रविवार, 28 अगस्त 2011

UPA का आत्मविश्वास

पिछले पाँच दिनों से देश के वरिष्ठ माने जाने वाले पत्रकारों एवं बुध्दजीवीयों के विचारों, वक्तव्यों एवं अनुमानो को बड़ी गँभीरता से तटस्थ भाव से देख एवं सुन रहा हूँ ! सभी ने कमोबेश एक ही गाना गाया बस राग अलग अलग थे ! सरकार की छवि खराब हुई है ! सरकार दबाव में है ! सरकार की फजीहत हो गई !  अन्ना के सामने झुकी सरकार ! सरकार की लोकप्रियता घटी ! कुछ भविष्यवक्ता टाईप के बुध्दजीवी लोगों ने तो यहाँ तक कह दिया कि आने वाले विधानसभा चुनावों में काँग्रेस को भारी नुकसान होगा ! भाजपा एवं अन्य विपक्षी दल भी इस गाने को सुनकर ऐसे नाच रहें है जैसे कभी मुन्नी और शीला भी नहीं नाची थीं ! सभी को मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह के जैसे लोगों के बयानों में ओछापन एवं बौखलाहट नजर आ रहा है लेकिन मेरे नजर में ये उनका आत्मविश्वास है और ये आत्मविश्वास शत प्रतिशत सही भी है ! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि अभी चुनाव हो जाये तो फिर से काँग्रेसनीत सरकार ही बनेगी ! ये कोई हवा हवाई बातें नहीं है इसके पीछे कई ठोस तथ्यपूर्ण कारण है ! उल्टेक्रम में सबसे पहला कारण यह है कि विपक्ष केवल कागज पर है और उसके सारे नीति निर्धारक नेताओं का कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं है ! वे इस उम्मीद में हैं कि लोग काँग्रेस को नकारे और बाई डिफाल्ट उन्हे शासन करने का मौका मिले इसलिए वे आक्रमक नहीं होकर वेट एण्ड वॉच की नीति धारण किये हुए हैं ! दूसरा महत्वपूर्ण कारण काँग्रेस के आत्मविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जिस देश की 80% जनता आज भी गाँवों में रहती है जहाँ मीडिया तो छोड़िये बिजली, पानी की भी मूलभूत सुविधा नहीं है वहाँ कितने लोग लोकपाल , अन्ना , कलमाड़ी को जानते हैं और कहीं सुन भी लिया हो तो किसे इससे मतलब है ! चुनाव परिणामों को देखें तो काँग्रेस वैसे भी कभी शहरी क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है ! जहाँ इस आंदोलन का ज्यादा प्रभाव है ! इस देश में जहाँ सरकार बनाने के  लिए 20% से 30% वोट पाना ही पर्याप्त है और यह आंदोलन का प्रभाव आज भी कम से कम 60% से 70% वोटरों से अछूता है ! सरकार की लप्फेबाजी सिर्फ नौटंकी है मामले को लम्बा खीचने को ! इस देश में चुनाव के खेल कैसे जीते जाते हैं ये कमोबेश सारे दर्शकों को पता है तो इन माहिर खिलाड़ियों को नहीं पता हो ऐसा कहना सबसे बड़ी मूर्खता होगी !  काँग्रेस के ये बयानबाज इतने मूर्ख नहीं है जितना लोग समझ रहे हैं वे अच्छे से जानते हैं कि चाहे कितनी बड़ी भी आंदोलन खड़ी कर लो अन्ना और उसकी टीम चुनाव लड़्ने से तो रही और यदि लड़ भी ले तो जीतेगें नहीं इसे तो स्वयं अन्ना भी स्वीकार कर चुके हैं ! कुल मिलाकर इन्ही भाजपा और अन्य चिरपरिचित प्रतिद्वंदियों से नूरा कुश्ती होगी ! इन आंदोलनो से अगर थोड़ी बहुत इंकम्बेंसी होती भी है तो फिर राष्ट्रपिता के चित्रवाला रंगीन कागज, सुरा सुंदरी तथा आग्नेय अश्त्रधारी स्वयंसेवक हैं ही ! इसलिए मैं व्यक्तिगत रूप से लोकपाल से ज्यादा चुनाव सुधार का पक्षधर रहा हूँ लेकिन देश के पंजीकृत बुध्दजीवी और रहनुमा मुझ जैसे एक अदने से आदमी की बात माने इतने बेगैरत और मूर्ख तो हैं नहीं आखिर हैसियत और सामाजिक प्रतिष्ठा भी कोई चीज होती है !! जय हो !!

ओरिजनल लोकपाल

मेरा चेला भोलाशंकर आज मुझे अजीब उलझन में डाल दिया है ! जिद लेकर बैठ गया है, बार बार मुझसे यही कह रहा है – “अमूल बाबा को सोमवार को लोकपाल ड्राफ्ट पर भाषण देना है और मुझे लिखने को कहा है ऐसा सुनहरा मौका मैं खोना नहीं चाहता लेकिन आपसे बेहतर कौन लिख सकता है इसलिए आप लोकपाल ड्राफ्ट पर एक अच्छा सा भाषण लिख दीजिए !

अजीब उलझन में हूँ अभी अभी अन्ना को मना कर फुर्सत पाया हूँ ! इतनी जल्दी अब कहाँ से लोकपाल के लिए नया मटेरियल लाऊँ ! अचानक मेरे मोमबत्ती ब्रिग्रेडी दिमाग में आईडिया आया, सोचा भाषण तो अमूल बाबा को देना है क्या फर्क पड़ता है क्या लिखा है बस अलग हट कर कुछ होना चाहिए! गाय का निबंध याद था उसी को बेस बनाकर एक महान भाषण तैयार कर दिया है ! आप भी गौर फरमायें और कुछ अमूलसुझाव हो तो बतायें

लोकपाल एक राजनैतिक पालतू कानून है ! सामान्यत: किसी भी कानून का हाथ पैर सिर और पूँछ होता है लेकिन हमें सभी समाज को साथ लेकर चलना है इसलिए लोकपाल बेसिरपैर का होना चाहिए ! हमारे सामने वैसे तो मुख्य रूप से दो लोकपाल हैं पहला जर्सी लोकपाल दूसरा देशी लोकपाल ! जर्सी लोकपाल जो सरकार का है ! देशी लोकपाल जिसे गाँव के देहाती समाज के लोग तैयार कर जनलोकपाल कह रहे है ! वैसे हमारे पास अन्य दो लोकपाल अरूणा लोकपाल और जयप्रकाश लोकपाल भी हैं जो देखने में तो देशी लोकपाल लगते हैं लेकिन ये जर्सी लोकपाल के क्रासबीड हैं इसलिए इन पर भी विचार किया जाना चाहिए ! सामान्यतया: कोई भी कानून बनाने का हमारा उद्देश्य देश की गरीब जनता को दूध देने हेतु होना चाहिए लेकिन इससे अन्न दाताओं को ये अपने सिंग से घायल न कर दे इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए ! लोकपाल किसी का भी हो उसके चारा खाने की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए तथा उसके दूध देने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए और कोई इस हेतु उसे कोई प्रताड़ित नहीं करे इसका समुचित प्रावधान होना चाहिए अत: इसे वैधानिक मान्यता प्रदान किया जाना चाहिए ! लोकपाल देश में कहीं भी किसी की बाड़ी में घुसकर चारा खा सकता है लेकिन वो गोलभवन में न घुस पाये इसके लिए समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए ! अब अगर लोकपाल नियमित चारा खायेगा, तो हो सकता है कभी उसको दूध देने की भी इच्छा हो, ऐसे में जहाँ हम चाहें वो वहीं दूध दे इसके लिए उसे खूँटे से बाँधने के लिए रस्सी भी हमारे पास होना चाहिए और जब देश को उन्नति के रास्ते पर ले जाने का सारा बोझ हमारे कंधों पर है तो हमारा स्वस्थ और सुरक्षित रहना ज्यादा जरूरी है इसलिए लोकपाल अहिंसक हो तथा हमें कोई क्षति ना पहुँचा सके इसका विशेष प्रबंध किया जाय !इन्ही सिध्दांतों पर बना लोकपाल ही देश एवं जनता के हित में होगा ! हमारा हाथ गरीबों के गले पर !! जय हो !!

शनिवार, 20 अगस्त 2011

जनमत और लोकपाल

पिछले पाँच दिनों से देश के वरिष्ठ माने जाने वाले पत्रकारों एवं बुध्दजीवीयों के विचारों, वक्तव्यों एवं अनुमानो को बड़ी गँभीरता से तटस्थ भाव से देख एवं सुन रहा हूँ ! सभी ने कमोबेश एक ही गाना गाया बस राग अलग अलग थे ! सरकार की छवि खराब हुई है ! सरकार दबाव में है ! सरकार की फजीहत हो गई !  अन्ना के सामने झुकी सरकार ! सरकार की लोकप्रियता घटी ! कुछ भविष्यवक्ता टाईप के बुध्दजीवी लोगों ने तो यहाँ तक कह दिया कि आने वाले विधानसभा चुनावों में काँग्रेस को भारी नुकसान होगा ! भाजपा एवं अन्य विपक्षी दल भी इस गाने को सुनकर ऐसे नाच रहें है जैसे कभी मुन्नी और शीला भी नहीं नाची थीं ! सभी को मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह के जैसे लोगों के बयानों में ओछापन एवं बौखलाहट नजर आ रहा है लेकिन मेरे नजर में ये उनका आत्मविश्वास है और ये आत्मविश्वास शत प्रतिशत सही भी है ! मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि अभी चुनाव हो जाये तो फिर से काँग्रेसनीत सरकार ही बनेगी ! ये कोई हवा हवाई बातें नहीं है इसके पीछे कई ठोस तथ्यपूर्ण कारण है ! उल्टेक्रम में सबसे पहला कारण यह है कि विपक्ष केवल कागज पर है और उसके सारे नीति निर्धारक नेताओं का कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं है ! वे इस उम्मीद में हैं कि लोग काँग्रेस को नकारे और बाई डिफाल्ट उन्हे शासन करने का मौका मिले इसलिए वे आक्रमक नहीं होकर वेट एण्ड वॉच की नीति धारण किये हुए हैं ! दूसरा महत्वपूर्ण कारण काँग्रेस के आत्मविश्वास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जिस देश की 80% जनता आज भी गाँवों में रहती है जहाँ मीडिया तो छोड़िये बिजली, पानी की भी मूलभूत सुविधा नहीं है वहाँ कितने लोग लोकपाल , अन्ना , कलमाड़ी को जानते हैं और कहीं सुन भी लिया हो तो किसे इससे मतलब है ! चुनाव परिणामों को देखें तो काँग्रेस वैसे भी कभी शहरी क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है ! जहाँ इस आंदोलन का ज्यादा प्रभाव है ! इस देश में जहाँ सरकार बनाने के  लिए 20% से 30% वोट पाना ही पर्याप्त है और यह आंदोलन का प्रभाव आज भी कम से कम 60% से 70% वोटरों से अछूता है ! सरकार की लप्फेबाजी सिर्फ नौटंकी है मामले को लम्बा खीचने को ! इस देश में चुनाव के खेल कैसे जीते जाते हैं ये कमोबेश सारे दर्शकों को पता है तो इन माहिर खिलाड़ियों को नहीं पता हो ऐसा कहना सबसे बड़ी मूर्खता होगी !  काँग्रेस के ये बयानबाज इतने मूर्ख नहीं है जितना लोग समझ रहे हैं वे अच्छे से जानते हैं कि चाहे कितनी बड़ी भी आंदोलन खड़ी कर लो अन्ना और उसकी टीम चुनाव लड़्ने से तो रही और यदि लड़ भी ले तो जीतेगें नहीं इसे तो स्वयं अन्ना भी स्वीकार कर चुके हैं ! कुल मिलाकर इन्ही भाजपा और अन्य चिरपरिचित प्रतिद्वंदियों से नूरा कुश्ती होगी ! इन आंदोलनो से अगर थोड़ी बहुत इंकम्बेंसी होती भी है तो फिर राष्ट्रपिता के चित्रवाला रंगीन कागज, सुरा सुंदरी तथा आग्नेय अश्त्रधारी स्वयंसेवक हैं ही ! इसलिए मैं व्यक्तिगत रूप से लोकपाल से ज्यादा चुनाव सुधार का पक्षधर रहा हूँ लेकिन देश के पंजीकृत बुध्दजीवी और रहनुमा मुझ जैसे एक अदने से आदमी की बात माने इतने बेगैरत और मूर्ख तो हैं नहीं आखिर हैसियत और सामाजिक प्रतिष्ठा भी कोई चीज होती है !! जय हो !!

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

कृषि दर्शन

एक गाँव का किसान चार दिन से मेरा दिमाग खा रहा है !  नया नया जूस कम्पनी का  मोबाईल  खरीदा है ! फ्री टॉक टाईम का पूरा उपयोग कर मेरा और अपने मोबाईल दोनो का जूस  निकाल रहा है ! आज फिर उसने सुबह सुबह मेरा दिमाग चाटा, पूछने लगा महाराज, ये अन्ना अन्ना क्या है ! (गाँव के लोग मुझे महाराज कहते हैं अपुन भी कोई आम आदमी नहीं हैं ) मैंने सोचा चलो उसकी बुध्दि के अनुसार समझा देता हूँ तो कह दिया महात्मा गाँधी को जानता है न ! ये उसी का फोटो कापी है ! गाँव का किसान अनपढ़ होता है लेकिन मूर्ख नहीं ! उसने तुरंत दूसरा प्रश्न दाग दिया बोला महाराज लेकिन वो गाँधी डोकरा तो लँगोटी पहनता था और ये तो नेता टाईप का कुर्ता धोती ! फिर ये उसका फोटो कापी कैसे हो गया ? मैंने उसके कहा सुन भोला शंकर , वो पुराना गाँधी का क्या नाम था “मोहन” और ये गाँधी का नाम है “केशव” अब दोनो नाम कृष्ण भगवान के ही नाम हैं ! दोनों कृष्ण हमारे जमाने के हैं इसलिए बाँसुरी नही,  पूँगी बजाते हैं ! पुराने वाला गाँधी भी मरते दम तक खाना नहीं खाऊँगा कह के गोरे अंग्रेजों को धमकाता था ! ये नया गाँधी भी वैसे ही भूखा रहकर “काले अंग्रेजों” को धमकाता है ! तू लँगोटी पर ज्यादा ध्यान मत दे ! वो मोहन गाँधी लँगोटी पहनता था लेकिन ये केशव गाँधी थोड़ा दूसरे टाईप का गाँधी है लंगोटी पहनने में नहीं नेताओं का उतारने का काम करता है ! अब कोई पहने या उतारे क्या फर्क पड़ता है, मतलब तो तुझे लँगोटी से ही है ना ! भोला शंकर भी जोंक से कम नहीं है बोला महाराज वो सब तो ठीक है पर इसको अन्ना अन्ना क्यों बोलते हैं ! अब मेरा माथा गरम हो गया, अबे ओ भोले बाबा के चिलम , तू खेत में क्या उगाता है ! वो बोला गन्ना ! गन्ना उगाकर क्या करता है उखाड़ कर बेच देता है न ! हाँ महाराज ! तो सुन और समझ जा –
जिसको सरकार उखाड़ कर चूस ले उसको कहते हैं गन्ना ! 
जिसका सरकार कुछ उखाड़ न सके को उसको कहते है अन्ना !!
!! जय हो !!

रविवार, 14 अगस्त 2011

राशिद अल्वी का ब्लेकमेल


आज मेरा चेला बड़ी हड़बड़ी में हाँफता हुआ मेरे पास आया और कहने लगा कि नाहक ही राशिद अल्वी भाईजान बातों का बखेड़ा खड़ा कर रहें ! कह रहें हैं कि अन्ना सरकार को ब्लेक मेल कर रहे हैं ! अब रमजान के महीने में वो सफेद झूठ कैसे कह सकते हैं ! मैंने चेले से कहा तुम बड़े ही नासमझ हो ! बार बार कहता हूँ किसी विद्वान की कोई बात समझ में नहीं आती तो मुझसे पूछ लिया करो ! अल्वीभाई जान को हम बहुत पहले से जानते हैं वे बड़े सुलझे हुए बुध्दिमान व्यक्ति हैं और उसूलों के पक्के ! कई बार देश हित मे अपने हितों को त्याग कर पार्टी बदली है लेकिन चरित्र नहीं बदला ! वो बिल्कुल सही कह रहे हैं ! चेला गुस्से का घूँट पीकर नाराजगी मिश्रित करते हुए निवेदन की श्रेणी मे कहा तो क्या अन्ना सरकार को ब्लेक मेल कर रहे हैं ? हमने भी हमारे मोमबत्ती ब्रिगेड समाज के महापुरूष स्वामी अग्निवेश का चरित्र को आत्मसात करते हुए कहा नहीं ये भी सत्य नहीं है ! दरअसल दोनो अपनी जगह सही हैं ! तुम्हारा बोध इतना उच्चस्तरीय नहीं है कि इसे समझ सको ! चेले ने पूरी तरह आत्मसमर्पण करते हुए कृतज्ञ भाव से चरणो में बैठकर पूछा माईबाप जी बताईए इसका क्या मतलब है ! हमने कहा- वत्स, अन्ना ने प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिखी कि नहीं ? चेला ने कहा- हाँ वो चिठ्ठी तो मेरे पास भी है ! तो मुझे ये बताओ ये चिठ्ठी तुमको इतनी जल्दी कैसे मिली और ये किस रंग की स्याही से लिखा गया है !  चेले ने कहा ये मुझे ई मेल से मिला तथा इसकी स्याही का रंग का तो मुझे पता नहीं  लेकिन मैंने लेजर प्रिंटर से निकाला है तो ब्लैक कलर में है ! हमने कहा सुन मेरे भाई इस देश के प्रधानमंत्री के कार्यालय में तेरे से ज्यादा तकनीक की व्यवस्था है वहाँ भी ये चिठ्ठी डाकिये द्वारा नहीं मेल से ही भेजी गई होगी और प्रिंट शायद कलर टोनर खत्म हो जाने के कारण ब्लैक स्याही में हुआ होगा ! तो जब ब्लैक स्याही में कोई मेल आयेगा तो इसे क्या कहेंगे “ब्लैक मेल” ही ना ! इसमें हायतौबा मचाने की क्या जरूरत है ! अब समझा लेकिन तु मेरा चेला है इसलिए  बता रहा हूँ वास्तव में ब्लैकमेलिंग क्या होती है - किसी की कमजोर नस दबाना और अपनी बात मनवाना ! अब अन्ना भी तो भ्रष्टाचार की नस दबा कर जनलोकपाल पास करने को कह रहा है और दूसरी बात राशिद अल्वी कांग्रेस नेता है तो जब कांग्रेस के मंच पर बैठते हैं तो धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं सिर्फ़ कांग्रेस धर्म होता है और मम्मी देवी ! अब किसी के धर्म और देवी पर संकट आयेगा तो वह कैसे चुप रहेगा ! लेकिन सुन इसे मत लिखना क्योंकि सरकार से हम मोमबत्ती ब्रिगेड को बहुत अनुदान मिलता है ! हम उनका नमक खाते हैं और नमक हराम होना अच्छी बात नहीं है ! जो पहले बताया है वही लिखना ! चेला बोला ठीक कह रहे हो सर अभी जाकर इसे आर्टिकल के रूप में लिखता हूँ ! ऐसा कोई भी नहीं लिख पायेगा , मुँहमाँगा रकम मिलेगा !! जय हो !!