गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

जन आंदोलनो की कमियाँ


अन्ना हारे नहीं ...

उन्हे हारना भी नही चाहिए ...



बाबा भागे नहीं ..

उन्हे भागना भी नहीं चाहिए



ये पंक्तियाँ आपको भ्रमित कर सकती हैं लेकिन इन दोनो आंदोलनों की परिणति तो एक है पर कारण अलग अलग है



बाबा को योग से मिली प्रसिध्दि ने ऐसा भ्रमित किया की वे स्वयं को मठाधीश मानने लग गये उन्होने अपने राजनितिक आंदोलन को योग शिविर की तरह चलाना चाहा और सहयोगी भी रखा तो किसे बालकृष्ण को जिसे जड़ीबूटी के सिवा कुछ आता नहीं ! राजनीतिक आँदोलन में विरोधी कई हथकण्डे अपनाते है उनको समझना और उसका तोड़ निकालना इन दोनो को आता नहीं या यों कहें इन्हे उसका कखग भी पता नहीं इसलिए पहले ही अनशन पर चक्रव्ह्यू में फँसकर अभिमन्यु सा हाल बनाया !  उन्हे इन तिकड़मी चालो को समझने और उसका उपाय ढूँढने वाली रणनीतिकार टीम की सख्त आवश्यकता है !



दूसरी ओर अन्ना के पास ऐसे हथकण्डों को समझने वाली पूरी फौज है और उनकी टीम की रणनीति तो ठीक थी लेकिन अहंकार खा गया ! रातों रात मिले जनसमर्थन को अपनी निजी जागीर समझ बौराई टीम अन्ना अहंकार के मद में ऐसी चूर हुई कि अपने ही बुने जाल में फँस कर रह गई अब फड़फ़ड़ा रही है ! कमोबेश सभी पार्टीयों ने भी दृश्य अदृष्य ऐसी चक्रव्यूह की रचना कर दी है कि अब अन्ना को उनके ही समर्थन की आवश्यकता पड़ने लगी है जिन्हे उनके कौरवी सेना सुबह शाम कोसती रहती थी और पुत्र मोह में ग्रसित धृतराष्ट्र की तरह अन्ना भी उनके सुर में सुर मिलाते रहे ........



लेकिन खेल अभी समाप्त नहीं हुआ है अगर दोनो चाहे तो अलग अलग ही सही पर एक दूसरे का विरोध ना कर अपनी अपनी गलतियों से सबक ले और आगे बढ़े तो मंजिल दुष्कर जरूर है लेकिन ऐसा नहीं कि उसे हासिल ना किया जा सके !

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

मैकाली शिक्षा और अंधी दौड़

आधुनिक मैकाले शिक्षा पद्यति से लबरेज कान्वेन्ट मिशनरी स्कूल ..........
जिसमें व्यवहारिक शिक्षा से ज्यादा किताबी ज्ञान और आडम्बर पर जोर......  दिसम्बर की ठिठुरन भरी सुबह में
सूरज चाचा के जागने से पहले तैयार होकर किसी बैंण्ड पार्टी की वेषभूषा में अपनी माताओं के साथ सड़क किनारे खुद से डेढ़ गुना ज्यादा वजनी बस्ते के बोझ को उठाये स्कूल बस का इंतजार करते हुए अपने हाथों को रगड़ कर किसी तरह ठण्डी को भगाने के असफल प्रयास में काँपते हुए नौनिहाल मानो किसी रणक्षेत्र में जाने को तैयार खड़े हों !

ये नजारा अचानक मेरी आँखो के सामने आया जब मैं अपनी नैसर्गिक दिनचर्या के विपरीत आज सुबह सुबह घर से बाहर टहलने निकला ...  अरे चौंकिए मत !  मैं किसी बाबा के किरपा के चक्कर में अपनी आदत बदलकर सुबह उठा नहीं बल्कि रात भर काम निपटाते निपटाते कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला ....   काम समाप्त कर जैसे ही घड़ीबाबू पर नजरें टिकाई देखा तो अपने दोनो काँटो के द्वारा सूर्य नमस्कार कर रहे हैं यानी सुबह के पूरे छ: बजा रहे थे ! सूरजचाचा रोज शिकायत करते हैं कि मैं उन्हे कभी वेलकम नहीं करता तो सोचा चलो आज उन्हे गुडमार्निंग बोलकर उनकी वर्षों की शिकायत दूर कर दूँ ! सो निकल पड़ा खुले आसमान में चाचा की अगुवानी के लिए सड़क की ओर ...  सूरजाचाचा तो ठण्डी की वजह से कोहरे के कम्बल ओढ़कर सरकारी बाबू की तरह लेट आने का मूड बनाये हुए थे लेकिन ये नजारा मेरी आँखो के सामने आ गया !

किताबी कचरे को कण्ठस्थ किये देश की अगली पीढ़ी केवल इस सिध्दांत पर आगे बढ़ रही है कि किसी तरह स्मरणशक्ति बढ़ाकर परीक्षा में शत प्रतिशत अंक अर्जित किया जाय और फिर एक अदद तन्ख्वाह वाली नौकरी पाकर भौतिक संतुष्टि प्राप्त किया जाय यही जीवन का लक्ष्य है ! क्या पढ़ा क्यों पढ़ा .. इनका असली भावार्थ क्या है ये किसी को पता नही ..  स्वयं शिक्षक को पता नहीं तो बच्चों को क्या समझायेगा वो तो खुद ही अपनी तन्ख्वाह बढ़ाने के लिए आधे वर्ष आंदोलनरत रहता है !

खैर जाने दें व्यर्थ की पीढ़ा लेकर बैठ गया लेखक मन अनावश्यक ही श्याम बेनेगल की तरह व्यवसायिक फिल्मों से फिसलकर कलात्मक फिल्मों की ओर भटक जाता है इससे किसी पाठक को कोई दिलचस्पी भी नहीं होगी ना तो कोई लाईक्स ना तारीफ में कोई कामेंट्स ऐसे में लिखने का फायदा क्या? सो मूल कमर्शियल मसालेदार मुद्दे पर आता हूँ !

इसी कान्वेन्ट की परम्परा में पल रहे एक पड़ोसी के 13 वर्षीय बालक ने मेरे घर की कालबेल बजाई ! दरवाजा खोला तो मुझसे बड़े रोबीले ढंग से कहा “ गुड इवनिंग सर” और अपना हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया ! मैंने भी थोड़ा झिझक कर लेकिन अपने आप को उस बच्चे के सामने गँवार न दिखाई दूँ इस भय से उसकी तरह मार्डन बनने की कोशिश करता हुआ हाथ मिला कर कहा .. “ गुड इवनिंग डूड प्लीज कम एंड सीट” !  मैंने उससे पूछा कैसे आना हुआ तो उसने कहा – एक्च्यूली सर .. माइ ब्राड बैंड कनेक्शन इज कट ड्यू टू माई फादर्स नेग्लीजेंसी ! उन्होने ड्यू डेट में एमाउंट डिपोजिट नहीं किया सो आई कान्ट एबल टू एक्सेस इंटरनेट ! डू यू परमिट मी टू एक्सेस योर इंटरनेट ..  आई हैव सबमिट ए प्रोजेक्ट रिपोर्ट ऑन अन्ना हजारे सो नीड कापी सम आर्टिकल ऑन हजारे ! आई विल मेक ए रिपोर्ट बाई सलेक्ट गुड लाईन्स एंड रिअरेंज देम !

मैंने कहा “व्हाट एन आईडिया डूड....  गो एहेड “ किंतु इस भौतिकवादी दुनिया मे उत्पन्न एक ज्वलंत समस्या “ पर्यावरण प्रदूषण “ पर उसके दृष्टिकोण को जानने की प्रबल इच्छा ने मुझे उकसाया और मैंने उससे पूछ लिया  भगवान शंकर की जटाओं से निकली गँगा आज इतनी प्रदुषित हो गई है उसके बारे में तुम क्या सोचते हो ? उसने तपाक से कहा ..  सर जस्ट लास्ट नाईट आई रोट इन एक्लूसिव स्टोरी ऑन दिस मेटर एण्ड आई पोस्टेड इट ऑन माई सोशियल नेटवर्किंग साईट फेसबुक स्टेट्स ... विच गेट लार्ज एमाऊण्ट ऑफ लाईक्स एण्ड कामेंट्स ...  यू केन आल्सो रीड दिस ऑन माई स्टेट्स...  मैंने उसके जाने के बाद कौतुहलवश उसके स्टेटस को चेक किया तो स्टोरी कुछ इस तरह लिखी मिली .....  
लार्ड विष्णुस ऑफिसयल वाईफ गॉडेश ऑफ वेल्थ मिसेस लक्मी अपडेटिंग हर स्विस एकाऊंट ऑस्क लार्ड विष्णु ओ माई डियर वाटर सरफेश स्नेकबेड रेस्टेड मेन,  व्हाय यू नाट एडवाईस यूअर क्लोज फ्रेंड शंकरा टू वॉस हिस हेयर विथ एनी मल्टीनेशनल ब्रांडेड शेम्पू ... लेडी रिवर गंगा इज सो डर्टी... आई कुडंट टेक बाथ ऑन इलाहाबाद कांफ्लूयेंस ... आई हर्ड मिस गंगा इज ओरिजनेटेड फ्राम दि हेयर वेल ऑफ शंकरा ... यू मस्ट टेल मिस्टर रजनीकांता टू डू सम थिंग एबाऊट दिस ! ही केन साल्व दिस प्राब्लम विथिन वन मिनिट ..... इफ यू कान्ट हेंडल दिस देन टेल मी  ...  माई सन गणेशा विल टेक केयर ऑफ आल दी मेटर विथ हिस कुलीग डोरेमान एंड नोविता !



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मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

जनलोकपाल , अन्नाचरण एवं अन्ना नियंत्रक टीम


कल मैंने अपने फेसबुक स्टेट्स एवं कुछ समूहों में जनलोकपाल के लिए हो रहे आंदोलन में अन्ना द्वारा किये जा रहे पिछले तीन अनशनो के दौरान मंच की पृष्ठभूमि की कुछ तस्वीरों को चिपकाया जो उपर भी दृष्य है! इस पर काफी अंध अन्ना भक्तों ने मुझे काँग्रेसी एवं देशद्रोही की उपाधि से सम्मानित किया ! उन सभी शुभचिंतकों का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हुए प्रार्थना है कि “उपरवाला” उनकी दुआओं में असर पैदा करे और बड़ी मम्मी की कृपा पाकर मैं भी राष्ट्राधिनायकों के चौपाल में बतौर सदस्य शामिल होकर अपने कृत्यों एवं आचरणों हेतु लोकपाल के दायरे से बाहर हो जाऊँ!

खैर ये व्यक्तिगत प्रलाप है ! मुद्दे की बात ये है कि देश में हरेक व्यक्ति कह रहा है कि कठोर लोकपाल कानून बनना चाहिए लेकिन अलग अलग समूह इसी दावे पर अडिग हैं कि हमारा लोकपाल सबसे कठोर और कामयाब होगा और इससे ही भ्रष्टाचार का समूल नाश होगा ! खैर देश में पहले से ही मौजूद कानून की सैकड़ों की धाराओं के होने के बावजूद एक लोकपाल के आ जाने से स्थिति में क्या सुधार होगा ये तो भविष्य बतायेगा किंतु मैं व्यक्तिगतरूप से प्रत्येक भारतवासी की तरह ही लोकपाल का नैतिक समर्थक हूँ इसलिए इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा नहीं कर रहा हूँ !

मुझे इस आन्दोलन की आड़ में कुछ अतिमहत्वाकांक्षी लोगों की मंशा और नीयत पर संदेह होने लगा है ! सैध्दांतिक रूप से देखा जाय तो बाबा रामदेव का कालाधन सम्बंधी आंदोलन और अन्ना का जनलोकपाल आंदोलन दोनो ही देश हित में है लेकिन अन्नावादी ही क्या स्वयं अन्ना हजारे भी ये कह चुके हैं कि बाबा के मंच पर तथाकथित साम्प्रदायिक लोगों को बिठाना उचित नहीं है इसलिए वे बाबा के आंदोलन में मंच पर साथ नहीं आये ! इसका अर्थ ये है कि बाबा रामदेव के आंदोलन का अन्ना और उसकी निरंकुश टीम इसलिए समर्थन नहीं कर रही है क्योंकि बाबा के आंदोलन का तरीका सही नहीं है, तो क्या दूसरों को ये अधिकार नहीं होना चाहिए कि टीम अन्ना के आंदोलन को भी उसी कसौटी पर कसा जाये ! केजरीवाल कहते हैं हमारे उपर जो भी व्यक्तिगत आरोप है उनकी जाँच करवा लें और सजा दें लेकिन इसे जनलोकपाल से ना जोड़े ! मैं भी यही कहता हूँ जो भी साम्प्रदायिक है उसे सजा दें लेकिन कालाधन का मुद्दा तो साम्प्रदायिक नहीं उसे क्यूँ अछूत बना कर रखा  हुआ है ! ये कैसा दोहरा मापदण्ड !

आंदोलन की आड़ में ये कैसा चरित्र बना रखा है टीम अन्ना ने ! आंदोलन में पहले चरण में अप्रेल को जंतरमंतर पर मंच की पृष्ठभूमि में भारतमाता का चित्र..... किसी ने आरोप क्या लगा दिया कि ये RSS समर्थित आंदोलन है तो तत्काल घबराकर रातों रात भारत माता का चित्र गायब ..  भारतमाता का चित्र भी इनको साम्प्रदायिक लगने लगा ! आंदोलन के दूसरे चरण के अनशन में मंच की पृष्ठभूमि में भारतमाता के स्थान पर महात्मा गाँधी जी को प्रतिनियुक्ति पर लाया गया ! चलो समझ आया कि टीम विवादों से दूर रहना चाहती है लेकिन पहले अनशन के दौरान इनके धवल चरित्र पर हल्का फुल्का जो गेरूआ दाग रह गया था क्या उसे धोने के लिए विशुध्द धर्मनिरपेक्ष बुखारी वाशिंग पावडर का इस्तेमाल किया और चमक लाने के लिए दलित और मुस्लिम कन्याओं द्वारा अंतिम दिन इसे पवित्र जल से धोया गया ! इसी बीच बँधुआ मजदूर उध्दारक बाबा अमरनाथ के अनन्य भक्त अशुध्द आर्यसमाजी की पगड़ी खुल गई और इन्हे लगने लगा कि स्वामी जी का नग्नशीश कश्मीर जैसा अत्यंत अश्लील है इसे हटा दिया जाय !



आंदोलन के इस चरण की एक विशेषता ये भी रही कि भारतीय आम जनता बहुतायत में सिनेमा एवं कलाप्रेमी होती है तो शायद उनके भावनाओं का सम्मान करते हुए कालभैरव के भक्त ओमपूरी और डंडा प्रेमी किरण बेदी द्वारा उच्च कोटि की कलात्मक प्रस्तुति भी की गई ! खैर प्रधानमंत्री के आश्वासन पत्र को विजयी प्रमाण पत्र घोषित कर पूरे देश में विश्वकप  जीतने जैसा जश्न मनाया गया !

आन्दोलन के दूसरे चरण के बाद चाहे वो मिडिया के सहारे ही क्यों ना हो अन्ना हजारे की छवि एक राष्ट्रीय जननायक की बनी ! खैर मिडिया को जाने दे वो तो टीआरपी के चक्कर में अन्ना के नित्यकर्म कर्म को भी दिखाने में पीछे ना हटी और उन्हे नत्था का दर्जा दे दिया ! लेकिन इस बीच हिसार उपचुनाव प्रकरण से कोर कमेटी के दो महत्वपूर्ण सदस्यों, वी. पी. राजगोपाल और पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद सिंह के इस्तीफे और जस्टिस संतोष हेगड़े की सार्वजनिक असहमति टीम अन्ना के स्वघोषित झण्डाबरदारों के कार्यशैली पर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा दिया ! राजू पारुलकर का ब्लाग प्रकरण इनके निरंकुशता का प्रमाण है जिसमें इन झण्डाबरदारों ने स्वयं अन्ना को भी ये कहने पर मजबूर कर दिया कि कोर कमेटी का पुर्गठन की बात मैने नहीं कही लेकिन जब राजू ने उनके हस्तलिखित पत्र को सार्वर्जनिक किया तो एक अजीबोगरीब स्पष्टीकरण अन्ना के ओर से आया कि लिखा तो मैने ही है किंतु इसमें हस्ताक्षर नहीं किया ! बड़ा विचित्र है, स्वयं लिखा किंतु हस्ताक्षर नहीं किया ! ठीक है इसे अधिकारिक नहीं मानते लेकिन तो तय है कहीं ना कहीं अन्ना हजारे के मन में भी झण्डाबरदारों के प्रति मलाल तो है ! इन बातों का उल्लेख केवल इसलिए कर रहा हूँ कि अन्ना के निर्णय कहीं इन्ही रिमोटों से संचालित तो नहीं !

शरद पवार के चमाट प्रकरण पर स्वयं को गाँधी का अधिकारिक अनुयायी घोषित करने वाले अन्ना द्वारा ये कहना कि बस एक ही मारा अत्यंत आपत्तिजनक है ! यद्यपि ये एक साधारण वक्तव्य है किंतु अन्ना अब कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं ! उनके द्वारा दिया गया कोई भी बयान आम लोगों के बीच एक विशिष्ट महत्व रखता है किंतु उससे भी महत्वपूर्ण अन्ना का ये कहना कि वक्त पड़ने पर शिवाजी भी बनना पड़ता है ज्यादा विचारणीय हो गया जब अनशन के तीसरे चरण में महात्मा गाँधी की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर मंच की पृष्ठ भूमि उनके चित्र के स्थान पर डंडायुक्त तिरंगे को स्थापित किया गया ! ये सारी बातें आपको यद्यपि छोटी और गौण लग सकती है लेकिन इस पर गहन चिंतन किया जाय तो आंदोलनो के झंडाबरदारों की कार्यशैली पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है !

11 दिसम्बर को अनशन के ठीक पूर्व एक टीवी चेनल को दिये इंटरव्ह्यू में अन्ना द्वारा राहुल गाँधी को देश का युवा और उर्जावान नेतृत्व बताया गया लेकिन थोड़ी देर बाद ही मंच पर उन्होने जो टिप्पणी की उसे सारे देश ने देखा ! राहुल गाँधी कितने उर्जावान और योग्य है ये एक अलग बहस का मुद्दा है लेकिन अन्ना और केजरीवाल के भाषण की शब्दावली और भाषा शैली की समानता ये सोचने को मजबूर करती है कि अन्ना ने जो मंच पर कहा वो उनका स्वयं का विचार है या जबरन थोपा गया है !

केजरीवाल कहते हैं कि हमारे इस आन्दोलन में RSS और BJP का कोई व्यक्ति शामिल नहीं है सभी आन्दोलनकारी आम भारतीय हैं क्या इन संगठनो से जुड़े लोग भारतीय नहीं हैं ! कई काँग्रेसी भी इस आन्दोलन का समर्थन कर रहें है ! क्या विभिन्न राजनैतिक दलो या मतो के लोग पूरे मनोयोग से यदि लोकपाल को समर्थन कर रहें है इसमें आपत्ति क्या है , क्या वे भारतीय नहीं ? क्या अब सच्चे भारतीय होने का प्रमाण पत्र केजरीवाल देंगे और बुकरीबाई तथा कश्मीरीलाल भूषण जैसे लोग हमारी राष्ट्रभक्ति और निष्ठा तय करेंगे ? ऐसे ही एक नवजात स्वघोषित मंचीय नेता है कुमार विश्वास जिन्होने एक प्रेम गीत लिखकर स्वयंभू जयशंकर प्रसाद और हरिवंशराय बच्चन बने बैठे हैं और स्वयं को इतना बड़ा जननायक मानने लगे है कि अपने भाषणों में बाबा रामदेव के सलवार सूट पहन कर भाग जाने का जिक्र कर जनलोकपाल आन्दोलन की गति को तीव्र कर रहें हैं ! इससे तो ऐसा ही लगता है कि या तो इन ओछे लोगों को अनायास रातों रात मिली प्रसिध्दि हजम नहीं हो पा रही और ये बौरा गये है या फिर इनका वास्तविक जीवन चरित्र ही ऐसा है ! लेकिन सावधान टीम अन्ना, ध्यान रहे ये अपार जनसमर्थन तुम्हे नहीं, मँहगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता का व्यवस्था के प्रति आक्रोश और असमर्थन है ! अभी तुम्हारी ये अखबारी प्रसिध्दि जनभावनाओं की हवा की दिशा के साथ है ज्यादा इतराकर उड़ने की गलती मत करो ! किसी दिन हवा का रूख बदल गया तो एक झोंके से ही तुम्हारे अखबारी आवरण के फटने में समय नहीं लगेगा और सरे राह नग्न नजर आओगे !



इन सभी घटनाओं से एक गंभीर विचारणीय तथ्य ये सामने आता है कि क्या एक जनहित में कानून बनाने के हेतु जनांदोलन खड़ा करने के लिए इतने ओछे स्तर पर गिरना होगा ! यदि ये ही आवश्यक है तो हमारे राजनेता, हमारे जननेता, हमारी विधायिका और हम स्वयं किस दिशा की ओर अग्रसर है और किस विकास क्रम में है इस पर चिंतन मनन आवश्यक है  !! जय हो !! 

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

फेसबुक टेली ब्रांड स्काई शॉप


कुछ दिनों  पहले तक मैं बहुत हताआश और निराआआश था !

रात रात भर जाग गँभीर मुद्दों का अध्ययन करताआआआ था !

फिर सुबह तीन बजे उस पर एक लेख लिख फेसबुक पर चिपकाताआआ था  !

लेकिन दो तीन लाईक्स और ढाई कामेंट्स से ज्यादा कुछ नहीं मिलताआआआआ था !

फिर एक अनुभवी फेसबुकिए ने सलाआआआआआह दी

अन्ना और बाबा को बुरा भला कहो

मैंने उसकी बात मानकर एक पोस्ट में अन्ना को गन्ना कहाआआआआआआ !

बाबा वादियों ने लाईक्स और अन्ना वादियों ने लानत मलामत के कामेंट्स की बौछाआआआर  कर दी !

फिर मैंने दूसरे पोस्ट में बाबा को भगौड़ा कहाआआआआआआआ !

अब अन्ना वादियों ने लाईक्स और बाबा वादियों ने लानत मलामत के कामेंट्स की बौछाआआआर कर दी !

कुछ दिनों तक मैं इस नये तरकीब से बहुत खुश था !

लेकिन एक दिन लोगों को मेरे इस तरकीब का पता चल गयाआआआआआ !

मेरा पोस्ट फिर से मधु कौड़ा की तरह उपेक्षित हो गया !

मैं बहुत निराशा और अवसाद से भर गया !

फिर एक दिन मेरी एक लड़कीनुमा फेसबुकिये के पोस्ट पर नजर पड़ी

उसके छींक पर  420 लाईक्स और 376 कामेंट्स थे

मुझे ये आईडिया पसंद आया मैंने भी अपना प्रोफाईल चेंज कर अपना नाम आशा की किरण रखा और टालीवुड की गुमनाम हिरोईन की सुंदर सी तस्वीर लगा ली !

अब मैं बहुत खुश हूँ ..  मेरे पोस्ट पर लाईक्स और कामेंट्स की बौछार से नेटवर्कजाम हो जाता है !

फ्रेंण्ड रिक्वेस्ट की संख्या तीन बार 5000 से पार हो चुकी है अब मैं अपना एक पेज बना लिया हूँ !  

कल ही मैंने अपने प्रेशर कुकर के खराब होने की खबर पोस्ट की ! लोगो ने लोकपाल की जगह मेरे कुकर रिपेयरिंग को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया ! 5000 लाईक्स और मेरे कुकर को बनाने हेतु निर्माता कम्पनी को चेतावनी भरे 6000 कामेंट्स मिले और फिर 1000 नारी शोषण मुक्ति मोर्चा के भले लोगों ने इस पोस्ट को शेयर किया जिससे कि सारे कुकर कम्पनी वाले मुझे उनका नाम ना घसीटने के बदले एक एक कुकर मुफ्त देने का ऑफर सहित विनती करने लगे !

आज मैंने गली के मोड़ पर इन्ही कुकरों की सेल लगाई है !

अब मैं फेसबुक पर बहुत नामचीन और लोकप्रिय हूँ !

आप भी अगर इस समस्या से परेशान है तो बस इतना करें !

एडिट प्रोफाईल में जाकर अपना नाम और प्रोफाईल फोटो बदल दें !

ये वाकई असरकारक है ..  आजमाकर देखें निश्चित फायदा होगा और कोई साईड इफेक्ट भी नहीं है !

आज ही आजमायें , अधिक जानकारी के  लिए हमारे टोल फ्री नम्बर पर 100 रू का ई रिचार्ज करवा कर मिस काल करें सर्विस टैक्स एक्ट्रा !  

अभी प्रोफाईल चेंज करने पर पर आप पायेंगे 480 लाईक्स और 200 कामेंट्स फ्री !  

वैधानिक चेतावनी – ये एक पेड विज्ञापन है इस पर किये गये दावे से फेसबुक या ब्लागर का कोई सम्बंध नहीं है इसे आप अपने रिस्क पर आजमायें !

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

महाराज का FDI आशंका निर्मूलन प्रवचन

दो दिन से लोगों ने जीना हराम कर दिया है लेकिन शिकायत भी किससे करें ! सारी गलती हमारी खुद की है ! सारा देश सर्दी पावर के चमाट प्रकरण पर मस्ती  में झूमकर एक सुर में गा रहा था

चाँटा लगाआआआआआआ
हाय लगा हाय लगा,
थोबड़ा में पीछे से, कनपट्टी के नीचे ,
चाँटा लगाआआआआआआ !

वो तो हमारे छोटे दिमाग में खुजली हो गई जो जेएनयू बुध्दजीवी टाईप कामरेडी बनने के चक्कर में पब्लिकली ये गाना गा बैठे 

व्हाय दिस कोलावेरी कोलावेरी कोलावेरी डी
तुम्म चाँटा लागा के खुश होईन्ग होईन्ग
मन्नू मण्डली वालमार्ट को घुसेड़िन्ग घुसेड़िन्ग
पा पप्पा पें पा पप्पा पें पा पप्पा पें पा पप्पा पें पें
ओ के ममा ट्यून चेन्जा
, ओंन्ली ईंगलिस आँ
मन्नू कलर व्हाईट व्हाईट  एफडीआई रिटेल ब्लेक ब्लेक
इंडिया आ के लूटिन्ग लूटिन्ग
मरिन्ग मरिन्ग, हन्ग्री मरिन्ग, परचून बनिया हन्ग्री मरिन्ग
व्हाय दिस कोलावेरी कोलावेरी कोलावेरी डी

बस क्या था सारे लोगों ने हमको सिरीयसली ले लिया और चाँटा त्यौहार का नशा उतरते ही चालू हो गये टाँग अड़ाऊल प्रोग्राम में ! बस अब जिसे देखो रिटेल व्यापार में विदेशी निवेश को लेकर चारो तरफ हो हल्ला मचा रहा है ! नंग ढड़ंग टीवी यानी NDTV टीवी पर रविश बाबू कुछ बकरूद्दीन टाईप के लोगों को बिठाकर पंचायती करने लग गये और ये सरदारी बेगम का कुनबा अपना बचाव करने के लिए रिजेक्टेड गुड्स भागदुमदबाके पाल बाबू को भेज कर अपना छिछालेदर करवा रही थी ! अब मामला बिगड़ते देख बाबू मोसाय को आधी रात में संकटमोचक महाराज यानी हमारी याद आई ! साले पहले तो शौच कर देते हैं और जब बदबू फैलने लगती है तब हमारी याद आती है ! खैर बाबू मोसाय ने डाईरेक्ट हमसे फोन किया लेकिन हमने बरसाती गन्ना खुजारे के फोन पर काल डायवर्ट कर दिया जिसने मौका पाकर गन्ना बाबू फिर से टोपी धोकर अनशन अनशन खेलने का अल्टीमेटम देकर नई मुसीबत पैदा कर दिया !

लेकिन बाबू सरकारी डण्डे में बड़ी ताकत होती है ! हमने देखा है भाई, रामू बाबा की धोती को आधी रात में जबरन सिलाई कर सलवार सूट बना दिया था ! लोकल पुलिस द्वारा हमें आधी रात को किडनेप पर थाने लाया गया ! हमने बाबा रामू के प्रकरण से सीख लेकर तुरंत अपने पिछवाड़े के सम्मान की रक्षा करते हुए ससम्मान आत्म समर्पण किया और बाबू मोसाय से वायरलेस वाकीटाकी में बात करने में भलाई समझी !

बाबू मोसाय ने आदेशात्मक लहजे में हमसे निवेदन किया महाराज ये FDI प्रकरण से हमारी रक्षा करो ! हमने कहा भाई मना कर दो ये साले अपने बाप अमेरिका के नहीं हुए तो हमारे क्या होंगे, नुकसान ही होगा ! लेकिन बाबू मोसाय ने कहा महाराज मन तो हमारा भी नहीं है लेकिन क्या करें मना करें भी तो किसके दम पर ! ये अमेरिका ही तो जबरदस्ती कर रहा है अपनी मुसीबत हमारे गले डाल रहा है और आप तो जानते हो उसको मना करने से कोई भी बहाना बना कर एयरपोर्ट पर सुरक्षा चेकिंग के नाम से नंगा कर द्रोणाचार्य से हमले की धमकी देता है ! कुछ करो महाराज अब इधर उत्तरप्रदेश में भी बबलू भाई की बारात ले जाकर वरमाला पहनना हैं !  

हमने मौके की नजाकत को भाँप कर सोचा चलो थोड़ा जनता की भलाई भी कर देते हैं कहा देखो बाबू मोसाय मामला चारों तरफ से घिर गया है इसलिए आप एक काम करो सबसे पहले अपने गेंग के परचून दुकानदारों के द्वारा हमें मीडिया में उनका वरिष्ठ मार्गदर्शक और हितैषी घोषित करने का जुगाड़ करो और जब तक हम कुछ जुगाड़ करें तब तक आम जनता को पेट्रोल का रेट एक रूपया कम करने का पुड़िया छोड़कर मीडिया में माहौल डायवर्ट करने का प्रयास करो ! सुबह तक कुछ ना कुछ उपाय सोचतें हैं !
  
  खैर बाबू मोसाय ने सुबह परचून दुकानदारों की सभा का आयोजन कर मीडीया में लाईव टेलिकास्ट का जुगाड़ कर दिया ! शुरूआत में समाजवादी जंगी नारों से माहौल गरमा गया लेकिन हमने तत्काल माइक सम्भाल कर परचूनिस्ट लोगों को चेलेंज किया एफडीआई को लेकर जो भी शंका हो हमसे पूछें सबका उत्तर दिया जायेगा ! लोगों ने फरियाद की महाराज ये सरदारी बेगम की जादूगरी सरकार आम लोगों की दुश्मन है छोटे व्यापारियों को भूखे मारने पर तुली हुई है ! हमने कहा भाई ये ये विदेशी कम्पनी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते ! हमारी पिच पर हम शेर हैं देखा नहीं इंग्लैण्ड की टीम का हश्र जिसने अपने देश में हमारी टीम की लुटिया डुबो दी थी उसी टीम को कैसा पटखनी देकर धूल चटाया ! इंडिया की पिच पर हम ही शेर हैं ये वालमार्ट का बाप भी हमारा कुछ नहीं उखाड़ सकता !

अरे भाई ये रिलायंस वाला अम्बानी भी तो सब्जी और बिग बाजार वाला दाल तेल नमक बेच रहा है कि नही ! क्या इससे तुम्हारी दुकान बन्द हो गयी ... परचूनिस्ट लोगों ने कहा नहीं महाराज ! इसका कारण जानते हो क्यों ..  परचूनिस्ट बोले आप ही बताओ महाराज ! हमने बड़े गर्वपूर्वक दार्शनिक अंदाज में कहा ... हमारी जनता का परचेजिंग सिस्टम ही बड़ा अजीब है भले जेब में पैसा हो लेकिन खरीदेंगे उधारी में ही अब वालमार्ट उधारी तो देगा नहीं तो कौन अपनी प्राचीन संस्कृति को भूलकर नगद खरीदने इनके दुकान जायेगा ! सालों का दुकान दो दिन में बंद हो जायेगा रिलायंस फ्रेश की तरह ! तुम लोग चिंता ना करो ! जो थोड़े बहुत डेड़ होशियार टाइप के नगद खरीदार हैं वे भी दो दिन फैशन के लिए वालमार्ट जायेंगे फिर जब जेब से पैसा खतम हो जायेगा और तनख्वाह टाईम से नहीं मिलेगी तो आपके ही दुकान में आयेंगे उधारी खरीदने ! इसलिए टेन्शन लेने का नहीं ऐसे कई इस्ट इंडिया कम्पनी आये और गये तुम्हारा धन्धा सदाबहार था, है और बना रहेगा !

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

भारतीय खुदरा बाजार क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश - कुछ जिज्ञासायें


भारतीय खुदरा बाजार क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अर्थात FDI इन दिनों काफी चर्चा में है और जिसके कारण संसद भी ठप्प है या आप ये भी कह सकते है कि ठप्प करने के लिए इस बार ये बहाना बनाया गया है ! बड़े बड़े तकनीकी शब्दावलियों , उदाहरणों के द्वारा पक्ष और विपक्ष में लोगों के तर्क-वितर्क भी पढ़ने सुनने को मिला ! इस प्रकरण पर कई विद्वानों के मतों के अध्ययन के बावजूद मैं अपने आप को असमंजस की स्थिति में पा रहा हूँ ! लेकिन इस मुद्दे पर कुछ सामान्य से प्रश्नों के उत्तर धरातल पर नहीं मिल पा रहें हैं !

एक परिस्थिति की कल्पना करें !  माना आज सब्जी मार्केट में 1 किलो मटर 50 रू किलो मिल रहा है और उस मटर का मूल्य उसके उत्पादक किसान को 10 रू मिल रहा है ! अब उसे वालमार्ट किसानो से सीधे खरीद कर 40 रू में बेचेगा !

जिज्ञासा प्रकरण एक -  क्या गारंटी है कि किसान को वालमार्ट 20 रू भी देगा ! क्या इस पर सरकार समर्थन मूल्य निर्धारित कर पायेगी बल्कि इसकी सम्भावना ज्यादा है कि वालमार्ट जैसी कम्पनियाँ मण्डियों को समाप्त कर सीधे किसान से माल खरीदेगी और कुछ समय पश्चात एक मात्र थोक खरीदार बन कर पर इसकी मूल्य निर्धारक बन जायेगी और कमोबेश किसान को अभी जो 10 रू मिल रहा है उसे मजबूरी में 8 रू में बेचना पड़े ! क्योंकि उस सरकार से जो पेट्रोलियम को नियंत्रण मुक्त कर दी है वो दैनिक उपभोग के वस्तुओं पर मूल्य नियंत्रण करेगी ! रही बात किसानो के फायदे कि तो आज भी लेस कम्पनी सैफ खान के साथ साम्भा डांस के साथ जो 800 रू किलो आलू चिप्स बेच रही है वो आलू किस कीमत पर खरीद रही है !

जिज्ञासा प्रकरण दो - ठीक है ग्राहक को प्रत्यक्ष फायदा 10 रू का हुआ लेकिन वालमार्ट शहर के गली गली में अपने रिटेल स्टोर तो खोलेगा नहीं और ग्राहक को इन छोटी छोटी जरूरतों के लिए कम से कम 10-20 किमी की यात्रा करनी पड़ेगी ! तो उस पर खर्च होने वाला ईंधन व्यय और पार्किंग का अप्रत्यक्ष व्यय जिसे आम तौर पर लोग नजरंदाज करते हैं उसे खर्च में जोड़ा जाय तो वास्तविक मूल्य आभासी मूल्य से कहीं अधिक ही होगा !

जिज्ञासा प्रकरण तीन – अभी जो खुले बाजार में मटर 50 रू किलो बिक रहा है उसे प्रारंभ में वालमार्ट हो सकता है 30 रू में बेचे लेकिन इसकी पूरी सम्भावना है कि छोटे कोचियों के दुकान बंद होने के बाद यही उसे 80 रू में भी बेच सकता है ! इसके पीछे मेरा स्व अनुभव है !  छत्तीसगढ़ में पहले छोटी छोटी काफी सीमेंट उत्पादक कारखाने थे फिर एक बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी का पदार्पण हुआ जो अपने उत्पादन मूल्य से भी कम अथवा बराबर मूल्य में सीमेंट बेचना चालू की जो इन स्थानीय उत्पादकों के मूल्य से भी काफी कम थी ! इस कम्पनी का एक डीलर मेरा धनिष्ठ मित्र था उससे मैंने जिज्ञासावश इस बारे में पूछा कि इतने कम दाम में ये कम्पनी सीमेंट कैसे बेच रही है तो उसने मुझे कहा कम्पनी अपना पैर जमाने के लिए अभी प्रमोशनल के तौर पर घाटा  उठाकर लागत मूल्य पर बेच रही है ! लेकिन कम्पनी की रणनीति मुझे तब समझ आई जब स्थानीय उत्पादक उस मूल्य से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके और साल भर के अंदर ही आर्थिक बदहाली का शिकार होकर कारखाने बंद हो गये ! जैसे ही सीमेंट की स्थानीय फैक्ट्रियाँ बंद हुई वैसे ही उस मल्टीनेशनल कम्पनी ने अपने दाम तीन महीनो के भीतर ही दुगुने कर दिया और सामाज्य पर एकाधिकार कर पुराने घाटों की भरपाई कर आज तक मलाई चाट रही है ! आज भी देखा जाय तो हमारी ही जमीन से कौड़ियों के भाव पर रायल्टी पटा कर लाईम स्टोन का उत्खनन कर हमें अपने सुविधानुसार बेलगाम कीमतों पर सीमेंट बेच रही है ! कोई विषेशज्ञ हो तो बतायें सीमेंट का उत्पादन मूल्य और विक्रय मूल्य का अंतर कितना है ?

जिज्ञासा प्रकरण चार - फिर वालमार्ट जो मुनाफा यहाँ से कमायेगा उसे डॉलर में बदलकर भारत से बाहर ले जायेगा जिससे मुद्रा का अवमूल्यन नहीं होगा क्या ? क्या इससे हमारी कमाई का एक बड़ा हिस्सा जो आज देश के अंदर ही सर्कुलेट हो रहा है उसके देश के बाहर जाने पर एक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी !