सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

हमारे त्यौहार और त्यौहारीयों की अपील

आमतौर पर प्राचीन त्यौहरों पर तथाकथित पंजीकृत बुध्दजीवियों के बड़े मार्मिक और विद्वतापूर्ण तार्किक अपील तमाम संचार माध्यमों में सुनामी की तरह दिखाई सुनाई पड़ते है! मसलन अभी दीपोत्सव का पर्व है तो आपको सभी संचार माध्यमों में ग्लोबल वार्मिंग तथा पर्यावरण और ध्वनि प्रदूषण का वास्ता देकर फटाखे ना फोड़ने की मार्मिक अपील सुनाई और दिखाई दे रही होगी साथ ही साथ अखबारों और टी वी पर इस मौसम में नकली मावा के खबर भी प्रमुखता से प्रकाशित और प्रचारित होते नजर आ रहे होंगे!  

क्या कभी आपने सोचा है ऐसा केवल दीपावली के पूर्व ही क्यों होता है! अभी कुछ दिन पहले गणेशोत्सव पर आपको भगवान गणेश की बड़ी बड़ी मूर्तियों के द्वारा पर्यावरण प्रदूषण पर इको फ्रेंडली बुध्दजीवियों द्वारा उनके दिव्य मुखारविंद से चाशनी में डूबे हुए गूढ़ज्ञान से अभिभूत किया गया होगा लेकिन इन दिव्य आत्माओं के हरएक परिवार के नौनिहालों द्वारा वर्ष भर में जिव्हास्वादन के लिए उदरस्थ स्नेक्स और चाकलेटों के प्लास्टिक रैपर को अगर जमा किया जाय तो विश्व की सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा भी बौनी लगने लगे! देश के चौथे आधार स्तम्भ मीडीया में जड़ित रत्न महामना पंकज पचौरी जी ने तो ये भी सलाह दे डाली कि गणेश उत्सव में व्यर्थ में पैसा बहाने के बजाय इन पैसों को मुम्बई की सुरक्षा में उपयोग किया जाना चाहिए! हाँ परचोरी जी सही कहते हैं आप ताकि सरकार द्वारा टैक्स में लिये जाने वाले पैसे से आपको पेड न्यूज दिया जा कर भारत निर्माण किया जा सके! 

ये बात सही है कि नकली मावा का उपयोग मिष्ठान निर्माण में किया जाता है लेकिन इन समाजसेवियों को केवल त्यौहारों पर ही आमजन के स्वास्थ्य की चिंता क्यों सताती है और फिर टी वी पर इस विषय पर प्रायोजित गहन चिंतन के कार्यक्रम के बीच बीच में विज्ञापन के रूप में कोई महानायक आकर आपसे पूछता है इस दीवाली आप किसे खुश करेंगे चलो कुछ मीठा हो जाय वो भी खालिश इम्पोर्टेड! 

इतना जान लें पर्यावरण सम्बंधी संदेश में कोई बुराई नहीं है लेकिन जिन लोगों का संगठित गिरोह ऐसी अपील जारी करता हैं उनकी असलियत और नीयत जान लें! जरा नजर रखें वे लोग अपने निजी उत्सव में कैसी आतिश बाजी करते हैं! कोई सड़कछाप भी यदि किसी संगठन का मोहल्ला अध्यक्ष भी बन जाये तो पूरा शहर आतिशवाजी और पोस्टर बैनर से रंगीन हो जाता है! नेता का कोई नवीन पद धारण कर अपने ही क्षेत्र में आने पर इतनी आतिशबाजी की जाती है जितनी कि दीपावली में एक पूरे छोटे शहर के द्वारा नहीं की जाती होगी और उत्सव का माहौल ऐसा कि या तो नेताजी प्रथम बार अपने पैतृक शहर में पधार रहे हैं या फिर ये उनका अंतिम प्रवास है! लेकिन ये प्रदूषण की श्रेणी में नहीं आता! इन चिंतनशील बुध्दजीवियों को दीपावली के फटाको का प्रदूषण तो दिखाई देता है किंतु कारखानों से निकलते अपविष्ट पदार्थों का और उनसे तथा ट्रैफिक जाम में लाखों गाड़ियों से निकलने वाले धुँये से होता प्रदुषण दिखाई नहीं देता!


मैंने हमेशा इन दिव्य आत्माओं से होली पर भी पानी बचाने की बड़ी विद्वतापूर्ण मार्मिक अपील सुनी है और कमोबेश ये मार्मिक अपील उन लोगों के द्वारा की जाती है जो केवल अपने मुखमण्डल की आभा बनाये रखने के लिए एक परिवार की आवश्यकता से अधिक पानी का उपयोग करते हैं तथा इनके परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए पृथक वाहन की व्यवस्था होती है एवं एक ही गंतव्य में जाने हेतु वे अपने स्वयं के वाहन का उपयोग करना नैतिक धर्म समझते हैं और इनकी लम्बी कारें अपने स्वामियों की तरह ही स्वच्छ और चमकदार दिखने के लिए सैकड़ो लीटर पानी से रोज नहाती हैं!  

मंदिरों में यदा कदा होने वाली बलिप्रथा पर ये स्वघोषित प्रशु प्रेमी अपना घोर विरोध जताकर आँदोलन तो करते हैं लेकिन उनके सपने में भी किसी मल्टीनेशनल मेक्डॉनाल्ड या KFC चिकन का विरोध नहीं दिखता! अगर धोखे से इनकी गाड़ी या ये स्वयं ही सपरिवार इन अट्टालिकानुमा प्रतिष्ठानो के बाहर दिखाई दे जायें तो प्रसन्न होकर आश्चर्यचकित ना हों! ये तो बस अपने साप्ताहिक अवकाश का आनंद उठाने आये होते हैं!

बस अब जाने दे लिखने को तो इस पर दिन भर लिख सकता हूँ लेकिन दिक्कत ये है कि इस लेख को प्रथम तो कोई पढ़ेगा नहीं और पढ़ भी लिया तो मानने को तैयार नहीं होगा क्योंकि हम कोई जेएनयू उत्पादित बुध्दजीवी तो हैं नही इसलिए किसी को समझाना मतलब पत्थर में सर फोड़ना है! 

अच्छा है इस दीपावली फटाखे ना फोड़कर रूकरूक खान की रावण फिल्म किसी मल्टीप्लेक्स में देखें और मोरानी मामा को फायदा पहुँचायें ताकि उन पैसों से फिर दिल्ली हाईकोर्ट जैसा कोई धमाका कर प्रदूषण रहित सामूहिक सेक्यूलर दीपावाली उत्सव मनाया जा सके!  

मेरी शुभकामना आपके लिए! इस दीपावली धनलक्ष्मी आपके घर आयें और कुछ दिन आपको प्रसन्न कर आपके माध्यम से पूँजीपतियों के स्विस खातों में स्थायी रूप से निवास करें !! जय हो !!


10 टिप्‍पणियां:

  1. happy Diwali...........isse jyada kuchh nahi keh sakte ,kyuki sach hamesha kaduwa hota hai..aapki har baat sach hai,,par aazkal hum log hi jhuth ki duniya me jeene ke aadi ho gaye hai....

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  2. दीपावली पर पटाखे न चलायें क्योंकि ध्वनि और वायु प्रदूषण होता है, होली पर रंग न खेलें क्योंकि रासायनिक रंग त्वचा ख़राब कर देते हैं और हजारों लीटर पानी की बर्बादी होती है, दुर्गा प्रतिमा और गणेश प्रतिमा के विसर्जन से नदियाँ और समुद्र प्रदूषित होते हैं| और हिन्दू पर्वों के लिए तो अभी याद नहीं आ रहा पर मीडिया बताता जरुर होगा कुछ न कुछ| कोई हिन्दू पर्व आया नहीं कि मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों के इस तरह के प्रवचन शुरू हो जाते हैं, कान्वेंट स्कूल के बच्चों को इकठ्ठा कर रैली भी निकाल ली जाती है और ऐसा प्रचार किया जाता है कि बेचारा हिन्दू अपना त्यौहार भी अपराध बोध के साथ मनाता है कि जैसे कितना बड़ा पाप कर दिया उसने| पर कभी नहीं सुना कि इस मीडिया ने बकरीद पर गली मोहल्लों में बिखरे पड़े खून और उसे साफ करने में खर्च हुए पानी को लेकर कुछ बताया हो, कभी नए साल के जश्न के नाम पर खर्च हुए रुपयों का हिसाब किया हो या छुटायी गयी आतिशबाजी पर स्यापा किया हो| सारा ठेका हम हिन्दुओ ने ही लिया है क्या?

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  3. ऐसा नही है क़ी आपका लेख बड़ा हो गया तो कोई पढ़ेगा नही .आपने फेसबुक पर अपनी एक इमेज बनाई है ,.इसमें आपके चाहने वाले भी बने हैं .हाँ यह बात जरूर है क़ी हम सब एक से विचार रखने वाले लोग हैं ....अब हम अकेले नहीं हैं यह क्या कम है ...येलोग हमारी जितनी बुराइयाँ गिनवाते हैं ,उससे कई गुना अधिक अच्छाइयाँ आज भी हमारे भीतर हैं इस बात को हमे अपने विश्वास का आधार बनाना है और योजना पूर्वक फैलाए जा रहे अंधकार से टक्कर लेनी है ...और हम लेंगे भी ...

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  4. isme koi shaque nahi ki hinduaon ke tyoharo ko nishana banaya ja raha hai,aur ek bar fir hume ghulami ki or dhakela ja raha hai,arthik ke sath-saath sanskritik bhi.thik hai jeans ya trouser peheanane me koi burai nahi hai lekin kya is bat ka kisi ko khayal bhi hai ki humare desh me dhoti ki khapat kam ho gayi hai.dakhsin bharat ke lungi ki jagah barmudas ne le li hai,uttar bharat ke salwar kurte ko jeaans-t-shirt ne nipta diya hai,ghaghra-choli ab tyoharo ki dress rah gayi hai,nau-wari saree(marathi nau gazee saree jise lugra bhi kehte hai)ab fancy dress me bachhe pehne nazar aa jate hai,maharashtra aur gujrat ke mathe par ab gandhi topi nazar nahi aati.bahut kuchh badalata ja raha hai.raha sawal tyohaaro ka to nakli mithai ya nakli mawa ka halla sirf tyohaaro taq hi rehta hai.uske bad sab thik ho jata hai.vigyapano me bhi dekhiye rakhi ya bhai-behan ke pyaar ko dikhate hai to cadburrys ke saath,holi par sirf pani bachane ki hi apeal nahi hoti,duniya bhar ke range siyar aa jate hai expert comments ke liye,rang se aapki khubsurti kahatam ho sakti hai,charm rog ho sakte hai,aanko ki raushni ja sakti hai.yani dhamkate taq hai ki holi mat khelo.holi aur diwali ye do hi tyohaar pramukh hai aur inhi ko niptane me lag gaye hai.unka virodh hona chahaiye,hume apni sansriti bachane ke liye ladna chahiye,ab chahe koi sampradayik kahe yaa rss kaa agent,mujhe koi farq nahi padta.aap ne is bare me chinta jahir ki,badhai ke patr hai aap aur aage bhi is sangharsh ko aur tej karna hai,mai bhi is sangharsh me aapke sath hun.

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  5. बहुत सटीक विश्‍लेषण।
    सच कहा आपने।
    आपको और आपके परिवार को दीप पर्व की शुभकामनाएं......

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  6. baat me kafi dum hai...........aur sochne ki baat bhi hai......aur isme koi sandeh nahi ki is desh aur samaj me har ek chiz-material or immaterial-ke virodh ya samarthan ka ek timing raha hai,aur bade dukh ke sath is satya ko bhi manna padta hai ki kai samarthit chijo ki timing ya to aadikaal se bana diya gaya hai...ya fir thopa gaya hai...jaisa vyakti soche........ samarthit chijo me jitne gun dosh hote hai athwa rahe hai unhe hum,aap ya fir hamara samaj kisi na kisi roop ma accept kar ise samarthit samagri bana chuka hai.........par jab virodhit chijo ki baat ki jati hai to iski timing utni purani jan nahi padti,parantu acceptable historical times se ye bhi jarur chala aa raha hai.......aur virodhit items ke virodh ki timing hamesha ek tabka hi kiya karta hai,chahe swarth ke vasibhut athwa kisi aur jarurat ke mutabik........parantu aaj ke is market based samay mein bhautik evam swarth siddhi poorn tarike se jo ' time based against culture ' laya athwa aa raha hai,ye kahi na kahi samaj se bade evam asal ke problems ko daba raha hai.........jinhe address karna nihayat hi jmaruri hai.......

    overall the blog seems to be fit for mindboggling and why not...the writer and thinker is sanjay maharaj......salutes....

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  7. केवल एक शब्द ही इस लेख को परिभाषित कर सकता है ,,,,,,,,,,,,, जबरदस्त ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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  8. ये सब हिन्दू रीतिरिवाजो को एक एक कर निशाना बनाने का कुत्सित प्रयास है..
    NDTV का जिक्र करना बेमानी है सबसे बड़ा देशद्रोही चैनेल हो वो भारत का..पोप निर्देशित इटली की खान्ग्रेसी सरकार और बिके हुए मीडिया के दलाल हिन्दू संस्कृति की जड़ काटने का प्रयास कर रहें हैं..
    स्वदेश का स्वाभिमान एवं स्वदेशी का प्रचार प्रसार इस चक्रव्यूह को तोड़ने में सहायक हो सकता है..

    सुन्दर पोस्ट

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  9. महापात्रा जी कैसा रोकेट छोड़ा है..........पता नहीं कहाँ जाकर गिरेगा लेकिन जहाँ भी गिरेगा विस्फोट जरुर करेगा........ऐसे ही फुलझड़ी जलाते रहिये......आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.......

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