मेरे दान में आधा हिस्सा उनका भी है । 

हमारे कौटिल्य तर्क से उनकी शंका जाती रही और अपनी पत्नि की अनुपस्थिति का रहस्य उजागर करते हुए बोले – महाराज वो आज सुबह की फ्लाईट से संत समागम हेतु थाईलैण्ड गई हुई हैं ।

हमने लगभग आह भरते हुए कहा  - चलिए आज हमारी किस्मत में आधा ही पुण्य पाने का योग रहा होगा । जब वो आयेंगी तो बचे हुए आधे पुण्य ग्रहण करने हेतु फिर आ जाऊँगा । 

लेकिन वो चोट खाया असली जौहरी था । हमें ताड़ते हुए बोला – महाराज , आपको दुबारा आने की जरूरत नहीं । आप मेरे चेहरे को स्पर्श कर लें , ये जो नीले उभार हैं , ये उन्ही के चरण कमल के हैं जो कल रात थाईलैण्ड जाने से मना करने पर प्रेमावश में उसने उभारे थे । 

हमने उनका माथा चूमा और बोला – सुर्खरू होता है इंसा ठोकरे खाने के बाद । 

वैधानिक सूचना – इस प्रसंग का अक्षय कुमार के बहन –जीजा से कोई सम्बन्ध नहीं है ।   

   

रविवार, 16 मार्च 2014

मुंशी जी


भोला शंकर की उम्र कोई चौदह पन्द्रह साल रही होगी जब उसके मजदूर पिता का साया उठ गया । घर में बीमार माँ और चार बहने यही उसकी कुल जमा सम्पत्ति थी । किसी तरह एक होटल में काम कर अपने परिवार का पेट भरने का उपक्रम करने में पूरी युवावस्था गुजर गई । लेकिन पढ़ने के शौक ने उसे रात को सड़क किनारे लगे स्ट्रीट लाईट के खम्बे के नीचे किताबों से दोस्ती नहीं टूटने दी और कामर्स में ग्रेजुएट हो गया । 

किसी तरह उम्र के तीसवें बसंत ने जाते जाते धक्के मारकर सरकारी नौकरी दिलवा गई । अब उसके जीवन में कुछ विश्राम के क्षण आने की उम्मीद थी । लेकिन उसकी अभागी किस्मत को शायद ये मंजूर ना था । उस्सकी चार बहने हाथ पीले करने की अवश्था में आ गयीं थी । किसी तरह उन चारों की डोली बिदा की और फिर उनकी शादी के लिए गये कर्ज को ताउम्र किश्तों में उतारता रहा । सरकारी नौकर था और उपर से लेखापाल भी लेकिन उसे इमानदारी की बीमारी थी इसलिए उसके पास पूरे जीवन की जमा पूँजी के नाम पर अब बस प्राविडेण्ड फण्ड में जमा पैसा ही था ।  चूँकि नौकरी देर से लगी फिर बहनों की शादी के बाद खुद का परिवार बसाने में इतनी देर हो चुकी थी कि उसकी इकलौती बेटी उसके रिटायरमेंट पर अपनी पढ़ाई भी पूरी ना कर सकी ।

वो अब पेंशन के सहारे अपनी जिन्दगी शुकुन से गुजारना चाहता है, लेकिन जब तक इकलौती बेटी के हाथ पीले ना हो जायें किस बाप को कहाँ चैन मिल सकता है और यदि बाप ऐसी स्थिति में हो तो नींद भी आनी मुश्किल होती है । बेटी चार माह बाद ग्रेज्युएट हो जायेगी इसलिए आने वाली गर्मियों में उसका ब्याह कर वो सही मायनों में सेवानिवृत होना चाहता है । इसलिए उसने एक अच्छा सुयोग्य वर भी देख रखा है ।

चूँकि पूरा जीवन अपने परिवार को समर्पित कर कभी अपने लिए एक पल भी नहीं जीया इसलिए शायद उपरवाले ने उसकी थोड़ी मदद कर दी होगी । बेटी के लिए जो वर ढूँढा है वो वास्तव में बेटा ही निकला । अनाथ है पर कहता है कि दो जोड़े में अपनी अर्द्धांगिनी को घर ले जाऊँगा ।

पर बाप कितना भी गरीब हो, अपनी बेटी को यूँ ही बिदा नहीं करना चाहता और फिर उसने अपने प्राविडेण्ड फण्ड में किसके लिए पैसा जमा कर रखा था? इसी पैसे को हासिल करने वो अब पिछले चार महीनों से उसी ऑफिस के चक्कर लगा रहा जिसमें उसने पूरी निष्ठा और इमानदारी से अपने जीवन के 30 साल गुजारे थे और लोग उन्हे सम्मान से मुंशी जी कहा करते थे ।

ऑफिस में उसके स्थान पर बैठा नया लेखापाल जो चार महीने पहले तक उसे रोज सुबह मुंशी जी नमस्कार कहा करता था, उनकी पेंशन फाईल में चार महीने से इसलिए धूल जमाये रखा था क्योंकि उसे फाईल पर पडी धूल को साफ करने के लिए सफाई शुल्क नहीं मिली थी ।

ऑफिस के बड़े साहब एकदम युवा हैं । नये नये अखिल भारतीय सेवाओं हेतु चयनित होकर आये हैं । उन्होने अपने कैरियर के लिए पैसों से ज्यादा अभी एवार्ड हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है इसलिए वे ऑफिस के इन छोटे मोटे कार्यों के लिए अपना समय जाया ना करते हुए एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर सारा सामर्थ्य लगाये हुए हैं ताकि उन्हे अंतराष्ट्रीय स्तर का कोई पुरूस्कार मिले और वो नामचीन हो जाये । जिससे भविष्य में उन्हे किसी मेगा प्रोजेक्ट का हेड बनाया जा सके । फिर एक ही झटके में पैसा और शोहरत दोनों एकमुश्त हासिल कर अपने आने वाली सात पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित कर लेंगे । इस कारण से मुंशी जी का प्रकरण उनके लिए समय की बर्बादी थी ।

चार महीने में एडियाँ रगड़ जाने के बाद असफल मुंशी जी को किसी ने बताया कि नई चुनी गई सरकार में विभाग के मंत्री संवेदनशील और सहृदय है । एक बार उनसे मिलो, शायद वे तुम्हारी समस्या का समाधान कर देंगे । एक बार बस उनके आँखों का इशारा हो जाय तो दूसरे ही क्षण प्राविडेण्ड फण्ड का पैसा तुम्हारे बैंक खाते में जमा मिलेगा ।  उसने भी अखबारों के विज्ञापनों में लिखा पढ़ रखा था। जिसमें कई लोगों ने उन्हे मंत्री बनाये जाने पर शुभकानायें देते हुए लिखा था कि योग्य, अनुभवी, विनम्र, सहृदय और मिलनसार आदरणीय भैय्या को मंत्री बनाये जाने पर हार्दिक बधाईयाँ ।

इसी छवि को अपने मानसपटल पर अंकित कर वह पिछले एक महीने से रोज मंत्री के बंगले पहुँच जाता । चूँकि बँगले में उसकी कोई पहचान नहीं थी,  ना ही किसी बड़े आदमी की सिफारिश । इसलिए वो अपने नाम की पर्ची देकर वेटिंग हॉल में अपने बुलाये जाने की प्रतीक्षा कर शाम को असफल वापस आ जाता ।

बेटी की शादी को चार दिन ही बचे थे । मुंशी जी ने सोचा कि सुबह सुबह किसी के आने से पहले ही पहुँच जाऊँ शायद मुलाकात हो जायेगी और काम बन जायेगा । इसलिए पौ फटते ही मंत्री जी के बँगले पर हाजिरी लगा दी । दरबान ने रोका और कहा कि ये मिलने का वक्त नहीं है, मुलाकाती समय में आओ ।

मुंशी जी ने गुहार लगाई कि एक महीने से रोज मुलाकाती समय पर ही आ रहा हूँ पर मुलाकात नहीं हो पा रही है। निवेदन है कि किसी तरह अभी मुलाकात करवा दो । बस दो मिनट में अपनी बात खत्म कर लौट आऊँगा । दरबान का दिल पसीजा और अपनी नौकरी को दाँव पर लगाते हुए उसने इंटरकाम से मंत्री जी के निजी सेवक तक खबर भिजवायी । निजी सेवक ने बताया कि मंत्री जी व्यस्त हैं, वे अपने विदेशी नस्ल के कुत्तों को सैर करवा रहें हैं ।

चूँकि दरबान देशी था इसलिए अपनी हैसियत पहचानते हुए और मुंशी जी की नजरों में मंत्री जी की लाज बचाने का नैतिक दायित्व निभाते हुए कहा - बाबा, मंत्री जी इस वक्त एक विदेशी प्रतिनिधि मण्डल से जरूरी बैठक कर रहें हैं, अभी आपकी मुलाकात सम्भव नहीं। कृपया निर्धारित जनदर्शन में ही आयें तो अच्छा होगा । 


मंत्री की कर्तव्यपरायणता से गदगद किंतु दुखी मन से मुंशी जी वापस लौटकर सीधे पास के मंदिर में बिटिया के वैवाहिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए पुजारी से मिलने चल पड़े । चार बहने और उनके पति और बच्चे , बूढ़ी माँ और पत्नी के इस सीमित स्वजनों की उपस्थिति में भारी मन से अपनी बिटिया का हाथ उसके जीवन साथी के हाथों में सौंपते हुए बस यही कहा – बेटा, तुम्हे देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है, भगवान से यही दुआ है कि तुम दोनों को मेरी उम्र लग जाय ।

बिटिया के विवाह के बाद अब गली के मोड़ पर चाय का ठेला अब उनका स्थाई अड्डा था । वहीं पर दिन भर जमे रहना और मौका मिलने पर किसी की भी मदद के लिए तैयार हो जाना अब उनकी नियमित दिनचर्या थी । उनके इसी निस्वार्थ सेवाभाव की चर्चा सुनकर एक गैर सरकारी संस्था के स्वयंसेवी मिलने पहुँचे । खादी के वस्त्र पहने हुए चेहरा रक्तिम आभा से दमक रहा था । मुंशी जी ने पूछा – किस काम से आये हो ? स्वयंसेवी बोले – हम समाजसेवी हैं । गरीब और अशिक्षित भोले-भाले आदिवासियों के हक के लिए लड़ाई लड़ते हैं । आप हमारी संस्था में शामिल होकर इस नेक काम में हाथ बँटायें । मुंशी जी फौरन तैयार हो गये और कहा कि वे गाँव तो नहीं जा पायेंगे लेकिन शहर में रहकर अपने पूरे सामर्थ्य के साथ उनके इस नेक काम में तन मन से सहयोग देंगे ।

इस तरह स्वयंसेवी जब भी शहर आते मुंशी जी उनके सहयोगी के रूप में दिन भर साथ देते । एक दिन यूँ ही चर्चा के दौरान मुंशी जी ने स्वयंसेवी को अपने प्राविडेण्ड फण्ड का किस्सा बताया । स्वयंसेवी जी का उँचे ओहदेदारों में काफी नाम था और प्रभाव भी । उन्होने दो दिन में ही मुंशी जी के प्राविडेण्ड फण्ड का पैसा दिलवा दिया । निर्मोही मुंशी जी के लिए उनका पेंशन ही पर्याप्त था इसलिए अब इस रकम की कोई आवश्यकता नहीं थी। सोचा जिसके लिए ये रकम जमा की थी, उसे ही दे दूँ । इसलिए उन्होने अपनी बिटिया को घर बुलाया ताकि एक बार फिर से इस रकम से साथ बिटिया को हँसी खुशी घर से विदा कर सकें ।

बिटिया अपने पति और बेटे के साथ घर आने वाली थी । उसकी माँ ने उनके स्वागत के लिए तरह तरह के पकवान बनाये थे । वे दोनों अपने घर की दहलीज पर बैठकर उनके आने की बाट जोह रहे थे । लेकिन बिटिया आती उससे पहले पड़ोस में रहने वाला लालचन्द अपनी मोटरसायकल में बदहवास सा आया और बोला - चाचाजी जल्दी चलिये । चौक पर बम धमाका हुआ है और दीदी बुरी तरह घायल है ।

मुंशी जी आवाक थे । उन्होने मोटरसायकल पर बैठकर केवल इतना ही पूछा – दामाद बाबू और नाती कैसे हैं ? लालचन्द मौन था और उसके मौन ने मुंशी जी को स्तब्ध कर दिया । उन्हे अब कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। अस्पताल पहुँचकर वे दौड़े दौड़े अपनी बिटिया के पास पहुँचे और उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया । बुरी तरह जख्मी और खून से लथपथ बिटिया इतना ही कह पाई – पिताजी, अपना और माँ का खयाल रखना । 

मुंशी जी के जीवन का शायद ये अंतिम दुख होगा । अब उन्हे कोई भी घटना दुखी नहीं कर सकती । कुछ दिन गमगीन रहने के बाद वे लोगों की मदद करने को ही अपना इलाज बना चुके थे । सुबह से ही घर से निकल जाना फिर जरूरतमन्दों की सहायता करना यही उनका जीवन ध्येय था ।

प्राविडेण्ड फण्ड का जो पैसा मिला था , मुंशी जी ने उसे स्वयंसेवी की संस्था को दान देने का निश्चय किया । स्वयंसेवी से टेलीफोन से संपर्क किया तो पता चला वे किसी सेमीनार के सिलसिले में दिल्ली गये हुए हैं । उन्होने स्वयंसेवी को अपनी इच्छा बतायी तो स्वयंसेवी ने उन्हे ढेरों बधाई देते हुए कहा कि आप उसे मेरे संस्था के बैंक खाते में जमा करवा दें । मैं दिल्ली में आपके इस नेक कार्य से मीडिया के लोगों को अवगत करवाता हूँ । शीघ्र ही आपको किसी ना किसी राष्ट्रीय पुरूस्कार से नवाजा जाकर सम्मान समारोह आयोजित किया जायेगा ।

मुंशी जी को ना तो कभी इच्छा थी और ना ही कभी लालसा । सो उन्होने इसे गुप्तदान घोषित करते हुए सम्मानित होने के लिए विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया और फिर दूसरे दिन सीधे बैंक जाकर पूरा पैसा संस्था के खाते में जमा कर दिया । बैंक से लौटते हुए वे आदतन गली के मोड़ वाली चाय दुकान पर अपना आसन जमाया और चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ने लगे ।

अखबार के पहले पृष्ठ पर बड़ी खबर थी । पुलिस ने बम धमाकों के मुख्य आरोपी आतंकी को पकड़ लिया है और उसने पूछताछ में पुलिस के सामने कबूल किया है कि जिस समाजसेवी को वे अपनी जीवनपूँजी दान में दे आये थे वो इस आतंकवादी को हथियार और गोला बारूद उपलब्ध करवाता था । मुंशी जी ने अपनी आधी चाय वहीं छोड़ी और वापस घर लौट आये । अब वे किसी से भी बातचीत नहीं करते थे । केवल गुमसुम और मौन रहते हुए कभी आसमान को तो कभी सूनी दीवारों को घण्टों तकते रहते । 

मुंशी जी इस सदमे से उबर पाये या नहीं ये तो कहना मुश्किल है पर अब किसी से कुछ बोलते नहीं । वजह ये नहीं कि उनकी आवाज चली गई थी बल्कि इसलिए कि कहीं उनके मुँह से सच निकल गया तो लोगों का ईमानदारी और परमार्थ से भरोसा उठ जायेगा । 

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

चाय चर्चा ऑन मिसरा ठेला


भोला शंकर आज सुबह सुबह गली में चाय के ठेले पर ही टकरा गया । बोला – महाराज, एनी स्पेशल न्यूज ऑर मेसेज फॉर वेलेंटाईन ग्रीन डे?
 
हमने कहा – साले क्या खाक भेलेंटाईन डे । पूरा साठ हजार का चूना लगा है । 
भोला बोला – उ कईसे महराज ? कौनो स्पेशल विदेशी माल है का ?  
हमने उसे गुर्रा के कहा – क्या मतलब है बे तेरा ? भोला बोला – माने के पूछ रहें हैं के कौन स्पेशल सुरा सुंदरी है जो ऐत्ता मँहगी है । 
हम कहा – नई बे कल टाईम्स नाऊ पर अर्नब को देख रहा था । 9-10 वाला स्लॉट छुट गया रहा, त  जाते जाते अर्नब ने कहा था कि 11 से रिपीट टेलीकास्ट भी होगा इसलिए 11 बजे से उसका रिपीट देखने बैठ गया ।

पर साला किस्मत को ये मंजूर नहीं था । दुर्भाग्य से हमारी पर्शनल शिन्दे भी अपना फेवरेट सास बहू टाईप का कोनो नौटंकी नहीं देख पाई थी और उसका भी रिपीट टेलीकास्ट 11 बजे ही है । सो जाहिर है घर में सुख शांति बनाये रखने के लिए कुर्बानी तो बकरे का ही होना था । सो हम कट गये अर्थात हमारे हाथों से रोमोट का बलात अधिग्रहण ठीक उसी प्रकार कर लिया गया जैसे चुनाव आयोग द्वारा लोगों की व्यक्तिगत गाड़ियाँ अधिग्रहित की जाती हैं ।

मैं पिंजरे में बन्द पंछी की तरह छटपटा सकता था लेकिन हमने भी बी आर चोपड़ा की महाभारत कथा देख रक्खी है । जब एकलव्य सामने खड़ा हो तो द्रोणाचार्य के कुत्ते को नहीं भौंकना चाहिए । सो इस कथा से प्रेरणा लेकर हम भी ठीक उसी प्रकार चुपचाप बैठ गये जैसे मोफलर चाचा गन्ना खुजारे के पीछे रासलीला मैदान में बैठ जाता था ।


टीवी में एकता बुआ का मस्ट नौटंकी आ रहा था । हमने पूरी हिम्मत बटोर कर पर्शनल शिन्दे से पूछा – मैडम ई नौटंकी का क्या नाम है । उसने कॉफी के मग को होंठों से लगाकर सरकारी इंक्वारी के लहजे में बताया - @#$% अकबर । पहला शब्द इसलिए नहीं लिख रहें हैं क्योंकि ऊ हमको थोड़ा अश्लील टाईप का लगा ।  लेकिन हम सोचे साला लेट नाईट शो है और कल वेलेंटाईन बाबा के बर्थडे भी है तो कुछ टिप्स देने के लिए झमाझम टाईप का दिखा रहा होगा । इसी उम्मीद में अपनी खुशी को अन्दर ही अन्दर दबाकर, मुँह लटकाये हुए टीवी की ओर टकटकी लगाये बैठे रहे ।


भारत निर्माण के लिए गये ब्रेक में मीलों आगे जाने के बाद जब नौटंकी फेर चालू हुआ तब हमने देखा कि नौटंकी का नाम तो जोधा अकबर है । खैर टीवी पर किसी पीर बाबा के मजार में उसका चेला आकर बताता है कि बाबा कोई "आम आदमी" का जोड़ा आया हुआ है । आपसे मिलना चाहता है । बाबा ने कहा – आने दो ।



हमने सोचा - ओ तेरी , मोफलर चाचा यहाँ भी पहुँच गया क्या ? लेकिन ये एकता बुआ का नौटंकी है इसलिए इसमें मोफलर चाचा नहीं एक सुन्दर का बाँका जवान अपनी टंच बीबी के साथ बाबा के सामने आया । हम मन ही मन बहुते मुस्कियाये के एकता बुआ ने जवान अकबर को जब बेवजह जंगल में लाया है त कुछ ना कुछ स्पेशल करवायेगी, माने के टार्जन स्टाईल में ।

त पीर बाबा बोले – कहो शहँशाह जलालुद्दीन अकबर , कैसे आये हो ?

बाबा का चेला भी भोलाशंकर टाईप का मुँह लगा था । अकबर के बोलने से पहले ही टोक पड़ा – बाबा, आप इन्हे शहँशाह अकबर कह रहें है, लेकिन ये तो “आम आदमी” है ।

बाबा एकदम श्याणा था । अब बाबा क्या घण्टा श्याणा होगा, वो तो एकता कपूर का स्क्रीप्ट रायटर श्याणा है जिसने फौरन इसमें एक मेसेज घुसेड़ दिया और बाबा के लिए डॉयलाग चिपकाया ।

पीर बाबा बोले – बच्चा, कोई भी आम आदमी अपने कर्मों से शहँशाह बन सकता है लेकिन बिरला ही शहँशाह से आम आदमी बनाता है ।

हमने सोचा,  ओ तेरी, इ त गजब का डॉयलाग है । साला ऐसा सीरीयल देखूँगा तो भयंकर टाईप का मसाला मिलेगा और अपनी शिन्दे की भी किरपा बनी रहेगी, कहाँ अपन अर्नब के नेशन वांट्स टू नो के झाँसे में आ गये ? इसी खयाल में डूबकर हम मुस्किया रहे थे तो हमारी शिन्दे ने मौका देखकर जिद पकड़ लिया – सुनो हो हमरे झीन्गालाला, गाड़ी पुराना हो गया है , हमको आजे च एक ठो होण्डा का एक्टिवा वेलेंटाईन गिफ्ट में चाहिए, वरना आज बेलन ट्राई डे भी हो सकता है , समझे ।

हमारे पिटने की उम्मीद जागती देख भोला तपाक से पूछा – फेर महाराज, इस नाजायज डिमाण्ड को पूरा करोगे ? माने पूछ रहें है ?

हमने कहा – अबे, इ कोई नाजयज रिक्वेस्ट नई है , ऑर्डर है आर्डर । आर्डर माने बूझता है ना ? अगर लाकर नहीं देंगे तो बेलन ट्राई डे पक्का है ।

खैर छोड़, उ त अभी दुकान खुलते ही ला देंगे, मगर इ पीर बाबा के डॉयलाग से अब मोफलर चाचा और पप्पू चाँदी के भक्तगण भारी खुश हो सकते हैं । माने के पप्पू चाँदी भी रोजे अपने बलिदानी खानदान के शान-ओ-शौकत को छोड़कर गरीब दलित के यहाँ खाना खाकर आम आदमी बन रहा है और सुना है उधर मोफलर चाचा भी इस्तीफा देकर खास आदमी से फेर आम आदमी बनने का नौटंकी करने वाला है ।

इ पूरा वाक्या को चाय ठेला वाला मिसरा बड़े ध्यान से सुन रहा था । बोला - सुनिये ऐय महाराज, हम ज्यादे पढ़ा लिखा त नहीं हूँ, मगर हमरा एक बात आप गाँठ बाँध लो । गरीब का झोपड़ा में मिनिरल वाटर के साथ खाना खा कर फोटू खींचाने से कोई महान नहीं बन जाता । पाँच साल पहिले जिस गरीब के घर में बिजली लाने के लिए अमरिका से परमाणु समझौता करने का महान उपदेश दिये रहे, उ कलावती के घर में बिजली त छोड़ो, उसका चूल्हे का कोयला तक बेच खाये । और इ जो मोफलर चाचा आम आदमी से खाँस आदमी बना है ना, इ खाली खाँसेगा, करेगा कुछ नहीं । बिल्कुल मोहल्ले का खोरली कुकुर जैसे, माने के खाली भौंकेगा, काटेगा नई । इ दूनों को बिना मेहनत के फोकट में राजपाठ मिला है, इसलिए इनको पता नई है के चाय ठेला चलाने से राजकाज चलाने तक का पोजीशन हासिल करने में तशरीफ का कितना तेल निकल जाता है ।

हमने भोला के तरफ देखा और बोला – यार भोला, ई त टू-मच हो गया यार । कसम से, अगर हम दूजे किसम के आदमी माने के राघवबाबा जैसे होते त ई मिसरा को अपना बैलेंटाईन बना लेते यार ।

माने के साला जब टीवी में चाय ठेला पर चर्चा लाईभ दिखा रहा था, तब ई मिसरा कहाँ था ?    

बुधवार, 22 जनवरी 2014

मोफलर बाबू


कल शाम को हमारी पर्शनल शिन्दे का मानस भ्राता माने के हमारा आईएसी साला मोफलर बाबू एक्सीडेंटली हमसे खिड़की बार के सामने टकरा गया । हमें देखते ही हिलडुल रहे सामने वाले बिजली खम्बे को स्थिर करने का प्रयास करते हुए बोला – अरे राबर्ट जीजू, अच्छा हुआ आप यहाँ दिख गये । जरा दस ठो लाल गाँधी तो दीजिए ।

हम कहा – काहे बे साले ?

मोफलर दबंगाई से बोला – अरे ठठेरा बाबू, तुम भी ना बहुते बड़े वाले हो । अरे, अपने चार दोस्तों के साथ चिंतन बैठकी जमाये रहे, उसी का एक्सपेंडीचर है, पेमेंट करना है । लाओ अब ज्यादे चें पों मत करो देई दो।

हमने कहा – क्यूँ बे खुजालचन्द, ई कैसा बैठक जमाये रहे बे, जिसमें पाँच आदमी के चिंतन के लिए दस ठो लाल गाँधी का पेमेंट करना है ?

मोफलर ने दार्शनिक अंदाज में कहा – बैठक नई ठठेरा बाबू, बैठकी जमाये रहे, यहीं खिड़की बार में । हम पर विश्वास नहीं है तो जाओ अन्दर में जमानत के लिए काऊंटर पर कुमार को बाँध के रखा हुआ है, खुदे पेमेंट कर छुड़ा लाओ।

हमने कहा – देख बे मोफलर, हम मंगलवार को शुद्ध रक्त वाले आर्य कंघी होते हैं, उस दिन दारू से ना तो खुद खुजाते हैं और ना ही किसी के खुजली का पेमेंट करते हैं । लाल गाँधी तो छोड़ो चवन्नी नहीं दूँगा । जाओ, बीड़-लान में घास उगा पड़ा है, जितना उखाड़ना है उखाड़ लो ।   

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अभी सुबह सुबह जब बच्चों को स्कूल छोड़कर घर वापस पहुँचा तो देखा सामने भी
ड़ जमी हुई है । फौरन बदहवास सा घर के अन्दर घुसा तो देखा हमारी पर्शनल शिन्दे जिसे हम प्यार से पीन्दे भी कहते हैं अपने चेहरे पर 8.20 बजाये बैठी है । हमने पूछा क्या हुआ भागवान ?

उसने कहा– एक नई मुसीबत आई है। मोफलर भैय्या सामने पार्क में धरने पर बैठ गये हैं।

हमने कहा – काहे भाई, अब उसे का हुआ ? 

वो बोली – कल शाम की घटना से मोफलर भैय्या बेहद नाराज हैं, चलिए जाकर बात करते हैं ।

हम मोफलर बाबू के पास पहुँचे और बोले– का है बे साले,ई नौटंकी काहे किया हुआ है? चाहते क्या हो ?

मोफलर बोला – ई नौटंकी नहीं, आम जनता के हक की लड़ाई है । हमरा माँग है के आपको ई घर से सस्पेण्ड किया जाया । 

हमारी पर्शनल शिन्दे नाराज हो गई बोली चुप बुड़बक, ई नहीं हो सकता । घर का नेम पलेट में इनका नाम लिखा है, सस्पैण्ड नहीं कर सकते , मोराल डाऊन होगा । ( लेकिन मन ही बड़बड़ा रही थी, इनको सस्पैण्ड कर दिया तो घर का झाड़ू पोछा कौन करेगा ? )

मोफलर बोला तो फेर कम से कम इनका खाना पीना देना बन्द कर दो । खुदे अपना चौका बर्तन खुदे करें ।

वो अब नाराज होने की सीमा तक पहुँच गई और बोली सुन रे मोफलर, बताये देते हैं । हमारे रहते ई अकेले के लिए खाना बनाये, ई हम बर्दाश्त नहीं कर सकते । चाहे कुछ भीं है पर पति है हमारे, वो भी इकलौते ।

इतना सुनते ही वहाँ खड़े मुहल्ले के लोगों की आँखों में हमारे लिए सम्मान की एक लहर दौड़ गई लेकिन वो तो केवल हम ही जानते थे के यदि हम केवल अपने लिए ही चौका बर्तन करें तो घर में बाकी लोगों के लिए कौन  करेगा ?

खैर जो भी दो घण्टे की माथापच्ची के बाद मामला अब शेटल हो गया है । मुझे तीन दिन के मद्यावकाश पर जाने को कह दिया गया है और अन्दर की खबर तो ये है कि हमारी पर्शनल शिन्दे ने इस पूरे घटना के आयोजन व्यय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए क्षतिपूर्ति हेतु चालीस ठो लाल गाँधी मोफलर बाबू के पिछवाड़े वाले पाकिट में ठूँस दिया है।