गुरुवार, 21 जुलाई 2011

“ दाग हैं पर अच्छे हैं “

राजमाता के परिवार में वाद विवाद चल रहा है –
कामवाली टीवी बाई ने हमें आँखोदेखा हाल सुनाया ! 

हरी काँगू – मेरी कमीज में दाग नहीं है! “ हमारा हाथ गरीबों के साथ” , ये गरीबों की कमीज है इसलिए तुम गरीब विरोधी लोगों को 
मटमैली नजर आ रही है पर तुम्हारी कमीज में भी तो दाग हैं !

लाल कमल – पर मेरी कमीज तेरी कमीज से ज्यादा सफेद है ! वो तो मैं खदान गया था वहाँ धूल लग गया ये दाग नहीं है !

हाथी मल –  ये परबल लोगों की फितरत है , दबे कुचले लोगों का मजाक ही बनाते हैं! हमारी कमीज में ये दाग नहीं है दवाई का सिरप गिर गया है ! क्या दबे कुचले लोगों को दवाई पीने का भी अधिकार नहीं है ?

जददू कुमार -  विकास करना हमारा परमधर्म है ! जमीन से जुड़े हैं इसलिए मिट्टी का दाग लग गया है तो इसमें गलत क्या है !

इतने में संसदमहल से बड़ी माता की आवाज आयी - सब चुप हो जाओ तुम सब चुने हुए मेरे संवैधानिक औलाद हो ! कुछ नहीं होता सुपर रिन है ना,  जनता के मन से धो डालेंगे !


बाहर आकर बड़े गर्वपूर्वक कहा – “ दाग हैं पर अच्छे हैं “ 

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

फेसबुक व्यथा

कैसे कैसे जिन्न आ गये फेसबुक पर भाई
Status पर अगड़म बगड़्म कुछ भी करत लिखाई  

श्याम लिखा था स्याह समझ ली
अंधियारे को रात समझ ली
गिरनार को गिरी नारी समझ कर
गुलबदन के बदन को ही गुल
करते हैं गोसाई



गोरी ने बस उफ्फ्फ लिक्खा था
युवकों का दिल मचल उठा था
भरी दोपहरी एक आह भरा था
Comments तो ऐसे करते हैं
जैसे हों घर जमाई  

मेरे आह पर तेरी वाह है
पर मुझको भी यही चाह है
तुने मेरे मन की  पीड़ा
कैसे जान ली  भाई
दिल से दुआ है तेरी
भला करें रघुराई