मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

जनलोकपाल , अन्नाचरण एवं अन्ना नियंत्रक टीम


कल मैंने अपने फेसबुक स्टेट्स एवं कुछ समूहों में जनलोकपाल के लिए हो रहे आंदोलन में अन्ना द्वारा किये जा रहे पिछले तीन अनशनो के दौरान मंच की पृष्ठभूमि की कुछ तस्वीरों को चिपकाया जो उपर भी दृष्य है! इस पर काफी अंध अन्ना भक्तों ने मुझे काँग्रेसी एवं देशद्रोही की उपाधि से सम्मानित किया ! उन सभी शुभचिंतकों का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हुए प्रार्थना है कि “उपरवाला” उनकी दुआओं में असर पैदा करे और बड़ी मम्मी की कृपा पाकर मैं भी राष्ट्राधिनायकों के चौपाल में बतौर सदस्य शामिल होकर अपने कृत्यों एवं आचरणों हेतु लोकपाल के दायरे से बाहर हो जाऊँ!

खैर ये व्यक्तिगत प्रलाप है ! मुद्दे की बात ये है कि देश में हरेक व्यक्ति कह रहा है कि कठोर लोकपाल कानून बनना चाहिए लेकिन अलग अलग समूह इसी दावे पर अडिग हैं कि हमारा लोकपाल सबसे कठोर और कामयाब होगा और इससे ही भ्रष्टाचार का समूल नाश होगा ! खैर देश में पहले से ही मौजूद कानून की सैकड़ों की धाराओं के होने के बावजूद एक लोकपाल के आ जाने से स्थिति में क्या सुधार होगा ये तो भविष्य बतायेगा किंतु मैं व्यक्तिगतरूप से प्रत्येक भारतवासी की तरह ही लोकपाल का नैतिक समर्थक हूँ इसलिए इसकी प्रासंगिकता पर चर्चा नहीं कर रहा हूँ !

मुझे इस आन्दोलन की आड़ में कुछ अतिमहत्वाकांक्षी लोगों की मंशा और नीयत पर संदेह होने लगा है ! सैध्दांतिक रूप से देखा जाय तो बाबा रामदेव का कालाधन सम्बंधी आंदोलन और अन्ना का जनलोकपाल आंदोलन दोनो ही देश हित में है लेकिन अन्नावादी ही क्या स्वयं अन्ना हजारे भी ये कह चुके हैं कि बाबा के मंच पर तथाकथित साम्प्रदायिक लोगों को बिठाना उचित नहीं है इसलिए वे बाबा के आंदोलन में मंच पर साथ नहीं आये ! इसका अर्थ ये है कि बाबा रामदेव के आंदोलन का अन्ना और उसकी निरंकुश टीम इसलिए समर्थन नहीं कर रही है क्योंकि बाबा के आंदोलन का तरीका सही नहीं है, तो क्या दूसरों को ये अधिकार नहीं होना चाहिए कि टीम अन्ना के आंदोलन को भी उसी कसौटी पर कसा जाये ! केजरीवाल कहते हैं हमारे उपर जो भी व्यक्तिगत आरोप है उनकी जाँच करवा लें और सजा दें लेकिन इसे जनलोकपाल से ना जोड़े ! मैं भी यही कहता हूँ जो भी साम्प्रदायिक है उसे सजा दें लेकिन कालाधन का मुद्दा तो साम्प्रदायिक नहीं उसे क्यूँ अछूत बना कर रखा  हुआ है ! ये कैसा दोहरा मापदण्ड !

आंदोलन की आड़ में ये कैसा चरित्र बना रखा है टीम अन्ना ने ! आंदोलन में पहले चरण में अप्रेल को जंतरमंतर पर मंच की पृष्ठभूमि में भारतमाता का चित्र..... किसी ने आरोप क्या लगा दिया कि ये RSS समर्थित आंदोलन है तो तत्काल घबराकर रातों रात भारत माता का चित्र गायब ..  भारतमाता का चित्र भी इनको साम्प्रदायिक लगने लगा ! आंदोलन के दूसरे चरण के अनशन में मंच की पृष्ठभूमि में भारतमाता के स्थान पर महात्मा गाँधी जी को प्रतिनियुक्ति पर लाया गया ! चलो समझ आया कि टीम विवादों से दूर रहना चाहती है लेकिन पहले अनशन के दौरान इनके धवल चरित्र पर हल्का फुल्का जो गेरूआ दाग रह गया था क्या उसे धोने के लिए विशुध्द धर्मनिरपेक्ष बुखारी वाशिंग पावडर का इस्तेमाल किया और चमक लाने के लिए दलित और मुस्लिम कन्याओं द्वारा अंतिम दिन इसे पवित्र जल से धोया गया ! इसी बीच बँधुआ मजदूर उध्दारक बाबा अमरनाथ के अनन्य भक्त अशुध्द आर्यसमाजी की पगड़ी खुल गई और इन्हे लगने लगा कि स्वामी जी का नग्नशीश कश्मीर जैसा अत्यंत अश्लील है इसे हटा दिया जाय !



आंदोलन के इस चरण की एक विशेषता ये भी रही कि भारतीय आम जनता बहुतायत में सिनेमा एवं कलाप्रेमी होती है तो शायद उनके भावनाओं का सम्मान करते हुए कालभैरव के भक्त ओमपूरी और डंडा प्रेमी किरण बेदी द्वारा उच्च कोटि की कलात्मक प्रस्तुति भी की गई ! खैर प्रधानमंत्री के आश्वासन पत्र को विजयी प्रमाण पत्र घोषित कर पूरे देश में विश्वकप  जीतने जैसा जश्न मनाया गया !

आन्दोलन के दूसरे चरण के बाद चाहे वो मिडिया के सहारे ही क्यों ना हो अन्ना हजारे की छवि एक राष्ट्रीय जननायक की बनी ! खैर मिडिया को जाने दे वो तो टीआरपी के चक्कर में अन्ना के नित्यकर्म कर्म को भी दिखाने में पीछे ना हटी और उन्हे नत्था का दर्जा दे दिया ! लेकिन इस बीच हिसार उपचुनाव प्रकरण से कोर कमेटी के दो महत्वपूर्ण सदस्यों, वी. पी. राजगोपाल और पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद सिंह के इस्तीफे और जस्टिस संतोष हेगड़े की सार्वजनिक असहमति टीम अन्ना के स्वघोषित झण्डाबरदारों के कार्यशैली पर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह लगा दिया ! राजू पारुलकर का ब्लाग प्रकरण इनके निरंकुशता का प्रमाण है जिसमें इन झण्डाबरदारों ने स्वयं अन्ना को भी ये कहने पर मजबूर कर दिया कि कोर कमेटी का पुर्गठन की बात मैने नहीं कही लेकिन जब राजू ने उनके हस्तलिखित पत्र को सार्वर्जनिक किया तो एक अजीबोगरीब स्पष्टीकरण अन्ना के ओर से आया कि लिखा तो मैने ही है किंतु इसमें हस्ताक्षर नहीं किया ! बड़ा विचित्र है, स्वयं लिखा किंतु हस्ताक्षर नहीं किया ! ठीक है इसे अधिकारिक नहीं मानते लेकिन तो तय है कहीं ना कहीं अन्ना हजारे के मन में भी झण्डाबरदारों के प्रति मलाल तो है ! इन बातों का उल्लेख केवल इसलिए कर रहा हूँ कि अन्ना के निर्णय कहीं इन्ही रिमोटों से संचालित तो नहीं !

शरद पवार के चमाट प्रकरण पर स्वयं को गाँधी का अधिकारिक अनुयायी घोषित करने वाले अन्ना द्वारा ये कहना कि बस एक ही मारा अत्यंत आपत्तिजनक है ! यद्यपि ये एक साधारण वक्तव्य है किंतु अन्ना अब कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं ! उनके द्वारा दिया गया कोई भी बयान आम लोगों के बीच एक विशिष्ट महत्व रखता है किंतु उससे भी महत्वपूर्ण अन्ना का ये कहना कि वक्त पड़ने पर शिवाजी भी बनना पड़ता है ज्यादा विचारणीय हो गया जब अनशन के तीसरे चरण में महात्मा गाँधी की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर मंच की पृष्ठ भूमि उनके चित्र के स्थान पर डंडायुक्त तिरंगे को स्थापित किया गया ! ये सारी बातें आपको यद्यपि छोटी और गौण लग सकती है लेकिन इस पर गहन चिंतन किया जाय तो आंदोलनो के झंडाबरदारों की कार्यशैली पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है !

11 दिसम्बर को अनशन के ठीक पूर्व एक टीवी चेनल को दिये इंटरव्ह्यू में अन्ना द्वारा राहुल गाँधी को देश का युवा और उर्जावान नेतृत्व बताया गया लेकिन थोड़ी देर बाद ही मंच पर उन्होने जो टिप्पणी की उसे सारे देश ने देखा ! राहुल गाँधी कितने उर्जावान और योग्य है ये एक अलग बहस का मुद्दा है लेकिन अन्ना और केजरीवाल के भाषण की शब्दावली और भाषा शैली की समानता ये सोचने को मजबूर करती है कि अन्ना ने जो मंच पर कहा वो उनका स्वयं का विचार है या जबरन थोपा गया है !

केजरीवाल कहते हैं कि हमारे इस आन्दोलन में RSS और BJP का कोई व्यक्ति शामिल नहीं है सभी आन्दोलनकारी आम भारतीय हैं क्या इन संगठनो से जुड़े लोग भारतीय नहीं हैं ! कई काँग्रेसी भी इस आन्दोलन का समर्थन कर रहें है ! क्या विभिन्न राजनैतिक दलो या मतो के लोग पूरे मनोयोग से यदि लोकपाल को समर्थन कर रहें है इसमें आपत्ति क्या है , क्या वे भारतीय नहीं ? क्या अब सच्चे भारतीय होने का प्रमाण पत्र केजरीवाल देंगे और बुकरीबाई तथा कश्मीरीलाल भूषण जैसे लोग हमारी राष्ट्रभक्ति और निष्ठा तय करेंगे ? ऐसे ही एक नवजात स्वघोषित मंचीय नेता है कुमार विश्वास जिन्होने एक प्रेम गीत लिखकर स्वयंभू जयशंकर प्रसाद और हरिवंशराय बच्चन बने बैठे हैं और स्वयं को इतना बड़ा जननायक मानने लगे है कि अपने भाषणों में बाबा रामदेव के सलवार सूट पहन कर भाग जाने का जिक्र कर जनलोकपाल आन्दोलन की गति को तीव्र कर रहें हैं ! इससे तो ऐसा ही लगता है कि या तो इन ओछे लोगों को अनायास रातों रात मिली प्रसिध्दि हजम नहीं हो पा रही और ये बौरा गये है या फिर इनका वास्तविक जीवन चरित्र ही ऐसा है ! लेकिन सावधान टीम अन्ना, ध्यान रहे ये अपार जनसमर्थन तुम्हे नहीं, मँहगाई और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता का व्यवस्था के प्रति आक्रोश और असमर्थन है ! अभी तुम्हारी ये अखबारी प्रसिध्दि जनभावनाओं की हवा की दिशा के साथ है ज्यादा इतराकर उड़ने की गलती मत करो ! किसी दिन हवा का रूख बदल गया तो एक झोंके से ही तुम्हारे अखबारी आवरण के फटने में समय नहीं लगेगा और सरे राह नग्न नजर आओगे !



इन सभी घटनाओं से एक गंभीर विचारणीय तथ्य ये सामने आता है कि क्या एक जनहित में कानून बनाने के हेतु जनांदोलन खड़ा करने के लिए इतने ओछे स्तर पर गिरना होगा ! यदि ये ही आवश्यक है तो हमारे राजनेता, हमारे जननेता, हमारी विधायिका और हम स्वयं किस दिशा की ओर अग्रसर है और किस विकास क्रम में है इस पर चिंतन मनन आवश्यक है  !! जय हो !! 

5 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा लिखा है आपने। एक एंगल से लिखा है और इसमे दोष तलाशे हैं। निश्चित ही विश्वास और भूषण को आंदोलन से सबद्ध होने के बाद प्रतिक्रिया या क्रिया मे सचेत होना चाहिये। खैर अभी पासा खुलाह ै चौसर की बाजी लगी हुयी है खिलाड़ियो की प्रतिबद्धता एक हफ़्ते या दस दिन मे ही बाहर आ जायेगी। संयम के साथ देश हित के आंदोलन पर नजर रखनी चाहिये निजी प्रतिबद्धताये दिखाता भारतीय इस हालत मे पहुंचा अपनी कमी से ही है।

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  2. उस नजर के साथ विश्लेषण, जो भारत का हित चाहती है और साथ ही बताती है की अन्ना को भले ही मिडिया ने सर आँखों पर बैठा दिया हो, हम सब देख रहे हैं और दोगलापन एक सीमा तक ही बर्दाश्त किया जाएगा.

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  4. never ever think that this is only an newspaper shield ,in anna supporters include a well qualified person like me too a software engineer ,I don't know what's your qualification.Anna Hazare is a big personality in place of him just imagine if a common Indian person doing the fast and protest for Janlokpal then he would have crossed the limit upto kicking the politicians,officers. The movement is goin in a smooth way and you don't try to defame it.It's a voice of a common Indian man

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  5. ''इन ओछे लोगों को अनायास रातों रात मिली प्रसिध्दि हजम नहीं हो पा रही और ये बौरा गये है या फिर इनका वास्तविक जीवन चरित्र ही ऐसा है ! ''
    आपकी इन लाईनों से दो सौ फीसदी और बाकी सारी बातों से सौ फीसदी सहमत।
    देश के ज्‍वलंत मुद्दों पर मिले समर्थन को ये अपना समर्थन समझ रहे हैं, ये इनकी बडी भूल है....

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