सोमवार, 12 सितंबर 2011

गाँधी , गाँधीवाद , अहिंसा और अन्ना


कुछ दिनों पहले अन्ना द्वारा कसाब को सरेआम फाँसी दिये जाने के बयान पर गाँधीवादियों ने काफी कोहराम मचाया , अन्ना स्वयं को गाँधीवादी मानते हैं और गाँधीवाद के विरूध्द आचरण करते हैं !

दरअसल गाँधीवाद क्या है ? यह एक क्षद्म आवरण है आज के रहनुमाओं का ! मैंने कभी नहीं सुना गाँधी ने भी कभी गाँधीवाद का पालन किया हो ! अगर ऐसा था तो उन्होने उमर अब्दुल्ला के अफजल गुरू मामले की तरह भगत सिंह की फाँसी का विरोध क्यों नही किया ? गाँधी ने जिस राम को अपना जीवन आदर्श माना उन्ही राजाराम ने रावण, बाली सहित कई वध किये !

रही बात अहिंक होने की तो अहिंसा का अर्थ काफी व्यापक होता है जो कम से कम गाँधी के अहिंसा की परिभाषा से पूर्ण नहीं होता ! अन्ना के आंदोलन एवं आमरण अनशन को अहिंसक आंदोलन कहा जा रहा है लेकिन कितनों के ये पता है कि इस अनशन में अरूण नाम के एक अनशनकर्ता की मृत्यु हो गई तो फिर ये अनशन अहिंसक कैसे हो गया !

बुध्दजीवियों से अपेक्षा है कि जरा सोचें मनुष्य अगर अपनी हत्या स्वयं करने को तत्पर हो तो उससे बड़ा हिंसक और कौन हो सकता है ! आमरण अनशन का क्या अर्थ है , किसी बात पर कोई ये कहे कि अगर उसकी बात नहीं मानी जाती तो वह आमरण अनशन करेगा मतलब आप उसकी बात नहीं मानों तो वो खुद को भूखा रखकर अपनी हत्या स्वयं कर देगा !

अत: मेरे विचार से आमरण अनशन को कभी भी अहिंसक आंदोलन नहीं कहा जा सकता ! लेकिन अहिंसा का अर्थ ये नहीं की आप पर कोई हमला करे तो आप ये कहें आप मुझे मार सकते हैं किंतु मैं अहिंसा का पुजारी हूँ आपको मैं बिरियानी खिलाने के अलावा कोई कार्य नहीं कर सकता ! मजे की बात तो ये है कि जिसे गाँधी टोपी कहकर लोग पहनकर अपने आप को गाँधीवादी कहते हैं उस टोपी को गाँधी ने कभी पहना ही नहीं !

किस गाँधीवाद की बात कहते हैं जिन दलित अछूतों को उन्होने ईश्वर का अंश मानकर “हरिजन” नाम दिया वही शब्द आज उत्पीड़न कहलाता है ! किसी आतंकवादी की फाँसी की सजा को माफ कर हम क्या साबित करना चाहतें हैं ! इससे दो ही स्थिति बनेगी या तो उस व्यक्ति को ताउम्र कैद में रखकर उसे पल पल मौत का एहसास कराया जाय या फिर से कंधार विमान अपहरण जैसे किसी घटना के लिए राह से भटके हुए भाईयों को उत्प्रेरित किया जाय !

दोनों ही स्थिति में जो घटनायें होगीं क्या उसे अहिंसक कहा जा सकता है ! यदि इंडियन मुजाहद्दिन के ईमेल पर यकीन करें तो उन्होने अफजल गुरू के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में धमाके किये हैं ! ऐसी स्थिति में अफजल के लिए सजा-ए-मौत की माफी का आंदोलन अहिंसक है ??????

दरअसल हमारी समस्या ये है कि हम उस व्यक्ति की बातों पर अंधश्रध्दा रखते हैं जो तथाकथित रूप से सफल है चाहे वो गलत ही क्यों न हो और यदि कोई उसकी गलत बातों पर आक्षेप करता है तो हम कहते हैं कुछ भी कहने के पहले उस महान व्यक्ति के बराबर कोई कार्य करो जैसा मेरे एक विद्वान मित्र अक्सर कहते रहते हैं !

अन्ना का कसाब पर दिया गया बयान उनके क्षद्म गाँधीवादी आवरण को फाड़कर एक आम हिंदुस्तानी के मन की पीड़ा है जो कमोवेश अंजाने में ही सही लेकिन बाहर आ गई ! उनके पहले के भी बयानों को ध्यान दें जिन्हे तथाकथित बुध्दजीवियों द्वारा अनर्गल कहा जाता है , मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा लगता है कि अन्ना के ह्रदय में एक आम भारतीय आदमी का दिल है जो ज्यादा देर तक किसी क्षद्म आवरण में रह नहीं पाता और रह रह कर उनके बयानों के रूप में गाँधीवादी आवरण से अपनी गर्दन बाहर निकालता रहता है !

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