मंगलवार, 5 जुलाई 2011

फेसबुक व्यथा

कैसे कैसे जिन्न आ गये फेसबुक पर भाई
Status पर अगड़म बगड़्म कुछ भी करत लिखाई  

श्याम लिखा था स्याह समझ ली
अंधियारे को रात समझ ली
गिरनार को गिरी नारी समझ कर
गुलबदन के बदन को ही गुल
करते हैं गोसाई



गोरी ने बस उफ्फ्फ लिक्खा था
युवकों का दिल मचल उठा था
भरी दोपहरी एक आह भरा था
Comments तो ऐसे करते हैं
जैसे हों घर जमाई  

मेरे आह पर तेरी वाह है
पर मुझको भी यही चाह है
तुने मेरे मन की  पीड़ा
कैसे जान ली  भाई
दिल से दुआ है तेरी
भला करें रघुराई

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें