शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

जनरल का जन्मतिथि विवाद

आज भारत के 26 वें जनरल और वर्तमान में भारतीय सेना के चीफ जनरल विजय कुमार सिंह के जन्म तिथि विवाद के सम्बंध में जानकारी लेने का प्रयास किया ! तमाम सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सेना के ही कर्नल पिता के पुत्र जनरल सिंह को राजपूताना रेजीमेंट के 2 बटालियन में 14 जून 1970 को कमीशन मिला ! उनका जन्म सेना के ही पुणे स्थित अस्पताल में हुआ था ! जनरल सिंह के सुप्रीम कोर्ट में किये गये दावे के अनुसार विभिन्न शैक्षणिक दस्तावेजों में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 है ! जबकि सरकार का कहना है उन्होने अपने नेशनल डिफेंश एकादमी में आवेदन पत्र में अपनी जन्म तिथि 10 मई 1950 लिखा है , अत: वही उनकी जन्मतिथि है !


इस प्रकरण को विभिन्न स्तरों पर भी सुलझाया जा सकता था ! मसलन जनरल सिंह का जन्म सेना के अस्पताल में हुआ है अत: उनका रिकार्ड अस्पताल में होगा ही ! लेकिन इन विवादों में जनरल सिंह का दावा भी एक गंभीर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है कि उनके डिप्लोमा प्रमाण पत्र में भी जन्म तिथि 10 मई 1951 दर्ज है एवं इस जन्म तिथि को नकारने व आवेदन पत्र में अंकित जन्मतिथि को अधिकृत मानने की सूचना भी उन्हे वर्ष 2011 में दी गई ... अर्थात सेवा में आने के 41 वर्ष बाद !


मुद्दा इतना गंभीर नहीं था कि इसे सेना की प्रतिष्ठा दाँव पर लगाया जाता किंतु भारतीय इतिहास में सेना का मुखिया पहली बार सरकार के खिलाफ न्यायालय गया है ये अपने आप में एक बहुत बड़ी घटना है ! खैर वास्तविकता क्या है और कौन सच्चा है इसका फैसला तो सुप्रीम कोर्ट कर ही देगी लेकिन इन सब में कुछ गँभीर अनियमिततायें दृष्टिगोचर होती हैं ! यदि जनरल सिंह ने आवेदन पत्र में अपनी जन्मतिथि 10 मई 1950 लिखी है तो प्रवेश के समय उनके जन्मप्रमाण पत्र की जाँच क्यों नहीं की गई और यदि 1950 ही सही वर्ष है तो उनके डिप्लोमा प्रमाण पत्र में उसे 1951 क्यों अंकित किया गया ! उसके बाद इन दोनो ही स्थितियों में सरकार या प्रशासन 41 वर्षों तक क्यों खामोश रहा गया !  

इन सबसे इतर सुप्रीम कोर्ट में लम्बित मामले पर गौर किया जाय तो इस केस में विवाद का विषय है जनरल सिंह के प्रमाण पत्रों पर अंकित तिथि 10 मई 1951 और सरकार द्वारा मान्य उनके आवेदन पत्र में अंकित जन्मतिथि 10 मई 1950 में किसे अधिकृत जन्मतिथि मानी जाय ! सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी हो लेकिन हर सूरत में फैसले से बड़ा बवाल होगा ! यदि सुप्रीम कोर्ट जनरल सिंह के पक्ष में फैसला सुनाती है तो सरकार की किरकिरी यकीनन तय है ! इस मामले से फिर कई और बातों को जोड़ा जायेगा और सरकार की नीयत पर भी सवाल दागे जायेंगे ! दूसरी स्थिति में यदि सरकार के पक्ष में फैसला आता है तो भी यह एक महत्वपूर्ण फैसला होगा जिससे जन्म प्रमाण पत्रों की वैधानिकता और आवश्यकता समाप्त हो जायेगी ! आवेदन पत्रों पर अंकित जन्मतिथियों को ही वैधानिक मान लिया जायेगा चाहे आपकी जन्मतिथि कुछ भी क्यों न हो ! मामला जितना छोटा दिखता है उतना नहीं है ! कम से कम सरकार के लिये तो ऐसा कहा जा सकता है ! अब देखना है सरकार इससे बचने के लिए क्या कदम उठाती है क्योंकि फैसला कुछ भी हो सरकार की मुश्किलें बढनी तय है !

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

कश्मीरी हिंदुओं का दर्द

19 जनवरी 1990  ये वही काली तारीख है जब कश्मीर की घाटी में 24 घण्टे में कश्मीर छोड़ दो या मारे  जाओका संदेश गूँज उठा  था ! भयाक्रांत लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपनी मातृभूमि , अपना सारी सम्पत्ति हमेशा के लिए छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा ! 22 वर्ष बाद भी वे आज भी शरणार्थी ही हैं और उन्हें वहाँ से भागने के लिए मजबूर करने वाले जो केवल सुख सुविधा के उपभोग हेतु ही भारत के नागरिक थे और पाकिस्तान समर्पित थे , वे आज भी हैं | उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिंदू शरणार्थियों को वो भी नहीं | 


बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि सोशियल नेटवर्किंग साईटों में लिंक चिपकाने में , चौक चौराहों में मोमबत्ती जलाने वाले और मिडिया में स्यापा गाने में माहिर और मानवाधिकारों के स्वघोषित अधिकृत झण्डाबरदारों को इसके लिए आवाज उठाने में शर्म आती है क्योंकि इनके लिए आवाज उठाने से इन शेखुलरों को आत्मग्लानी होती होगी ! वे तो बाबा रामदेव के कालिख पोतने और बुखारी की वकालत करने में गर्व महसूस करते है ! और उठायें भी क्यूं , इसके लिए डॉलर जो नहीं मिलता !  

बाबरी मस्जिद और हिंदु शब्द के खोज में निकले इन गोधराजनित शेखुलरों को वो आवाज भी आजान जैसी पवित्र ही लगी जब "कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है", और "असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन" (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदू स्त्रियों के साथ, लेकिन पुरुष नहीं"), जैसे नारे कश्मीरों की मस्जिदों के लाऊड स्पीकरों से आ रही थी !  

भाँड मिडीया भी आज शाम को शेखुलरों और चमेली बाईयों को इकठ्ठा करेगा और आधे घंटे गहन चिंता प्रकट कर अपने दायित्वों का निर्वहन कर लेगा ! अभी तो उत्तर प्रदेश से लाईव कव्हरेज दिखाकर स्तुतिगान में तल्लीन अपने नमक का कर्ज अदा कर रहा है !  कुछ स्वयंभू अति उदारवादी समाजसेवी मोमबत्ती जला कर चौक में इकठ्ठे होकर फोटोशेशन करवायेंगे ! और कुछ गेरूआ वस्त्रधारी स्वयं को हिन्दुओं का अधिकृत धर्मरक्षक सिध्द्द करने के चक्कर में आज चीखेंगे चिल्ल्येंगे मातम भी मनायेंगे और शाम को किसी बार में जाकर गमगलत करेंगे !   

आज कश्मीर घाटी में हिंदू नहीं हैं | उनके शरणार्थी शिविर जम्मू और दिल्ली में आज भी हैं | उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आके कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरूंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित शेखुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं | 

इन कश्मीरियों का गुनाह केवल इतना ही है कि वे हिंदु हैं , इसलिए उनका इस देश में कोई मानवाधिकार नहीं है ! इस देश में मानवाधिकार भी वोट बैंक और विदेशी चंदे के आगम देखकर ही तय किया जाता है ! अधिकार तो छोड़िये इन्हे तो अब मानव भी नहीं समझा जाता ! वाह रे मेरे महान प्रजातांत्रिक देश ,धन्य है तू , तेरी प्रजातांत्रिक धर्म निरपेक्ष सरकारें और उसपे आठ चाँद लगाते  तेरे शेखुलर मानवाधिकारी ! जय हो !

बुधवार, 18 जनवरी 2012

हमारी मंचीय संस्कृति


अजब है मेरे देश की वर्तमान संस्कृति ( वर्तमान मैं इसलिए कह रहा हूँ कि पुरानी तो देखी नहीं ..होश सम्भलने  के बाद जो देख रहा हूँ उसके बारे में ही कह रहा हूँ )
                

मेरे देश में किसी भी सम्मेलन में जनसमुदाय दो हिस्सों में बँटा होता है ! एक हिस्से में दूसरे हिस्से की अपेक्षाकृत काफी मात्रा में अधिक सदस्य होते हैं ! दोनो हिस्से एक दूसरे के मुखातिब बैठे होते हैं लेकिन उन्हे दो पक्ष कहना उचित नहीं होगा क्योंकि आमतौर पर उनमें  मतैक्य होता हैं ! न्यून सदस्यों वाला हिस्सा अमुमन उँचे स्थल पर बैठता है और बहुसदस्य वाला हिस्सा अपेक्षाकृत  नीचे होता है ! बोलचाल की भाषा में उँचे स्थल को मंच और नीचे स्थल को पण्डाल कहा जाता है !  चूँकि मंच उँचा होता है इसलिए मंचस्थ व्यक्तियों को श्रेष्ठ माना जाता है या इसे यूँ भी कह सकते हैं कि पंडाल के लोगों से मंचस्थ लोगों को श्रेष्ठ सिध्द करने के लिए मंच बनाया जाता है ! शायद यही कारण है कि किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में व्यक्ति मंचासीन होने के जुगाड़ में अपनी सारी उर्जा लगा देता है !



शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को प्रदान किये जा रहे एक सम्मान कार्यक्रम में मैंने देखा सम्मानित होने वाले शिक्षक पण्डाल में बैठे हैं और सम्मान देने वाले मंचस्थ हैं ! एक उँगलबाज ने हमसे पूछा महाराज ये समझ में नहीं आ रहा है कि सम्मानित होने वाले शिक्षक नीचे बैठे है और सम्मानित करने वाले मंच पर क्या ये उचित है ! हमने कहा अरे उँगलबाज तुम्हे इतना भी ज्ञान नहीं है हमारे देश में देने वाला हमेशा लेने वाले से महान होता है ! जाहिर है देने वाले उपर ही बैठेंगे  !



वो भी कोई आम आदमी नहीं था अपने नाम उँगलबाज को पूरी तरह चरितार्थ करता था ! कहाँ चुप रहने वाला तुरंत सवाल दागा, तो फिर चुनाव के समय तो ये माँगने वाले होते हैं और जनता दाता ! उस हिसाब से तो जनता को मंच पर बैठना चाहिए ! हमने कहा अरे घोंचू मामले को पूरी तरह समझा कर ! चुनाव में नेता वोट माँगने नहीं आते, मना करने आते हैं और कहते हैं आपका वोट कीमती है हमे “मत”दान करना लेकिन तुम हो कि उन्हे जबरदस्ती दान कर देते हो और साले सही बात तो ये है कि तुम कौन सा दान करते हो ? तुम तो एक बोतल दारू और दो पीस चिकन में उसे बेच देते हो ! इस प्रकार से तुम विक्रेता हुए और वो ग्राहक ! मारवाड़ी की दुकान में लिखा हुआ देखा है कि नहीं, ग्राहक देवता होता है ! अब क्या देवता को नीचे बिठाओगे ! उँगलबाज हमेशा की तरह हमसे खिन्न होकर अपनी उँगली छुपाता भुनभुनाता हुआ चला गया !



खैर बात मुद्दे से भटक गई ! बात हो रही थी मंची और पण्डालियों की ! आम भाषा में मंच में बैठे लोगों को “बकता” और नीचे बैठे लोगों को “सरोता” कहते हैं लेकिन सुनने में जरा ये असंसदीय भाषा जैसा लगता है इसलिए हम मंचस्थ लोगों को मंची और नीचे बैठे लोगों को पण्डाली कहेंगे ! इन शब्दों का बहुत कम उपयोग होता है इसलिए संसदीय टाईप का लगता है !



चूँकि प्रकृति का नियम है जलधारा का प्रवाह सदैव उपर से नीचे की ओर ही होता है इसलिए सम्मेलनों में भी इस प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए विचारों का आदान-प्रदान ना करते हुए केवल मंच से प्रदान ही होता है ! संसदीय भाषा में इसे सम्बोधन कहते हैं ! आमतौर पर मंचस्थ विद्वान निजी जीवन में इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हे अच्छे सम्बोधन जैसे तुच्छ कार्य के लिए समय निकाल पाना सम्भव नहीं हो पाता ! अत: वे किसी पण्डाली टाईप के व्यक्ति को सहायक रखते हैं जो उनके लिए सम्बोधन को लिखित रूप प्रदान करता है जिसे पढ़कर वे पण्डालों को सम्बोधित करते हैं ! इसमें कोई शर्म की बात नहीं है, अमेरिका का राष्ट्रपति ओबामा भी लिखा हुआ ही सम्बोधन पढ़ता है !  



इन दोनो पक्षों के अलावा सम्मेलन में प्रकृति के नियमानुसार बाबी डार्लिंग टाईप का भी एक बीच वाला एक आदमी होता है ! जो औकात से होता तो पण्डाली है पर मंचस्थ होता है ! उसे सामान्य भाषा में विदूषक और संसदीय भाषा में उद्घोषक कहते हैं ! उसका मुख्य कार्य होता है, मंचीयों के मंच पर आगमन तक पण्डालियों को शांत बिठाकर बाँधे रखना जिससे वे झुण्ड से बाहर बिदक ना जाये ! इसके लिए वो इतिहास, भूगोल, काव्य, गजल आदि का सहारा लेकर और सम्मेलन की महत्ता को गद्य पद्य दोनो ही विधा में बताकर ऐसा माहौल बनाये रखता है कि यदि कोई पण्डाली वहाँ से चला गया तो अपने जीवन का स्वर्णिम समय खो देगा !

सोमवार, 16 जनवरी 2012

या अन्ना हम ना हुए

एक दिन बस्तर के जंगलों में विचरण करते हुए अचानक गाँधी टोपी लगाये हुए सज्जन टकराये ! शकल कुछ जानी पहचानी सी लगी ! अरे ये तो किशन बाबुराव हजारे जी है जिसे पूरा देश प्यार और सम्मान से अन्ना कहता है ! हमने उनको सादर अभिवादन किया और कुशलक्षेम पूछा ! बोले स्वास्थ्य लाभ हेतु बस्तर के जंगल में आया हूँ सोचता हूँ कुछ दिन यहीं आत्ममंथन करूँ और तुम तो वही हो ना फेसबुक वाले महाराज ! हमने गर्व से सीना ताना और नजर झुका से विनम्रता के साथ कहा “ जी अन्ना जी ” ! हमारी विनम्रता देख अन्ना के आँखे नम हो गईं कंधे पर हाथ रख बोले महाराज काश इतनी विनम्रता केजरी किरण और कुमार में होती तो मेरी ये हालत ना होती !

अन्ना ने जरा शिकायती लहजे में पूछा- खैर ये बताईये महाराज आप तो पहले मेरे बड़े कट्टर समर्थक थे लेकिन आजकल खूब टाँग खींचते हो ऐसा क्यूँ ? मैंने कहा आदरणीय अन्नाजी आप बड़ी गलतफहमी में है, मैं क्या पूरा देश का कोई भी व्यक्ति आपका समर्थक नहीं था ! भ्रष्टाचार से त्रस्त हो कर आपके नेक इरादों पर भरोसा कर चलाये जा रहे जनलोकपाल आंदोलन का समर्थक था , और कमोबेश अंत:मन से आज भी हैं लेकिन आपके ये तीन खुजली वाले बंदरों की बेजा हरकतों और नीतियों ने पूरा मामला बिगाड़ दिया है और आप गाँधीवादी की जगह गाँधी के दो बंदर बने रहे ! अन्ना ने बीच में टोकते हुए पूछा महाराज दो क्यों और कैसे जरा स्पष्ट कीजीए ! हमने कहा कोशिश तो आपने तीनो बंदर को आत्मसात करने की थी लेकिन मौन व्रत में भी लिख –लिख कर खूब गरियाये तो गूँगा बंदर तो उछल भागा और आप दो बंदरों को भीतर दबाये टीम अन्ना के करतूतों पर अंधे और बहरे बने रहे जबकि करना ये था कि मौन रहते और आँख और कान दोनो खुले रखते, यही गलती की ! आप धृतराष्ट्र की तरह गाँधी का अंधा बंदर बने रहे और आपके दुर्योधन, दु:साशन , दुशाला और शकुनि मामा ने मदांध होकर ऐसे जुआ खेला कि मुम्बई में आपकी ही धोती दाँव पर लग कर खुल गई !

ये बात अगर कोई नेता कहता तो शायद अन्ना शिवाजी का रूप ले एक और मारो वाला जनसंदेश जारी कर हमे शरद पवार बनाने से नहीं चूकते लेकिन इस बार अन्ना बड़े गंभीर मुद्रा में चिंतित हो आये ! आखिर हम उनके ओमपुरी श्रेणी के प्रिय सहयोगी जो थे ! बोले महाराज बात तुमने बड़ी गंभीर कही है ! इन गधों के सामने बंदर बनने से काम नहीं चलेगा ! इसके लिए कुछ अलग रणनीति बनानी पड़ेगी !

हमने भी मौका देखकर अपना बिन माँगा सलाह ठोक दिया ! अन्नाजी देखिए हमारे पास एक धाँसू आईडिया है जमे तो बताईये लेकिन इसके लिए केजरी और कुमार विश्वास से सलाह मत लेना नहीं तो फिर आपका माथा गेरूआ रंग से पोत कर माईण्ड डायवर्ट कर देंगे ! अन्ना बोले नहीं महाराज तुम बताओ अभी यहीं फैसला कर लूँगा और जमेगा तो तुम्हारे आईडिया को अधिकृत घोषित कर दूँगा !


हमने भी उपर वाले को धन्यवाद दिया और बाबा के कपाल भारती का लोन चुकाने का निश्चय किया और कहा देखो अन्ना जी आपके पास मीडिया जनसमर्थन अभी भी है लेकिन संगठन शक्ति नहीं है ! बाबा के पास संगठन है लेकिन मीडिया स्वीकार्यता नहीं इसलिए आप दोनो मिल जाओ ! रही बात आरएसएस का दाग लगने का तो उसे भूल जाओ ! कोई भी उँगली उठाये तो सीधे जयप्रकाश नारायण जैसे डारेक्ट चेलेंज कर दो ! दो तीन दिन चिल्लायेंगे फिर भूल जायेंगे क्योंकि आप बिदकते हो इसलिए वो चिढ़ाते है ! फिर बाबा का संगठन और आपका चेहरा दोनो मिलकर बैण्ड बजाओ और गाओ " बोलो तारा रारा " फिर देखो कोलावरी से भी ज्यादा हिट ना हुआ तो कहना !

अन्ना बोले महाराज आईडिया तो तुम्हारा सॉलिड है ! स्वास्थ्य लाभ होते ही इसकी घोषणा कर देता हूँ लेकिन बाबा नाराज हैं, लगता है मानेंगे नहीं ! मैंने कहा देखो अन्ना जी आपकी ये कौरव सेना मिडिया में क्या कह रही है हमारा आंदोलन चौराहे पर खड़ा है इससे ज्यादा बेईज्जती की और क्या बात होगी ! इधर आप घोषणा करो, उधर हम बाबा से घोषणा करवा देंगे फिर हमारी भाँड मीडिया आप दोनो का राम-भरत मिलाप करा ही देगी ! लेकिन ध्यान रहे दोनो को " रामेश्वरम " टाईप का आपसी भाव रखना पड़ेगा !

अन्ना बोले महाराज ये रामेश्वरम वाला कौन सा भाव है! हमने कहा देखिये जब लंका जाने के लिए भगवान श्रीराम ने सेतु निर्माण के पूर्व समुद्र तट पर शिवलिंग बनाकर उसे रामेश्वर कहा तब उसका अर्थ क्या बताया “रामस्य ईश्वरः यः सः रामेश्वर: “ अर्थात जो राम का ईश्वर है वो रामेश्वर है मतलब रामेश्वर भगवान शिव हैं ! अन्ना बोले बिल्कुल ठीक ! जवाब में शिव ने क्या कहा “रामः ईश्वरोयस्य सः रामेश्वर:” अर्थात राम जिनके ईश्वर है वही रामेश्वर है ! अन्ना ने कहा अरे वाह ये तो बड़ी अच्छी जानकारी दी लेकिन इसका मेरे और बाबा से क्या सम्बंध है !

हमने कहा बिल्कुल सम्बंध है आप दोनो ही देश हित में काम कर रहे हो ! दोनो का उद्देश्य निज हित से उपर जनहित में है इसलिए दोनो के बीच कौन श्रेष्ठ है इसका कोई औचित्य नहीं ! अत: कोई भी मीडीया में पूछे दोनो में कौन नेतृत्व कर रहा है तो रामेश्वर वाला भाव लाकर एक दूसरे का नाम लेना और कहना मैं उनका सहयोगी हूँ ! बस फिर देखो कमाल !

अन्ना को बात जम गई बोले महाराज अभी तक कहाँ थे ! हमने कहा मैं तो यहीं पैदाईशी बस्तर में हूँ कोई NGO वाला नहीं जो बस्तर का माल दबा के दिल्ली में बैठ कर हाय हाय करे ! ये तो आप ही हैं जो हमें कभी बुलाते नहीं और हमारा ब्लाग भी पढ़ते नहीं वरना ये आईडिया तो हम कब से सोच कर रखे थे ! अन्ना बोले तो फिर क्या केजरी और कुमार को टीम से निकाल दें !

हमने कहा नहीं निकालना नहीं हैं आखिर हैं तो हमारे अपने ही ! थोड़ा अहंकार हो गया था लेकिन मुम्बई के खाली मैदान ने सारा नशा उतार दिया है अब सब ठीक है ! उनसे कहें बस लक्ष्य से भटककर अनर्गल बयानबाजी ना करें ! बड़े मेहनती और समर्पित है , लगायें रखें उनको भी सब मिलकर आगे बढ़ें ! अन्ना बोले महाराज देखना तुम भी एक दिन इतिहास में अमर हो जाओगे ! मैंने कहा अब रहने दें अन्नाजी उस इतिहास में मुझे अपना नाम नहीं लिखाना जिसके कई पन्ने झूठ और फरेब से भरे पड़े हैं ! जिसमें वीर सावरकर को गद्दार कहा जाता है और शोभा सिंह को सर की उपाधि दी जाती है !

इतना सुनते ही अन्ना की कमजोरी ठीक हो गई, शरीर में नये उर्जा का संचार हुआ और चेहरे में अप्रैल 11 वाली पुरानी चमक वापस आ गई ! अन्ना बड़े प्रसन्न , उनको प्रसन्न देखकर हम भी प्रसन्न हो गये !

फिर अन्ना ने हमसे बिदा माँगी .. हमने कहा अन्नाजी एक पर्सनलटाईप का रिक्वेस्ट था अगर आप अन्यथा ना लें और इजाजत दे तो पूछूँ ! अन्ना ने कहा पूछो महाराज, बेझिझक पूछो ! हमने कहा ये आपने पीयक्कड़ो को जब से पीट-पीट कर सुधारने का आईडिया दिया है तब से हम बहुत पीड़ित हैं ! रोज शाम को हमारी निजी चिदम्बरम दिल्ली पुलिस के रोल में आ जाती है और सारी की सारी उतार देती है !

अन्ना ने कहा तो फिर छोड़ क्यों नहीं देते? हमने चहक पर कहा बस आप एक बार अपील कर दें तो आज ही तलाक दे दूँगा ! अन्ना ने कहा अरे मूर्खाधिराज महाराज हमने शाम की दवा छोड़ने को कहा है पत्नी को नहीं ! हमने उदास होकर कहा अन्नाजी बिना शाम की उर्जा दवा लिए हमें आईडिया नहीं आता ! अब हम छोड़ तो दें लेकिन आप सोच लें कभी भविष्य में आपको आईडिया की जरूरत होगी तो फिर हमसे मत कहियेगा !

अन्ना ने कहा ऐसा मत करिये महाराज हम घोषणा करते हैं कि पीना बुरा नहीं है पीकर बहकना बुरी बात है ! शाम की दवा लेकर साहित्य सृजन और देश को नई दिशा दिखाने हेतु आईडिया बनाने वाले जनसामान्य को राष्ट्रहित में आत्मबलिदानी घोषित किया जाता है !

हमने पूरी आत्मा से चिल्लाकर कहा
 “ या अन्ना हम ना हुए "
चीयर्स .. जय कालभैरव !!

सोमवार, 9 जनवरी 2012

मैं तुलसी तेरे आँगन की - कुशवाहा का कमलासन

कमल हवेली में आई पुरानी ऐलीफेंटा मॉडल की एक नई दुलहन कुशवाही देवी का ह्रदयनाथ सिंह और खटियार बाबू ने खुश होने के साथ वाह वाह कर स्वागत किया गया और कहा गया बहू पिछवाड़े में बिखरे पड़े अनाजों का संग्रह कर परिवार को सम्पन्न करेगी किंतु उसके गृह परवेश करते ही उस पर लगे काले चाल चरित्र के धब्बों के कारण परिवार के मर्यादा पर लांक्षन लगने लगी ! सारे विरोधी पड़ोसी मौका पाते ही थू थू करने लगे ! यहाँ तक की बिहार के दामाद बाबू भी लानत मलामत करने लगे ! हद तो तब हो गई जब घर के ही सदस्य इस पर उँगली उठाने लगे ! अविवाहित बेटी भारती दीदी ने नाराज होकर चुनावी उत्सव में मौन धारण कर लिया ! युवा बेटा आदित्य घर छोड़ कर योगी बनने धमकी देने लगा और उसकी बातों का खिलाड़ी बेटा आजाद होकर समर्थन करने लगा ! यहाँ तक की पशु पक्षियों से प्रेम करने वाली घर की एक बहु रम्भा ने भी आपत्ति उठाई !


खबर तो ये भी उड़ी थी कि घर के पितामह कृष्ण और परिवार का सामाजिक प्रतिनिधित्व  करने वाले केतली चाचा और बड़ी बहू उष्मा गेराज भी इस रिश्ते से खुश नहीं थे ! पूरे गली मोहल्ले में थू थू होने लगी ! ईर्ष्यालु पड़ोसी तो इसी मौके की तलाश में थे ! मौका देख मोहल्ले के बड़ी हवेली के दुलारे बेटे बबलू ने भी चौक में खड़े होकर ये कहकर फिकरे कसना चालू कर दिया कि ये कुशवाही तो पहले हमारे हवेली के ख्वाब देख रही थी मैंने घास नहीं डाली तो पैसे से अपने को बेचकर कमल हवेली में गई है ! बात मोहल्ले से निकल कर पूरे गाँव में फैलने लगी ! इतने में परिवार के संतरापुर आश्रम के कुल गुरू के द्वारा संदेश भिजवाया गया जैसे भी हो इस बदनामी के दाग को धोया जाय या कम से कम छुपाया जाय इससे परिवार की मान मर्यादा के साथ साथ आश्रम द्वारा दिये जा रहे संस्कारों पर भी उँगली उठनी चालू हो गई है !
 
अब क्या था चाहे कुछ भी हो जाये परिवार आश्रम के द्वारा ही संस्कारित था अत: कुल गुरू के निर्देशों की अवहेलना तो सपने में भी नहीं कर सकता था !  आनन फानन में घर के बुध्दिमान लोगों के बीच मंत्रणा कर इस कष्ट से निवारण का उपाय ढूँढा जाने लगा ! गहन विचार विमर्श के बाद एक जबरदस्त आईडिया निकाला गया !
 

परिवार के मनोनीत मुखिया गुणकारी बाबू को सम्बोधित कर नई बहु कुशवाही के कोमल हाथों से चिठ्ठी लिखवाई गई  !

आदरणीय गुणकारी बाबूजी
,
 
मेरी अंतरात्मा जानती है कि मैं तन से कितनी भी मलीन क्यूँ ना रहूँ पर मन मेरा शुध्द और पवित्र है ! मुझ पर लगाये गये आरोप जब तक साबित नहीं हो जाते तब तक न्याय के मान्य सिध्दांत के अनुसार मैं निर्दोष ही हूँ ! चूँकि सत्ता संग्राम की इस कठिन घड़ी में मेरे कारण पूरे परिवार को अपमान का दंश झेलना पड़ रहा  है अत: स्वेच्छा से मैं अनिश्चितकाल के लिए अपनी नव गृहस्थी का परित्याग करती हूँ  और घोषणा करती हूँ कि सत्ता संग्राम की समाप्ति उपरांत जब तक अग्निपरीक्षा में स्वयं को निर्दोष सिध्द न कर दूँ परिवार में सम्मिलित नहीं हुँगी ! आपसे अनुरोध है कि मेरे इस परित्याग को स्वीकार कर पारिवारिक सूची से निलम्बित करने की कृपा करें ! मुझे पूर्ण विश्वास है सत्ता संग्राम में विजयी होने के उपरांत फायरप्रुफ जेकेट की सहायता से अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण कर सकुशल बाहर निकाला जायेगा तथा निष्कलंक होने का सम्मान प्रदान किया जायेगा !  आशा है मेरे इस कृत्य को कुल के मान सम्मान के रक्षार्थ किये गये त्याग से महिमा मण्डित किया जाकर उचित मान सम्मान प्रदान किया जायेगा !

बस फिर क्या था गुणकारी बाबूजी ने नववधू का कोमल भावना से ओतप्रोत त्याग पत्र स्वीकार किया और घोषणा की “ हमारी बहू पवित्र और निष्कलंक है और साथ साथ संस्कारवान भी ! उसने अपने निजी सुखों का बलिदान कर परिवार के मान सम्मान के लिए गृहस्थ जीवन का सहर्ष परित्याग किया है ! मुझे पूरा विश्वास है कि अग्निपरीक्षा में किसी भी तरह से वो सफल होकर अपनी निर्दोषता एवं पवित्रता सिध्द करेगी ! हमारा परिवार सदैव संस्कारी, कुलीन और सभ्रांत रहा है और आज एक बार फिर से सिध्द हुआ है !

लेकिन अब बाजी उल्टी हो गई थी ! पड़ौसी नव बधू के घर से निलम्बित होने से खुश होने की बजाय मातम मना रहे थे ! इस बीच उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसकती दिखाई दी जब कमल हवेली के लोगों ने बड़ी हवेली पर ये कहकर ताने मारने लगे कि हमारी बहु तो गृहस्थी प्रारंभ करने से पहले ही स्वेच्छा से त्याग कर कुलीन होने का प्रमाण दिया है लेकिन तुम्हारी हवेली का क्या तुम्हारी बहुयें तो हवेली के बालकनी से राहगीरों से नैन मिलाती हैं और उन्हे तो आप बाहर भी नहीं निकाल सकते क्योंकि आपके कई नौनिहालों की माँ भी बन चुकी हैं ! ये अब जायेंगी तो अपने ससुराल से सीधे तिहाड़ गाँव के मायके में ही ! 

अब सायकल वाला छैला बाबू, देशी ठेके में बीड़ी सुलगा लोगों से गलबहियाँ कर रहा है ! बहनजी अपनी ही मुर्ति को बुर्का पहनाये जाने के खबर से दुखी है ! बड़ी हवेली के को क्या पकवान बनाये ये सूझ नहीं रहा पर लाड़ला बबलू अब भी हाथियों को हेलीकाफ्टर समझकर गाँव की कच्ची पगडंडीयों पर कंचे खेलने में मशगुल है क्योंकि उसे मालूम है सत्ता संग्राम में कोई भी जीते वो जब भी चाहेगा उसकी ताजपोशी तय है ! अजब है पर सच है राजनीति के इस अंधे गाँव की उल्टी रीत है ..  वधु के घर से निकाले जाने पर परिवार और रिश्तेदार खुश है और दुश्मन पड़ौसी मातम मना रहे हैं !! जय हो !!   

शनिवार, 7 जनवरी 2012

खबरें जिन्हे सुर्खियाँ बननी थी पर अफसोस !

कल खबरों की दुनियाँ में रहने वाले लोगों के लिए तीन बड़ी घटनायें घटी लेकिन अफसोस किसी भी बुध्दजीवी द्वारा इसे महत्व नहीं दिया गया ..  सभी लोग जैसे लोकतंत्र के अश्वमेध यज्ञ में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने तो तत्पर बाबूलाल कुशवाहा प्रकरण में लानत मलामत करने में व्यस्त रहे ...  कमोबेश शायद आज भी रहेंगे !  

TRP सिंड्रोम से ग्रस्त मीडिया की अपनी चाल होती है वो शतरंज के घोड़े की तरह मौका देखकर अपनी सुविधानुसार ढाई घर चलता है ! कुशवाहा प्रकरण को मीडिया इवेंट बनाने में नाकाम मीडिया को शाम होते होते TRP की चिंता सताने लगी तो कुछ “काबिल विनोदी ” टाईप के लोगों को जमा कर क्रिकेट के गिरते स्तर और लोकप्रियता पर गंभीर विचार विमर्श चालू किया गया ! देखकर ऐसा लगा मानो क्रिकेट का नहीं बल्कि भारत का चारित्रिक पतन हो रहा है और इस चारित्रिक पतन से बचने के लिए सहवाग, लक्ष्मण को हटाकर नये कंधो पर विश्वास दिखाने का विधवा प्रलाप वे ही लोग कर रहे थे जो अभी कुछ दिनों पहले तक इन्ही को वेरी वेरी स्पेशियल और भारतीय क्रिकेट के आधार स्तम्भ की पदवी देकर महिमा मण्डन में अपनी सारी उर्जा लगा दिये थे !  

खैर जाने दे इन बातों में मुख्य मुद्दा तो छूट ही गया और वे तीन बड़ी खबरें जो पूरी मीडिया , चौक चौराहों, ड्राईंग रूम, चौपालों में चर्चा की विषयवस्तु होनी थी, अफसोस वो नहीं बन सकी !

वे तीन खबरे हैं  -
1 भँवरी हत्याकाण्ड में सीबीआई को मिले सुराग
2 आरूषि हत्याकाण्ड पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
3 शांतिभूषण का स्टाम्प चोरी का केस  

इन तीनों खबरों में कोई नयापन तो नहीं है किंतु ये सभी प्रकरण देश की दशा दिशा निर्धारित करने वाले लोगों अथवा संस्थाओं से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं इसलिए इसकी अपनी एक महत्ता तो है !  
प्रथम दो खबरों में देश की सर्वोच्च जाँच ऐजेंसी सीबीआई की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा प्रश्न है ! बाबुलाल कुशवाहा प्रकरण पर तो राजनैतिक दल चीख चीख कर कह रहें हैं कि ये राजनीति से प्रेरित है क्या इसलिए कि यू पी चुनावों के मद्देनजर इससे तत्कालिक राजनैतिक फायदा उठाया जाय लेकिन उपरोक्त दोनो खबरों से चुनावों में कोई राजनैतिक लाभ नही मिलता देख सभी राजनैतिक दल चुप है और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने का दावा करने वाली उसकी भाँड मिडिया ने केवल एक बाईट चलाने की रश्म अदायगी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली !   

आरूषि हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जो टिप्पणी की है उसके अत्यंत गंभीर मायने हैं ! ये शाब्दिक और याचिका की दृष्टि से है तो तलवार दम्पत्ति के खिलाफ लेकिन हमें इस कठोर टिप्पणी पर सीबीआई के उस क्लोजर रिपोर्ट पर भी ध्यान देना चाहिए जिसमें सीबीआई ने कहा कि था उसे इस हत्याकांड में किसी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले, इसलिए इस केस को बंद कर दिया जाए। अब देखना ये है कि सीबीआई का इस मामले में आगे रवैय्या क्या रहता है ! इसी प्रकार सुस्त रफ्तार से चल रहे एक राजनैतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भंवरी मामले में दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान जब नवम्बर माह में हाईकोर्ट ने सीबीआई से फटकार लगाकर कहा था कि इस मामले की जांच अनंतकाल तक जारी नहीं रखी जा सकती और  अदालत ने इस बात को लेकर चिंता जताई कि इस प्रकरण का हश्र भी कहीं नोएडा के आरुषि  मामले जैसा नहीं हो जाए तब सीबीआई ने मामले की  जाँच में तेजी लाई और नतीजतन कल उसे नहर से कुछ अस्थियाँ और अन्य सामग्री मिली है ! 

इन दोनों प्रकरणों में एक सामान्य तथ्य यह उभरकर आता है कि क्या हर मामले में कोर्ट के फटकार लगाने के बाद ही सीबीआई की नींद खुलती है और वास्तविक जाँच चालू होती है ! जैसा कि पूर्व में टेलीकाम घोटाले में भी देखा गया है ! विचारणीय प्रश्न यही है कि जब सीबीआई स्वतंत्र है और उसमें जाँच अधिकारी भी वहीं हैं तो इन अधिकारियों को कोर्ट से फटकार लगाये जाने तक कुम्भकरणीय निद्रा में जाने की प्रेरणा कौन देता है !  

तीसरी खबर शांतिभूषण के स्टाम्प चोरी मामले का है जिसमें उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्टाम्प कोर्ट ने टीम अन्ना के सदस्य और वकील शांति भूषण पर स्टाम्प चोरी के मामले में जुर्माना लगाया है। शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए असिस्टेंट स्टाम्प कमीश्नर ने शांतिभूषण पर 27 लाख 22 हजार 88 रूपये का जुर्माना लगाया है। इसके अलावा 1.34 करोड़ की स्टाम्प ड्यूटी पर 1.5 फीसदी की दर से ब्याज देने को कहा गया है। 

आर्थिक रूप से यह मामला तो बिल्कुल निजी और सामान्य मामला है किंतु जनलोकपाल के संदर्भ में इसकी भूमिका काफी अहम है ! सर्वप्रथम आप इस प्रकरण के मूल तथ्यों को जान लें तो मामले को समझने में आसानी होगी  !   

इलाहाबाद में सिविल लाइंस के एल्गिन रोड के बंगला नंबर 77/29 में शान्ति भूषण बरसों से किराए पर रह रहे थे, उस बंगले की 7818 वर्ग मीटर जमीन 29 नवम्बर 2010 को शान्ति भूषण ने महज एक लाख रूपए में खरीद ली। जबकि उस दौरान मिनिमम सर्किल रेट के हिसाब से इस जमीन की कीमत करीब 20 करोड़ रूपए थी।  एग्रीमेंट और बैनामे में शान्ति भूषण ने कुल मिलाकर 46 हजार रूपए की स्टाम्प ड्यूटी अदा की थी। सर्किल रेट के हिसाब से इस जमीन को खरीदने पर एक करोड़ 33 लाख 54 हजार 600 रूपए की स्टाम्प ड्यूटी जमा की जानी चाहिए थी। मामला सामने आने के बाद रजिस्ट्री विभाग ने जमीन के ओरिजनल कागजात जब्त करते हुए शान्ति भूषण के खिलाफ स्टाम्प एक्ट की धारा 33/47 के तहत मामला दर्ज कर लिया था।

अब हरीशचंद्र के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले शांति भूषण ये कह रहे हैं कि ये मामला राजनीति से प्रेरित है इसे वे कोर्ट में चुनौती देगे ! ये उनका संवैधानिक अधिकार है लेकिन एक बात तो किसी भी व्यक्ति को समझ आ जायेगी कि भले ही 2010 में इलाहाबाद में प्रापर्टी का मूल्य कुछ भी रहा हो लेकिन लगभग 8 हजार वर्ग मीटर जमीन पर निर्मित बंगले की कीमत कम से कम बारह रूपये वर्ग मीटर तो नहीं हो सकती ! इस कीमत पर तो एक छोटे से गाँव में भी मासिक किराये पर भी मकान भी नहीं मिलते ! बहरहाल ये बचकाना हरकत है और निश्चित रूप से कर चोरी का सत्यापित मामला है ! 

अब शायद देश का प्रथम ईमानदार व्यक्ति होने का दावा करने वाले केजरीवाल को शांतिभूषण के लिए कोई फाईनेंसियल टेक्नीकल इरेग्यूलिरीटी जैसा भारी भरकम जुमला याद ना आ रहा हो शायद इसिलिए शुतुरमुर्ग की तरह शांत मुँह गड़ाये खड़ा है ! लेकिन उससे भी बड़ी आश्चर्य की बात ये है कि आधी रात को नींद में भी अन्ना को कोसने वाले झण्डाबरदार राजनेता इस मामले में मौन व्रत धारण किये हुए हैं ! शायद उन्हे इस बात का संतोष है कि मुम्बई में अन्ना का मीडिया शो फ्लाफ रहा और किसी रहस्यमय कमजोरी के कारण अन्ना व उसकी टीम चुनावों में जनजागृति नहीं करेगी ! अत: वर्तमान में हो रहे चुनावों में उनसे कोई राजनैतिक नुकसान नहीं है ! सही है यदि अपने निजी सामाजिक मान्यता प्राप्त माँ बाप के मरने से भी यदि कोई राजनैतिक फायदा नहीं होता है तो इन राजनेताओं को वो असामयिक बेकार की घटना ही लगती है !  

मेरी ये बातें साहित्य की दृष्टि से तुच्छ हो तथा वातानुकूलित उच्च वर्गीय बौध्दिक श्रेणी के चिंतकों के लिए कोई अर्थ,  कोई स्थान, कोई सम्मान भले ना रखती हों किंतु इसकी प्रासंगिकता तो जरूर है ऐसा मुझे लगता है ! हो सकता है मैं गलत हूँ किंतु यदि आपके पास अपने अमूल्य समय में थोड़ी गुंजाईश हो तो आप इसे पढ़कर चाहे वो मुझे लानत मलामत ही क्यूँ ना हो , अपनी राय तो दे ही सकते है !! जय हो !!