रविवार, 25 नवंबर 2012

मोदी , मॉफी और मुसलमान

पिछले तीन दिनों से दूर-दर्शन मीडिया से दूर हूँ और आने वाले तीन दिनों तक भी यही स्थिति बनी रहेगी । लेकिन आज प्रात: दैनिक अखबारी भास्कर के दर्शन का अवसर मिला । एक छोटे से कालम पर नजर टिकी । जिस पर लिखा था – “ मोदी अगर मॉफी माँगे तो चुनाव में समर्थन”

खबर के कालम साईज को देखकर लगा कि कोई महत्वपूर्ण खबर होगी । जिसे ना चाहते हुए भी मजबूरी में छापना पड़ा होगा । खैर ये एमबीए सम्पादक की मजबूरी है या कर्तव्य इस पर बहस करने का कोई अर्थ नहीं लेकिन उनका सच्चे मन से कृतज्ञ हूँ कि विज्ञापनो और पेडन्यूज की भीड़ में मुद्दे की खबरों को अखबारों से ढूँढ-ढूँढ कर पढ़ने की कला तो उन्होने मुझे सिखा ही दी है ।

इस खबर के अनुसार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मुस्लिम संगठनों ने समर्थन की पेशकश की है। लेकिन इसके लिए शर्त रखी है। मुस्लिमों की 10 संस्थाओं की ज्वाइंट कमेटी ने कहा है कि मोदी यदि 2002 में हुए गुजरात दंगों के लिए माफी मांगते हैं तो उन्हें समर्थन की अपील की जा सकती है।

ज्वाइंट कमेटी के चेयरमैन सैयद शहाबुद्दीन ने शनिवार को कहा कि 'मुसलमानों के लेकर मोदी के नजरिए में बदलाव आ रहा है। मोदी और भाजपा गुजरात विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को खास तवज्जो दे रही है। लेकिन देश का मुस्लिम समुदाय 2002 का दंगा भूला नहीं है।' उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का दावा करने के बजाय मोदी मुस्लिम बहुलता वाली 20 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारें।

आबादी के हिसाब से मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व दें। शहाबुद्दीन ने कहा कि गुजरात में मुस्लिमों की आबादी 10 फीसदी है। ऐसे में एक-दो टिकट मुस्लिमों को देने का कोई मतलब नहीं है। शहाबुद्दीन ने 1984 के दंगे की तर्ज पर 2002 के दंगा पीडि़त मुस्लिमों के लिए मुआवजे की मांग की।

पूर्व आईएफएस ऑफिसर शहाबुद्दीन ने कहा कि 'हम मुस्लिम वोटरों को सलाह देते हैं वे अपना मत बंटने नहीं दें। एक साथ किसी एक को धर्म और पार्टी से ऊपर उठकर वोट करें। जो शिक्षा और रोजगार के साथ विकास के हर स्तरों पर हिस्सा सुनिश्चित करेगा, मुसलमान उसी को वोट देंगे।'

इस ज्वाइंट कमिटी के संगठन में जमीयत-उल-उलेमा हिंद, जमात-ए-इस्लामी हिंद, ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत, ऑल इंडिया मिली काउंसिल, मूवमेंट फॉर इंपावरमेंट ऑफ मुस्लिम इंडियंस, ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस, ऑल इंडिया शिया कांफ्रेंस, मरकाजी जमीयत-अहले हदिथ, इमारत-ए-शरिया और ऑल इंडिया मुस्लिम एजुकेशन सोसायटी शामिल है ।

मैं व्यक्तिगत रूप से उनके इस बयान का स्वागत करता हूँ कि मुसलमान वोटर धर्म और पार्टी से उपर उठकर शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर वोट दें । संविधान में लोकतंत्र की यही मूल आत्मा है । लेकिन उनके बयानो में उल्लेखित शर्तों से कई प्रश्न चिन्ह भी लगते हैं ।

क्या मोदी के केवल मॉफी माँगने से उनका कलंक धुल जायेगा और वे निर्दोष हो जायेंगे और यदि मॉफी नहीं माँगेंगे तो वे मौत के सौदागर कहलायेंगे ? मैं मोदी के इस बयान से पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूँ कि उन्हे भारतीय संविधान और कानून के प्रावधानों के अनुसार न्यायालय द्वारा या तो निर्दोष घोषित किया जाय या फिर दोषी पाये जाने पर उन्हे विधि सम्मत सजा दी जाय । दोनो ही स्थिति में मॉफी माँग कर बरी होना गलत है ।

क्या धर्मनिरपेक्ष प्रमाण पत्र लेने के लिए मुसलमानों को उनकी आबादी 10%का दुगुना यानी मुस्लिम बाहुल्य वाले सभी 20सीटों पर टिकट देना अनिवार्य है चाहे वहाँ कोई अन्य धर्म का व्यक्ति मुसलमानों से ज्यादा योग्य और लोकप्रिय उम्मीदवार हो ?

क्या मुसलमानों को केवल उनके बाहुल्य वाले इलाके में ही टिकट देना चाहिए ? यदि गैर मुस्लिम बाहुल्य वाले सीटों पर कोई योग्य और लोकप्रिय मुसलमान हो तो भी उसे टिकट नहीं देना चाहिए ?

क्योंकि यदि जाति और साम्प्रदायिक बाहुल्यता के हिसाब से टिकट दिया जायेगा तो इसके मायने ये हैं कि आप वोट की उम्मीद भी जातीय और साम्प्रदायिक आधार पर ही कर रहें हैं शिक्षा और विकास के आधार पर नहीं ।

सत्ता में विकास के आधार पर भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उसमें इमानदारी से सक्रिय होकर पहले अपना योगदान सुनिश्चित करना चाहिए ना कि शर्तें लादकर धर्म के नाम पर संख्याबल दिखाकर अपनी सौदेबाजी । पहले विकास की राह पर लोककल्याणार्थ अपना निस्वार्थ योगदान सुनिश्चित करें, सत्ता में भागीदारी के लिए कोई भी आपको नहीं रोक सकता ।

अगर मोदी और मुसलमान के बीच की कड़ी मॉफी ही है तो ये बड़ी खतरनाक शर्त है कि आप नंगा नाच करो और फिर मॉफी माँगकर फिर से शोषण । लेकिन मर्जी है आपकी,आखिर सर है आपका । (धोने के हाथ वाले सेकुलर साथी सर के बजाय अन्य स्थान का भी प्रयोग कर सकते हैं )

माफी देते रहिए, और अखिलेश पैदा कर उत्तम प्रदेश बनाईये ।

बुधवार, 21 नवंबर 2012

जनचूसपाल और कसाब की मौत



आज सुबह से मच्छरों ने काफी तंग किया हुआ है । खून तो वो मेरा रोज ही पीते हैं पर आज दुगुने उत्साह से पी रहें हैं और साथ साथ कान में भी आ-आ कर जोर जोर से भुनभुना रहे हैं, लेकिन आज की भुनभुनाहट में कुछ अजीब सी लयबद्धता थी । अब मुझे तो उनकी भाषा आती नहीं इसलिए एक धोने वाले हाथ की विचारधारा रखने वाले मोमबत्ती ब्रिगेडी कीट विशेषज्ञ "स्वामी क्षद्मवेश" को ई पेमेंट द्वारा उनके एकाऊण्ट में आगमन भत्ता डिपोजिट कर अपने घर बुलाया । दरवाजे पर मैं और नाली के मच्छरों का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मण्डल उनके स्वागत में आतुर था । जैसे ही वे अपने वातानुकूलित गाड़ी से गेरूआ लबादा ओढ़े उतरे। मैने उन्हे आदरपूर्वक कहा - "लाल सलाम स्वामी जी"

नाली के छाओवादी मच्छरों ने भी उनके पैरों के पास पहुँचकर जोर से भुनभुनाया । उन्होने अपनी लाल पगड़ी को गाड़ी के आईने में देखकर ठीक किया और मेरे सलाम का जवाब देने की बजाय मच्छरों के पास अपना चेहरा ले जाकर जोर से कहा - लाल सलाम जिन्दाबाद ।  

हमें उनका ये व्यवहार अपमानजनक लगा लेकिन ये सोचकर मन को तसल्ली दी कि बड़े आदमी हैं इसलिए छोटे लोगों को ज्यादा मुँह नही लगाते होंगे।  फिर अचानक ही वे मेरी ओर मुखातिब हुए और एहसान जताने के अन्दाज में कहा - बोलो मुझे तकलीफ क्यूँ दी ?

मैने कृतज्ञ भाव से उनसे हाथ जोड़कर कहा - स्वामीजी, ये नाली के मच्छर जरा कुछ ज्यादा ही खून पीतें हैं लेकिन आज बहुत उदास हैं, शायद आमरण अनशन पर हैं लेकिन जो एसी बेडरूम के कुलीन मच्छर हैं ये जरा ज्यादा ही उत्साहित हैं और इसके साथ साथ आज वे अजीब सा कानों में भुनभुनाकर परेशान भी कर रहें हैं ।

स्वामीजी नाराज हो गये और बोले तुम मनुवादी लोगों की यही परेशानी है । सदियों से इनका खून पी-पी कर इनके कानों में पिछला शीशा डालते आ रहे हो । आज जरा सा तुम्हारा खून क्या पीने लगे तुम लोगों को तकलीफ होने लगी । और सुनों तुम अपने शरीर में बह रहे जिस खून पर अपना अधिकार जता रहे हो दरअसल वो तुम्हारा है ही नहीं । ये इन्ही गरीब मच्छरों का खून तुम्हारे शरीर में दौड़ रहा है जो तुम्हारे पूर्वजों ने इनका पीया है।

हम उनके जेएनयू वेद के शास्त्रार्थ के आगे नतमस्तक थे । ये भी नहीं कह सकते थे कि हमारे शरीर में हमारे पूर्वजों का खून नहीं दौड़ रहा है । लेकिन हम भी ठहरे मोम में बाती डालने वाले वरिष्ठ उँगलबाज । जवाब ना देते तो उँगलबाज समाज का घोर अपमान था इसलिए आदरपूर्वक कहा स्वामीजी जी हमारी रगों में जो हमारे पूर्वजों का खून दौड़ रहा है अगर वो इन्ही का है तो फिर हम और ये तो एक ही हुए ना, उस नाते हमें भी इनको मिल रही सारी सरकारी सुविधायें दिलाने के लिए आप मोर्चा काहे नहीं खोलते ।

स्वामी जी कसमसाते हुए अपने बाँये हाथ से खुजाये ( अब ये मत पुछिये कहाँ ) और कहा - महाराज, आप दिल से बड़े सच्चे प्राणी हैं, आपकी बात अलग है, हम जनरल बात कर रहे थे । खैर ये बताओ हमें क्यूँ याद किया ?  हमने उन्हे और उनके खून पीने वाले मच्छर अनुयाईयों को घर में सादर आमंत्रित किया । घर में विराजमान होकर उन्होने पूर्वसहमति के आधार पर बिना प्याज लहसून से बने शाकाहारी चिकन चिल्ली का नाश्ता किया और उनके अनुयाई बचे हुए चिली मसाले पर टूट पड़े ।

मैने उनसे निवेदन किया स्वामी जी ये बतायें कि ये आपके अनुयाई सैनिक नैसर्गिक आचरण के विपरीत आज उदास हैं किंतु विरोधी खेमे के मच्छर जो हमारे ही एसी कमरे में ऐश से रहते हैं और कमरे से बाहर नहीं निकलते वे आज दुगुने उत्साह से हमारा खून पीने के साथ साथ कानों में लयबद्ध गुंजन भी कर रहें हैं । जरा कमरे में चलकर उनके इस वर्ताव का अध्ययन करें और विश्लेशण कर इसका कारण हमें बतायें ।

स्वामीजी उठे और हमारे कमरे में प्रविष्ठ कर कमरे का रक्तिम आँखों से अवलोकन किया । कमरे की स्थिति देखते हुए उन्होने तसल्ली भरे अंदाज में कहा ये संतोष की बात है कि इस कमरे की साफ सफाई तुम खुद करते हो यानी महिला उत्पीड़न का मामला नहीं बनता है ।

फिर उन्होने कुलीन मच्छरों के पास अपना कान टिकाया और मुस्काराकर बोले -  जय हो , जय हो महाराज , ये तो साले केजरीवाल ग्रुप के मच्छर हैं। साले कह रहें हैं जो काम देश के बड़े बड़े हिजड़े नहीं कर पाए वो उनके बिरादरी के वीर मच्छर ने कर दिखाया और उसी का उत्सव मना ब्लड पार्टी कर रहें हैं ।

मैंने कहा स्वामी जी मैं समझा नहीं ?

स्वामी जी बोले - यार महाराज, इनका मानना है कि जिस कसाब को ये भ्रष्ट तानाशाह चार सालों से मेरे जैसे बिरियानी खिलाकर पालपोस रहे थे , इनके संगठन ने जनचूसपाल कानून के तहत इनके समुदाय के ही एसी मच्छरों का एक आंतरिक चूसपाल कमेटी बनाया और एक हफ्ते में ही मामला निपटा कर मौत की सजा सुनाई । एसी मच्छरों के नेता डेंगूलाल खुजरीवाल ने स्वयं इसे डंक मारकर डेंगू के जरिये मौत की सजा दी । अब भले ही ये तानाशाह अपनी कमजोरी छुपाने और शर्मिन्दगी से बचने के लिए फाँसी की सजा देने की बात कर रहें हों पर असलियत में कसाब के देशद्रोह की सजा जनचूसपाल कानून के तहत डेंगू से ही हुई है और जनचूसपाल की महत्ता सिद्ध होने पर ये लोग ब्लड पार्टी मना रहें हैं ।

मैने कहा - स्वामीजी, ब्लडपार्टी का तो समझ में आ गया पर ये लयबद्ध भुनभुनाहट का क्या राज है ।

स्वामी बोले -  अबे महाराज ,  ये मच्छर कुमार विश्वास अपने चमचों के साथ कवि सम्मेलन कर रहा है और सभी मिलकर गा रहे हैं -

कोई मलेरिया फैलाता है, कोई हिजड़ा बनाता है
मगर मच्छर की ताकत को नहीं समझता है
कोई कितना भी छिड़कले बेगान का स्प्रे हमपे
कोई भी हम पतंगों का नहीं कुछ बिगाड़ पाता है
हमें अपने डेंगू लाल खुजरी पर गर्व है इतना
वतन की लाज रखने को वो डेंगू फैलाता है

और बाकी सब मच्छर चिला रहें हैं.........  " जनचूऊऊऊऊसपाल जिन्दाबाद "  ॥ जय हो ॥  

सोमवार, 19 नवंबर 2012

आऊल बबा एंड रिटर्न ऑफ भौजी घोटाला


 
आज सुरज निकलने से पहले हमारी आँख लगी ही थे कि आऊल बबा अपने थीफ एड-वाईजर गधा सिंह के साथ हमारे दरवाजे आये और हमें जगाने के लिए अपना घण्टा बजाया ।

हम आँख मलते हुए उससे पूछा-  का हो आऊल बबा , सब खैरियत तो है ।  आज भोर होने से पहले ही , कौनो टेंशन है का ?  

आऊल बाबा कुछ कहते उसका पहला ही उका एडवाईजर गधा सिंह ने नाक मा चश्मा चढ़ाईके हमरा से बोला - महाराज, बबा टेंशन लेने वाला प्राणी नहीं हैं, ऊ टेंशन देने में बिलिव रखते हैं ।

हम कहा – तभै बियाह नहीं करबे किया है ।  अच्छा तो फेर बताओ ई सुबह होने के पहले दर्शन काहे दिये बबा ? आम जनता के कऊनो तकलीफ में कमी आ गई है का ?

बबा चहकते हुये बोले – तकलीफ का कोनो बात नहीं है, बल्कि हम बहोत ही खुशी में खुश हूँ । आखिरीकार अम्मा ने हमको बड़ी जिम्मेदारी दे ही दिया, अब हम टीम का नान प्लेईन्ग कैप्टनवा बन गया हूँ और हमरा साथ साथ ई हमरा एडवाईजर गधा सिंह को भी “बी सी”  कमेटी का हेडवा बना दिया है ।

हम कहा – ई बीसी कमेटी का होत है बबा ?
बबा कहिन – अरे ऊही जो मुँह से टीवी मा उगलत हैं
अच्छा , फेर हमरे दरवज्जे काहे घण्टा बजा रहे हो बबा ? – हमहू आदतन उँगली करते हुए पूछा
बबा कहिन  – देखा महाराज, तुम जो है ना,  दूसरों की नाक में बहुते उँगली करते हो ,  हम सोचा इबकी हम तोहरी उँगली करें ।
हम कहा – सुनो बबा हम त नाक में करत हैं , इबकी चौदह में देश की जनता तुम लोगन ऊहाँ उँगली करने वाली है, जहाँ से खाया पचाया निकालते हो, फेर जेतना खाये हो ना उस दरवज्जे से निकल नहीं पायेगा , पूरा मँह से उल्टी होकर ही निकलबे करेगा ।

ऐतना में एडवाईजर गधा सिंह बीच में बोल पड़ा – उ त हम रोज निकालबे करता हूँ ।
हम कहा – तोहरी बात अलग है गधा सिंह,  तोहरे तो मुँह में ही बवासीर है । अच्छा ई सब छोड़ो मुद्दे की बात करो ।
बबा कहिन – महाराज हम तो इसलिए इतनी जल्दी आ गया कि तोहरा के बता सकें कि केतना हमको गरिया रहे थे, भौजी के नीलामी में ऐसन हुआ, वैसन हुआ, पौने दू लाख करोड़ रूपिया का घोटाला हुआ है, ईब देखो दुबारा भौजी के नीलामी में कोनो खरीददार ही नहीं आया, अऊर जो आया ऊभी कौड़ी के मोल खरीदा । हम तो पहिले से बोल रहा था, भौजी का नीलामी पहले भी पूरा मुहल्ले के सामने ईमानदारी से हुआ था, बात त ई है कि उत्ना कीमत की भौजी कभी रही ही नहीं ।

हम कहा – ओ तेरी आऊल बबा, इब किस भौजी की नीलामी कर दी ?

एतना में एडवाईजर गधा सिंह तपाक से क्लेरिफिकेशन दिया – महराज, भौजी नहीं टूजी । ऊ का है ना अपना बबा सुबह से दातुन-मंजन नहीं किया है न इसलिए स्लीप ऑफ टंगड़ी हो गया ।

हम कहा - चलो ठीक है, पर साले तुम लोगन का कोई भरोसा भी नहीं , उसका भी नीलामी कर सकते हो ।
एडवाईजर गधा सिंह चहकते हुए बोला – ईब बताओ महाराज, पहिले तो खूब गरिया रहे थे, अब बबा को जवाब दो, कहाँ है घोटाला ?
हम कहा – रे गधा सिंह, तुम खुदे साले घण्टाला हो, हमका मत सिखाओ ।  पहिले अपने बबा को समझाओ कि भौजी और टूजी में केतना अंतर है ?
बबा कहिन – महाराज ई त आप मुद्दे से भटक रहे हो, हमरी बात का जबाब दो या देश से माफी माँगो

हम कहा – वाह रे आऊल बबा, साले भौजी को बेचो तुम और देश से माफी माँगे हम। लेकिन तोहरा के बताय रहें है, हम कोई अण्डाकरी खाने वाले महाराज नहीं कि अन्दर से दाऊद ईब्राहिम हों और सिर पर गेरूआ पगड़ी बाँध कर विवेकानन्द बने फिरते हों । अब हम तुम लोगन को बताऊँगा नहीं समझाऊँगा , बस जो पूछूँ उसका जवाब सही सही बताना । बोलो मंजूर .

एडवाईजर गधा सिंह बोला – मंजूर मंजूर ।
बबा कहिन - एडवाईजर गधा सिंह के मंजूर त हमरा के भी मंजूर ।
हम अपना प्रवचन स्टार्ट किया – सुना, अभै कौन सा बरस चल रहा है ? बबा कहिन – दू हजार बारा 
हम कहा – दू हजार छौ में तुम टीबी खरीदते तो कौन सा खरीदबे करते ?
बबा कहिन - 20 इंचिया कलर टीवी, ऊ भी रिमोट वाला । 
हम कहा – केतना में मिलता ?
बबा कहिन – बीस गो हजार में तो मिलबे ही करता ना ।
हम कहा - अच्छा तो ई बताओ अभै टीबी खरीदना हो तो उही नेता पेट वाला टीवी खरीदोगे के करीना जैसा जीरो फिगर वाला एलसीडी ।
बबा कहिन – धत्त तेरे कि, आप भी न महाराज कभै कभै हमका एकदम बुड़बक समझ के सिम्पल कोश्चन पूछ देते हो, ऑफ कोर्स, अभै तो कोई पगला ही नेता पेट वाला टीबी खरीदबे करेगा, हम तो एलसीडी ही खरदूँगा ।
हम कहा – अच्छा मान लो अभै कोई बुड़बक 20 इंचिया नेता पेट वाला टीबी खरीदेगा तो केतना में मिलेगा ? 
बबा कहिन -  केतना क्या ज्यादे से ज्यादे तीन-चार हजार में मिल जायेगा अऊर क्या ?
हम कहा – रे आऊल बबा, ठीक उही टाईप का जब 3G , 4G का जमाना हो तो तुम्हारी भौजी और हमारी 2G को तुम्हारे जईसा बुड़बक भी नहीं खरीदेगा । अऊर खरीदेगा भी तो कौड़ी के दाम में ही खरीदेगा .. समझा रंगीला चचा के नाती
ऐतना में गधा सिंह बीचबचाव में कूद गया अऊर बोला – महाराज ऐतना पर्शनल होना ठीक बात नाही, तुम त ई बताओ सस्ता में मिल रहा था फेर भी खरीददार काहे नहीं आये, जोरदार कम्पीटिशन काहे नहीं हुआ ?

हम कहा -  रे गुरूघण्टाल , तू तो दस साल “बीच परदेश” का मुखिया रहा है तोहरा  के ऐतना भी नहीं पता के ठेकेदार लोगन का जब रिंग बन जाता है तो कम्पीटिशन नहीं होता, नेगोशिएशन होता है, अऊर उ का बोली केतना होगा ई रिंग देने वाला ठेकेदार डिसाईड करता है बाकि सब ठेकेदार या तो सपोर्टिन्ग रोल में बोली लगाता है या फिर नीलामीं में आबे नहीं करता ।

बुड़बक के नाती , साले दुनो भोर में हमरा उँगली करने आये हो, जाओ कुटिल सब्बल और मुनिष त्यौहारी को भेजकर उधर टीबी में गला फड़वाकर लोगन के चुतिया बनाओ और जब लोग नई माने तो आखिरी में बोल देना ई बिनोदी सीएजी साम्प्रदाईक ताकतों के साथ मिल गया है और मौनी बाबा को बदनाम कर रहा है । 

इतना सुनते ही एडवाईजर गधा सिंह, आऊल बबा को खींच कर ले जाने लगा पर आऊल बबा गुस्से से बड़बड़ाते हुए जा रहे थे “ मम्मी से बोल के इ साले उँगलबाज के पिछवाड़े में सीबीआई लगवाऊँगा और रामलीला मैदान में चिद्दू मामा के गुण्डों से निपटाऊँगा ”



बुधवार, 14 नवंबर 2012

बुरी नजर वाले तेरा मुँह गोरा

जे एन यू ब्राण्ड दलित चिंतक मण्डल जी एवं उसके "सूर" अनुयाई कुछ दिनों पहले गाय-बैल को सवर्ण एवं भैंस को दलित वर्ण का घोषित कर ये सिद्ध करने की जुगत में थे कि "अक्ल बड़ी या भैंस" तथा "बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला" जैसे मुहावरे अस्पृश्यता एवं उत्पीड़न की सवर्ण मानसिकता से प्रेरित है । उन्होने इस सम्बन्ध में ये प्रश्न उठाया था कि "अक्ल बड़ी या गाय" अथवा "बुरी नजर वाले तेरा मुँह गोरा" क्यूँ नहीं होता ?

उनके इस तकलीफ से मुझे भी बड़ी मानसिक पीड़ा हुई और ये जानकर आश्चर्य की अक्ल और भैंस में कभी कभी भैंस भी बड़ी हो जाती है ।

यह उद्धरण इसलिए किया क्योंकि दीपावली के वबाद अब गोवर्धन पूजा भी होगी और इसमें गाय बैलों की पूजा होगी । वो फिर ये जिज्ञासा प्रकट कर इसे सवर्णों की कुटिल चाल बता कर अपने अनुयाईयों को ज्ञान बाँट सकते हैं कि गोवर्धन पूजा में भैंस या सूअर की पूजा क्यों नहीं होती , वो भी तो पशुधन है ?

उनकी कृष्णवर्णी जिज्ञासा के साथ मैं भी ये जानना चाहता हूँ कि गोवर्धन गिरधारी महाराज तो यादव थे अर्थात तथाकथित पिछड़ी जाति से थे और उनका स्वयं का रंग भी श्याम था अर्थात त्वचा से वे दलितों का प्रतिनिधित्व करते थे । कमोबेश ये त्यौहार भी पिछड़ों का ही है फिर वे पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले भैंस और सुअरों की बजाय वे गाय-बैल की क्यूँ पूजा करते हैं ? क्या ऐसा करने के पीछे भी ब्राह्मणों की कोई कुटिल चाल है ? 

लेकिन गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में मान्यता यही है कि कृष्ण ने गोकुलवासियों को ये कह कर मेघ देवता इंद्र की पूजा करने से मना कर दिया कि वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है, इन्द्र का इसमें कोई योगदान नहीं जिससे कुपित होकर इन्द्र में मूसलाधार वर्षा की और कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर इस अतिवृष्टि से गोकुल वासियों की रक्षा की और तब से गोवर्धन पर्वत एवं पशुधन की पूजा की परम्परा प्रारंभ हुई और कृष्ण भी गोवर्धन गिरधारी के नाम से पुकारे जाने लगे । इसका अर्थ तो यही हुई कि ये पूरा उत्सव सवर्णों के कथित व्यवस्था के विरूध्द बगावत थी । ऐसे में इसे दलितों और पिछड़ों को सामाजिक स्वतंत्रता के राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाना चाहिए ।  

सामाजिक बुराईयों का विरोध आवश्यक है किंतु अपने बौद्धिक कुटिलता का उपयोग कर लोगों के मन में वैमनस्य फैलाने से उनका मण्डलेश्वर तो बना जा सकता है पर बहुजनों की वास्तविक समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता और न ही सामाजिक समरसता लाई जा सकती है ।

मुझे ये समझ में नहीं आता कि जिस जाति में कबीर जैसे महामानव ने जन्म लिया हो उस जाति को लोगों को अपने जुलाहे होने पर गर्व क्यूँ नहीं होता । क्या रैदास से अच्छा आज तक कोई कवि पैदा हुआ है ?  क्या रसखान के बड़ा कोई कृष्ण भक्त हुआ है ?

इस देश में जितनी भी कुरूतियाँ है उसे किसी विशेष जाति या वर्ण ने नहीं, कुछ खास लोगों की प्रजाति ने अपने प्रभुत्व को जमाये रखने के लिए स्थापित की हैं और ऐसी प्रजाति के लोग सभी जातियों , वर्णो में समान रूप से पाये जाते हैं । ऐसे लोगों की प्रजाति में दो ही लोग होते हैं - या तो मण्डलेश्वर या फिर आर्थिक सवर्ण ।

नोट - यदि त्वचा के रंग से ही अगड़े और पिछड़े का निर्धारण होना है तो सारे अफगानी और खाड़ी के मुसलमान सवर्ण हैं और दक्षिण भारत के सारे उच्च जाति के लोग पिछ्ड़े दलित । मैं भी लगभग श्याम वर्ण का ही हूँ तो काली मानसिकता वाले दलित चिंतक मुझे पार्ट टाईम दलित चिंतक मानकर अपने ड्राइंग रूम में मेरा फुल साईज का नहीं भी तो कम से कम पासपोर्ट साईज की फोटो तो लगा ही सकते हैं ।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

हैप्पी कर्वा-चौथा





दोपहर में सभी इलेक्ट्रानिक न्यूज चैनलों में एक जैसा ही कार्यक्रम आता है "सास बहू और साजिश" अर्थात छोटे परदे की कहानी । भोजन के वक्त न्यूज चैनल चालू करने पर ऐसे ही एक कार्यक्रम पर पति की कमाई से अपनी सुन्दरता निखारने की जद्दोजहद में लगी एक पश्चिममुखी भारतीय नारी का जींस पैण्ट और टीशर्ट पहने देशी एंकर साक्षात्कारनुमा नखरे दिखा रही थी । खैर मेरी भी उत्सुकता बढ़ी कि आखिर ये उम्रदराज युवा महिला करवाचौथ किस भावना और कारण से मनाती है ।

साक्षात्कार के बजाय इसे इंटरव्यू कहना दृश्य को अधिक सजीव बनायेगा सो इंटरव्यू के पहले कैमरा ऑन होते ही महिला ने अपने लंहगे को चारो ओर लहराकर एक हवाई चुम्मा कैमरे की ओर फेंका लेकिन कमबख्त हमारी एलसीडी की स्क्रीन के बीबी का फर्ज निभाते हुए उसे हम तक पहुँचने ही नहीं दिया ।


देशी एंकर ने पहला प्रश्न किया आप करवाचौथ कैसे मनाती हैं और इस दिन क्या क्या करती हैं ?


पश्चिममुखी ने बलखाते हुए कहा लुक, आई एम सेलिब्रेटिंग कर्वाचौथा फ्राम लास्ट थ्री डेस , माय शॉपिंग ऑर आलमोस्ट कम्प्लीट एण्ड टुडे आई फोकस ऑन माय मेकअप एंड मेन्दी । यू केन सी माय मेन्दी । इट्स टेक फोर ऑवर टू कम्प्लीट । यू नो मेन्दी लगवाना वेरी-वेरी पेशंस वाला काम है । आपको चेयर पर कंटिन्यूअस चार चार घण्टा सिटिंग करना पड़ता है ।
देशी एंकर आपके बाल भी काफी सॉफ्ट लग रहे हैं । एनी स्पेशल ट्रीटमेंट ?

पश्चिममुखी यू नो, मैने कर्वाचौथा के लिए स्पेशियली हर्बल ट्रीटमेंट करवाया है ।
देशी एंकर आपका ड्रेस भी कुछ अलग हट कर है ।

पश्चिममुखी या या , यू नो , पिछले साल मैने येलो रंग की साड़ी पहनी थी । मेरे हस-बैण्ड का फेवरेट कलर रायल ब्लू है । उन्होने मुझे पिछली बार कहा था कि कभी मेरी पसंद का भी कुछ पहना करो । सो दिस ईयर ड्यू टू हम्बल विश ओफ माय हस-बैण्ड आई एम स्पेशियली टेल माई डिजायनर टू डू सम एक्सपेरीमेंट बिटविन सारी एंड लंहगाचोली इन ब्लू । माई डिजायनर मेक दिस यूनिक पीस इन ब्लू कलर । लुक इट्स डिफरेंट ना ?

देशी एंकर या या इट्स लुक ऑसम


पश्चिममुखी साल भर तो हम अपनी पसंद का पहनते ही है । एटलिस्ट वी मस्ट कंसिडरिंग हस-बैण्ड्स लाईक्स इन दिस डे ।

देशी एंकर या या । बट हाऊ यू सेलिब्रेट करवाचौथ ?

पश्चिममुखी लुक डियर , टुडे वी मस्ट फास्टिंग होल डे , तो मेटाबोलिज्म पर डेफिनेटली इफेक्ट पड़ता है और उससे सम प्राब्लम तो होती ही है इसलिए हम अपने आप आपको दूसरे वर्कों में बिजी रखते हैं जैसे सुबह से ब्यूटीपार्लर में बिजी थे, अब मेन्दी में बिजी हैं, इसके बाद शावर बाथ लेकर फ्रेश होंगे और अगेन तैयार होने के लिए मेकअप में बिजी हो जायेंगे । फिर शाम को डांस का प्रोग्राम है जिसमें झूम झूम कर डांस करने में बिजी हो जायेंगे । फिर फाईनली नाईट में को "हनी" मून देखकर अपने हस-बैण्ड के लान्ग लाईफ के फास्ट को वाटर ड्रिंक कर ब्रेक करेंगे । ऑफ्टर देन टैरिस पर ही एक थीम पार्टी रखी है उसका इंज्वाय करेंगे । इट्स अवर शेड्यूल ऑफ कर्वा-चौथा ।


एट लास्ट आई वांट टू विश ऑल लेडिस ऑफ इण्डिया फार हैप्पी कर्वा-चौथा :)




मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

माँ दंतेश्वरी गाथा



छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से करीब तीन सौ अस्सी किलोमीटर दूर दंतेवाडा नगर स्थित है। यहां के डंकिनी और शंखिनी नदियों के संगम पर माँ दंतेश्वरी का मंदिर प्रस्थापित है। पुरातात्विक महत्व के इस मंदिर का पुनर्निर्माण महाराजा अन्नमदेव द्वारा चौदहवीं शताब्दी में किया गया था। आंध्रप्रदेश के वारंगल राज्य के प्रतापी राजा अन्नमदेव ने यहां आराध्य देवी माँ दंतेश्वरी और माँ भुवनेश्वरी देवी की प्रतिस्थापना की। वारंगल में माँ भुनेश्वरी माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है। एक दंतकथा के मुताबिक वारंगल के राजा रूद्र प्रतापदेव जब मुगलों से पराजित होकर जंगल में भटक रहे थे तो कुल देवी ने उन्हें दर्शन देकर कहा कि माघपूर्णिमा के मौके पर वे घोड़े में सवार होकर विजय यात्रा प्रारंभ करें और वे जहां तक जाएंगे वहां तक उनका राज्य होगा और स्वयं देवी उनके पीछे चलेगी, लेकिन राजा पीछे मुड़कर नहीं देखें। वरदान के अनुसार राजा ने वारंगल के गोदावरी के तट से उत्तर की ओर  अपनी यात्रा प्रारंभ की । राजा रूद्र प्रताप देव के अपने पीछे चली आ रही माता का अनुमान उनके पायल के घुँघरूओं से उनके साथ होने का अनुमान लगा कर आगे बढ़ता गया । राजिम त्रिवेणी पर पैरी नदी तट की रेत पर देवी के पैर पर घुंघरुओं की आवाज रेत में दब जाने के कारण बंद हो गई तो राजा ने पीछे मुड़कर देखा तो देवी ने उसे अपने वचन का स्मरण कराया और आगे साथ चलने में असमर्थता जाहिर की । राजा बड़ा दुखी हुआ किंतु देवी ने उसे एक पवित्र वस्त्र देकर कहा कि ये वस्त्र जितनी भूमि ढकेगी वही तुम्हारे राज्य का क्षेत्र होगा । इस प्रकार राजा ने वस्त्र फैला कर जितने क्षेत्र को ढका वही क्षेत्र पवित्र वस्त्र के ढकने के कारण बस्तर कहलाया । तत्पश्चात देवी राजा रूद्र प्रताप के साथ वापस बड़े डोंगर तक आई और राजा का तिलक लगाकर राज्याभिषेक किया और ये कहकर अंतर्ध्यान हो गई कि मैं तुम्हे स्वप्न में दर्शन देकर बताऊँगी कि मैं कहाँ प्रकट होकर स्थापित हुँगी । तब वहाँ तुम मेरी पूजा अर्चना की व्यवस्था करना ! फरसगाँव के निकट ग्राम बड़े डोंगर में देवी दंतेश्वरी का प्राचीन मंदिर अवस्थित है । त्पश्चात राजा रूद्रप्रताप देव ने राज्य की राजधानी ग्राम मधोता में स्थापित की एवं कालांतर में उसके वंशज राजा दलपत देव ने स्थानांतरित कर जगदलपुर में की । आज भी राजवंश के नये सदस्य के राज्याभिषेक के लिए ग्राम मधोता से पवित्र सिंदूर लाकर राजतिलक किये जाने की परम्परा है । 
  
कुछ समय पश्चात माँ दंतेश्वरी ने राजा के स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मैं दंतेवाड़ा के शंकनी-डंकनी नदी के संगम पर स्थापित हूँ । कहा जाता है कि माई दंतेश्वरी की प्रतिमा प्राक्टय मूर्ति है एवं गर्भ गृह विश्वकर्मा द्वारा निर्मित है । शेष मंदिर का निर्माण कालांतर में राजा द्वारा निर्मित किया गया ।

दंतेश्वरी मंदिर के पास ही शंखिनी और डंकिन नदी के संगम पर माँ दंतेश्वरी के चरणों के चिन्ह मौजूद है और यहां सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।




दंतेवाड़ा में माँ दंतेश्वरी की षट्भुजी वाले काले ग्रेनाइट की मूर्ति अद्वितीय है। छह भुजाओं में दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशुल और बाएं हाथ में घंटी, पद्य और राक्षस के बाल मांई धारण किए हुए है। यह मूर्ति नक्काशीयुक्त है और ऊपरी भाग में नरसिंह अवतार का स्वरुप है। माई के सिर के ऊपर छत्र है, जो चांदी से निर्मित है। वस्त्र आभूषण से अलंकृत है। 



द्वार पर दो द्वारपाल दाएं-बाएं खड़े हैं जो चार हाथ युक्त हैं। बाएं हाथ सर्प और दाएं हाथ गदा लिए द्वारपाल वरद मुद्रा में है। इक्कीस स्तम्भों से युक्त सिंह द्वार के पूर्व दिशा में दो सिंह विराजमान जो काले पत्थर के हैं। यहां भगवान गणेश, विष्णु, शिव आदि की प्रतिमाएं विभिन्न स्थानों में प्रस्थापित है। मंदिर के गर्भ गृह में सिले हुए वस्त्र पहनकर प्रवेश प्रतिबंधित है। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने पर्वतीयकालीन गरुड़ स्तम्भ से अड्ढवस्थित है। बत्तीस काष्ठड्ढ स्तम्भों और खपरैल की छत वाले महामण्डप मंदिर के प्रवेश के सिंह द्वार का यह मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। इसलिए गर्भगृह में प्रवेश के दौरान धोती धारण करना अनिवार्य होता है। मांई जी का प्रतिदिन श्रृंगार के साथ ही मंगल आरती की जाती है।


माँ दंतेश्वरी मंदिर के पास ही उनकी छोटी बहन माँ भुनेश्वरी का मंदिर है। माँ भुनेश्वरी को मावली माता, माणिकेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। माँ भुनेश्वरी देवी आंध्रप्रदेश में माँ पेदाम्मा के नाम से विख्यात है और लाखो श्रद्धालु उनके भक्त हैं। छोटी माता भुवनेश्वरी देवी और मांई दंतेश्वरी की आरती एक साथ की जाती है और एक ही समय पर भोग लगाया जाता है। लगभग चार फीट ऊंची माँ भुवनेश्वरी की अष्टड्ढभुजी प्रतिमा अद्वितीय है। 


मंदिर के गर्भगृह में नौ ग्रहों की प्रतिमाएं है। वहीं भगवान विष्णु अवतार नरसिंह, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमाएं प्रस्थापित हैं। कहा जाता है कि माणिकेश्वरी मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुआ। संस्कृति और परंपरा का प्रतीक यह छोटी माता का मंदिर नवरात्रि में आस्था और विश्वास की ज्योति से जगमगा उठता है। 



शनिवार, 1 सितंबर 2012

मारनिन्ग बाक

 
काली साँझ बेरा चेला भोला शंकर ह मोला बोलिस - महाराज तैं ह बिहाने देर तक सुत के अपन लाइफ के भेस्ट करथस ।
 

मैं बोलओं – कैसन बे , मोर लाईफ कईसे भेस्ट होथे ? 
 

भोलाशंकर बोलिस -  ई दंतेवाड़ा नई हे महाराज, रायपुर हे । इहाँ बिहाने बिहाने टनाटन टुरी मन टाईट टिरेकसूट पहिन के कुकुर घुमाथें अऊर हाय हलो घला करथें । बिहाने उठ अऊर तैं भी घुम के देख, तोर उमर भी जादा नई हे अऊर देखे में भी तोर चोखटा बने हे । कोनो सेट हो जाहि त चेहरा अऊर फरिहा जाही । 
 

मैं बोलओं – चल बे साले एक ठन तो नई सम्भले । साले रात के नींद उ ह खराब कर दिये हे अऊर दूसर ओखली के जुगाड़ में बिहान के अपन नींद खराब करहूँ ।

मगर साला बेंदरा कतको बुढ़ा जाय गुलाटी मारे के मौका नई छोड़े । मैं घलो सोचओं
, चलो साले टिराई करे में का हरज हे । कालि राति के फटाफट चौका बर्तन माँज के फेसबुक म गुडनाईट लिख, नींद के गोली दबा के सुत गेओं अऊर बिहाने बिहाने नवा टिरेकसूट में सेंट लगा के निकलेओं ..  का कइथें ओला ...  हाँ जोगीन्ग ।

 


रास्ता म एकठन इंग्लिस स्टाईल के कपड़ा म टुरी टाईप के माई ह बिना लेन्गड़ी के करिया कुकुर ला हगाथ रहे, ओला देख के ऑटोमेटकली मोर मुँह से डिलिवरी होगे ..  हैब ए नाईस डे मेडम

उ साली ह स्टाईल से मुस्किया के डाईरेक्ट मोर बेज्जती खराब कर दिस ।

मोला बोलिस – सेमटू यू

मोर दिमाग खराब होगे मैं घला ओकर मुँह के उपर ही इमिडियेट रिप्लाई देओं ...   जा बे तोर एसन कतिक आगे पाछू घुमत हें। साली तैं सेमटी
, तोर कुकुर घलो सेमटू ।

साले इ शहर के टुरी मन अब्बड़ अनएग्रीकल्चर्ड होथें बे । रत्ती भर भी पेटीकेट नई हे । थू हे ऐसन मारनिन्ग बाक म, जेनला कुकुर घुमाय के शौक हे उ जाओ
, मैं त अब मोर बाई ह ले जाही तबैं जाहूँ
 


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