बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

मोमबत्ती की हाय हाय और चंदामामा की जय


कल दिनभर दुनिया की खबरों से जुदा रहा ! रात घर लौटा तो जिज्ञासा हुई कि जरा देखूँ दिन भर क्या घटा ! टीवी चालू करते ही वही चार भाँड जो कल तक टीम इंडिया को पानी पी पीकर कोस रहे थे आज वही लोग महिमा मंडन में लगे हुए थे! इन भाँडों पर मुझे व्यक्तिगत रूप से कोई दिलचस्पी नहीं अतएव मैं बाकी खबरों के लिए चैनल बदलने लगा ! आजकल समाचार चैनल भी किसी चुनाव में खड़े प्रत्याशियों की संख्या से ज्यादा हैं लेकिन दोनों में एक समानता तो है, विकल्प की पूरी फौज है पर योग्य कोई नहीं ! सो लोकतंत्र के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करने की मजबूरी जैसे जो सबसे कम भँडवा चैनल है उसका चयन कर सही खबर की तलाश करता रहता हूँ !

 
खैर जाने दें मुख्य मुद्दे पर आतें है ! खबरों की तलाश करते हुए मुझे दो खबरें महत्वपूर्ण लगी ! पहली खबर अगस्त 2011 में हुए भोपाल की
RTI एक्टिविस्ट शहला मसूद की हत्या के सीबीआई जाँच की उपलब्धि और दूसरी अरविंद केजरीवाल का मतदान न कर पाना !


पहली खबर इस दृष्टि से महत्वपूर्ण थी कि सीबीआई ने आज दो लोगों को इस सिलसिले में गिरफ्तार किया जिसमें भोपाल की ही एक सफल इंटीरीयर डिजानर जाहिदा परवेज को मुख्य आरोपी बताया जा रहा है ! समाचार चैनलों के अनुसार सीबीआई ने ये पाया है कि जाहिदा परवेज ने शहला मसूद की हत्या के लिए सुपारी दी थी और जाँच का दबाव बढ़ने पर उसने कांट्रेक्ट किलर की भी कानपुर में हत्या करवा दी ! उसे शक था कि शहला मसूद की उसके पति के साथ नाजायज सम्बंध थे ! ये तो न्यायालय तय करेगा कि इसमें कितनी सच्चाई है और कौन दोषी ! लेकिन प्रारंभिक अनुसंधान से एक बात तो साफ हो गई कि इस हत्या में किसी भ्रष्ट नेता या सरकारी पदासीन लोगों का हाथ नहीं ! मुझे अच्छे से याद है उन दिनों रामलीला के खेत में अन्ना का गन्ना पुरे हरियाली के साथ लहलहा रहा था और इस फसल से अतिरिक्त रूप से उत्साहित पंजीकृत मोमबत्ती ब्रिग्रेडी मानवधिक्कारी चंदामामा के सेक्यूलर भांजे भांजियाँ शहला मसूद के मामले में चीख चीख कर ध्वनि प्रदुषण कर रहे थे कि भगवा पार्टी के नेताओं ने अपने भ्रष्टाचार से बेनकाब हो जाने के डर से उसकी हत्या की है ! लेकिन इनका असली मकसद किसी समाज की भलाई नहीं वरन सदैव किसी भी मामले को अपने फायदे हेतु मोमबत्ती जलाकर एक सुर में कोलावरी श्यापा गाने और अपनी दुकानदारी चमकाकर चंदे बटोरना है ! इनके इसी असली मकसद को आम लोगों को समझकर बेनकाब करने की जरूरत है !



दूसरी खबर स्वघोषित सत्यनिष्ठ हरिशचंद्रवंशी महामना अरविंद केजरीवाल का है ! उन्होने मिडिया में अपने मतदान ना कर पाने की गमगीन दासतां इस तरह सुनाई कि अन्नावादियों के आंसूओं से सूखी नदी में बाढ़ आ जाये !  मतदाता सूची में नाम ना होने के कारण आज मतदान से वंचित केजरीबाबू ने बड़ी चालाकी से मामले को नया रंग दिया और कहा कि मतदाता सूची में नाम ना होना प्रशासन की गलती है ! जब उनसे पूछा गया कि आपने नेट पर अपना नाम पहले चेक क्यों नहीं किया तो किसी स्कूली बच्चे जैसा बड़े भोलेपन से कहा मेरे पास वोटर आईडी कार्ड है और मेरा नाम हमेशा रहता ही है इसलिए मैंने सोचा कि आज भी मेरा नाम वोटर लिस्ट में होगा ! मतदाताओं को जागृत करने निकले इस स्वघोषित युगपुरूष को ये भी नहीं पता कि चार साल पहले वोट दिये जाने के बाद कई बार मतदाता पुनरीक्षण का कार्य किया गया होगा और सम्भवत: उनका नाम काट भी दिया गया होगा क्योंकि चंदा मामा की खोज में ये तो हमेशा घर से बाहर स्टेशन पर ही सोता है !



लेकिन ये मुद्दा बहस का विषय नहीं है ! इसी बीच किसी उँगलीबाज टाईप के पत्रकार ने सवाल दाग दिया कि आप तो गोवा जाने के लिए बिना मतदान किये ही एयरपोर्ट पहुँच गये थे फिर वापस कैसे आये ! लोगों को गुमराह करने वाला ये महान शख्स इस मामले में बड़ा ही अनुभवी और योग्य है ! इस सवाल पर उसने जो कहा उससे तो भारत रत्न की दावेदारी बनती है ! उसने बड़ी चालाकी से मिडिया से कहा एयरपोर्ट जाते समय मेरी अंतरात्मा ने कचौटा और मुझे काफी गिल्टी फील हो रही थी इसलिए एयरपोर्ट पहुँच कर मैने आयोजकों से कार्यक्रमों को रद्द करने को कहा और वोट डालने आ गया !





लेकिन असलियत कुछ और थी ! एयरपोर्ट जाने से पहले एक मिडिया चैनल ने उससे सवाल किया था कि आप वोट डाले बिना कैसे गोवा जा रहें है तो उसने बड़ी बेशर्मी से मुस्कुराते हुए जवाब दिया अरे यार जाने दो पोलिंग बूथ पर काफी लम्बी लाईन होगी और मैं वोट डालने गया तो गोवा जाने में लेट हो जाऊँगा ! मतलब साफ है उसके लिए वोट डालने से ज्यादा जरूरी है भाषण देना और लोगों को मतदान हेतु जागृत करना ! उसकी अंतरात्मा गिल्टी फील नहीं की बल्कि उसने अपने क्षद्म मीडिया इमेज के खराब होने के डर ने अपना रूख एयरपोर्ट से वापस पोलिंग बूथ की ओर मोड़ा और उसे भी अपने महान चरित्र के महिमा मण्डित करने का जुगाड़ वापस आते आते सोच लिया ! वाह रे केजरी अगर इतनी गिल्टी थी तो एयरपोर्ट गया ही क्यूँ ? घर से ही फोन क्यूँ नहीं कर लिया और अपने उस रिकार्डेड बयान का क्या जबाब देगा जिसमें तुमने बेशर्मी से कहा लाईन में खड़ा होकर वोट देने से तुम गोवा जाने में लेट हो जाओगे इसलिए वोट देने नही जा रहे !

मैं भी चाहता हूँ कि केजरी जैसा महान बनूँ और देश को जगाऊँ ! इस हेतु सोचता हूँ गोवा जाकर "मत" दाताओं को जाग-रूक करूँ ! क्या कोई दानदाता सीता के राम जैसा जिंदादिल है जो मेरे गोवा आने-जाने के फ्लाईट का किराया और किसी बीच के किनारे बने रिसोर्ट में मेरे पीने-खाने तथा सोने के इंतजाम बावत खर्चे के लिए चंदा दे ! मैं दिन भर समुद्री तट पर और रात भर घर घर घुसकर लोगों को जगाऊँगा ! मुझे तो एवार्ड भी नहीं चाहिए !

मैंने अपनी जिंदगी में खुद आराम से गहरी नींद में सोते हुए "जागते रहो" का बाँग लगाने वाला ऐसा गोरखा पहली बार देखा ! केजरी सा'ब जी आपकी टीम अन्ना के लिए नया नारा दे रहा हूँ  “जागते रहो और हमारे भरोसे मत रहो”

.....................  चंदा मामा की जय ................ सीताराम जिंदलबाद !

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

द अन्ना रिटर्न ....



25 लाख का सीतारम जिंदल एवार्ड प्राप्त करने के बाद किशन बाबू राव हजारे उर्फ अन्ना ने घोषणा की है कि वे पूरे देश में लोकसभा चुनाव 2014 को ध्यान में रखते हुए नई रणनीति बनाकर फिर से देश व्यापी जन आंदोलन करेंगे और इस बार मुद्दा होगा “राईट टू रिजेक्ट” ! लेकिन क्या उन्हे इस बात का खयाल है कि अपने पहले किये गये जनलोकपाल का आंदोलन सफल हो गया ?? क्या एक अच्छा लोकपाल कानून बन गया ??

लेकिन कार्पोरेट टीम अन्ना का इससे क्या मतलब है ! उन्हे तो अपनी दुकानदारी चलानी है ! अब शायद जन लोकपाल वाले धंधे में फायदा नहीं रह गया ! इसलिए ताजा एक वर्ष का एसाईनमेंट लेकर नया धंधा चालू करने की सोच रहे है और ये चलेगा मार्च – अप्रेल 2014 तक ठीक आम चुनावों के एक दो माह पूर्व तक ! अबकी बार शायद उन्हे ठण्डी नहीं लगेगी ! मार्च अप्रेल की गर्मी में अबकी उन्हे लू लग जायेगी और डाईरिया हो जायेगा फिर किसी पद्मविभूषण डॉक्टर की चिकित्सकीय सलाह पर तीन महिने आराम करने की सलाह !

जनता को ऐड़ा समझकर पेड़ा खाने वाले कार्पोरेट अनशनकारियों .. ध्यान रहे जन समर्थन का रिशेसन कहीं राईट टू रिजेक्ट बिल की जगह राईट टू रिजेक्ट अन्ना पारित ना कर दे और टीम अन्ना प्राईवेट लिमिटेड को मुँह छिपाने को बिल तलाश करना पड़े ! तब क्या देश से माल्या की तरह बेल आऊट पैकेज की माँग करोगे ?????

बात अन्ना विरोधी होने की नहीं  .. मैंने आज अन्ना का बयान सुना .. उन्होने कहा 2014 चुनावों को ध्यान में रखते हुए नये सिरे से रणनीति बना एक नया आंदोलन "राईट टू रिजेक्ट" की घोषणा की ??  प्रश्न ये उठता है क्या लोकपाल कानून आ गया और क्यूँ हर बार एक नये चुनाव को ध्यान रखते हुए कार्पोरेट टीम अन्ना एक नई रणनीति बनाती है .... जरा सोचें और अपनी अकल लगायें ... वरना मैं भी अन्ना तू भी अन्ना करने से देश में कोई परिवर्तन आने वाला नहीं ....  आप भारत माता की जय चिल्लाते रहें और आपके कंधे पर चढ़कर कार्पोरेट टीम अन्ना यूँ ही सीताराम जिंदलबाद करती रहेगी !
बंदा.... मात्र ..... रम ........ सीताराम जिंदलबाद ..

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

परम्परा की बासंतीफुहार फागुन मड़ई

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 388किमी दूर दक्षिणी छोर पर स्थित जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा के शंकिनी डंकिनी नदियों के संगम स्थल पर विराजित माँ दंतेश्वरी देवी का प्रसिध्द ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक प्राचीन शक्तिपीठ ।
 

इसी अधिष्ठात्री माँ दंतेश्वरी की छत्रछाया में आयोजित होता है दंतेवाड़ा का प्रसिध्द फागुन मंड़ई । बसंत ऋतु में आगमन पर सम्पूर्ण जनजीवन फागुन मंड़ई के सम्मोहन में बंधकर इस संगम पर इकठ्ठा हो जाता है ।


ऐसी मान्यता है कि शक्ति स्वरूपा माँ सती के इस स्थान पर दाँत गिरने के कारण इस देवी का नाम दंतेश्वरी एवं स्थान का नाम दंतेवाड़ा पड़ा । बस्तर महाराजा अन्नम देव ने इस शक्तिपीठ का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में करवाया । आदिवासी लोक संस्कृति , परम्पराओं एवं मान्यताओं को जीवित रखने हेतु राजा पुरूषोत्तम देव ने फागुन मंड़ई की शुरूआत कराई ।


फागुन मंड़ई के नाम से विख्यात इस वासंतिक पर्व की औपचारिक शुरूआत बसंत पंचमी के दिन मंदिर के प्रांगण में त्रिशूल स्तम्भ गाड़कर एवं माई जी के छत्र पर आम बौर चढ़ाकर की जाती है तथा फागुन मास के अंतिम दस दिनों में आयोजित होने वाला आदिवासी समाज की पारम्परिक देवभक्ति, आदिवासी संस्कृति, लोक नृत्यों का यह उत्सव अपने चरम पर होता है।


मंदिर के सामने स्थित मैदान मेंडका डोबरा में माँ दंतेश्वरी की कलश स्थापना के साथ ही इस उत्सव का शुभारंभ होता है जिसमें बस्तर संभाग एवं उड़ीसा के नवरंगपुर जिले के सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाकर सहभागी बनाया जाता है !


इस वर्ष यह आयोजन फाल्गुन शुक्ल षष्ठी संवत 2068 तदनुसार दिनांक 28/02/12 से 09/03/12 तक निर्धारित है ।


कलश स्थापना के दूसरे दिन ताड़फलंगी धुवानी विधान सम्पन्न किया जाता है जिसका अर्थ होता है ताड़ वृक्ष के पत्तों को धोना । ताड़ के इन पत्तों को माता तरई (माता का तालाब) में धोकर होलिका दहन के लिए सुरक्षित रखा जाता है । इस बीच माई जी की पालकी प्रतिदिन सायं मंदिर से नारायण मंदिर के लिए निकाली जाती है तत्पश्चात पुनः मंदिर वापस लाई जाती है तत्पश्चात विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं ।


तीसरे दिन खोर खुँदनी एवं चौथे दिन नाच मांडनी का कार्यक्रम होता है । नाच माण्डनी में पूजा स्थल पर मांदर, नगाड़े की थाप पर मंदिर के सेवादार एवं अन्य लोग माई दंतेश्वरी के सम्मुख नृत्य करते हैं । आदिम संस्कृति के मेलमिलाप,हॅंसी ठिठोली एवं उल्लास का वातावरण पूरे उत्सव के दौरान अपने चरम पर रहती है ।


अगले चार दिनों तक लमहा मार, कोडरीमार, चीतलमार एवं गँवरमार के रूप में शिकार नृत्यों का आयोजन सम्पन्न होता है । जिसमें गँवरमार मेले का मुख्य आकर्षण होता है जो रातभर चलता है ।



इन आयोजनो को देखने एवं सम्मिलित होने हजारों की संख्या में ग्रामीण एकत्रित होते हैं । आदिवासीयों में आखेट नृत्यों की परम्परा काफी प्राचीन है जो कि उनमें परस्पर सहयोग के पारम्परिक आखेट जीवन को रेखांकित करती है । जीवन के प्रत्येक क्षण को कला में परिवर्तित कर लोकसंस्कृति को जीवित रखने का यह प्रयास इन जन-जातियों की प्रमुख विशेषता है ।


आखेट नृत्यों के अलावा आँवरामार का भी आयोजन किया जाता है । उस दिन माई जी की पालकी पर आँवले का फल चढ़ाया जाता है । मंड़ई देखने आये जन समूह एवं पुजारी, सेवादार, बारहलंकवार इत्यादि दो समूहों में विभक्त होकर एक दूसरे पर इसी आँवले से प्रहार करते हैं । ऐसी मान्यता है कि आँवरामार विधान के दौरान प्रसाद स्वरूप चढ़े इस फल की मार यदि किसी के शरीर पर पड़ती है तो वर्ष भर वो निरोगी रहता है ।


त्रयोदशी को ताड़फलंगी विधान द्वारा सुरक्षित ताड़ के पत्तों से होलिका दहन कार्यक्रम सम्पन्न किया जाता है । मंडई के अंतिम चरण में चतुर्दशी के दिन रंग भंग ( गुलाल-अबीर ) उत्सव मना कर सभी आमंत्रित देवी देवताओं का पादुका पूजन किया जाता है तत्पश्चात् उन्हें भावभीनी बिदाई दी जाती है ।



गँवर मार के दूसरे दिन मंडई का उत्सव होता है जिसमें पुजारी द्वारा दोनो हाथों में माईजी के छत्रों को थामें हुए कुर्सी से बने पालकी में बिठाया जाता है तथा सारे नगर का भ्रमण कराया जाता है । मंड़ई बुधवार के दिन ही आयोजित किया जाता है एवं उसके एक दिन पहले मंगलवार को गँवरमार का आयोजन किये जाने की परम्परा है । अतः इन दोनो कार्यक्रमों को मंगलवार एवं बुधवार के दिनों में आयोजित किये जाने हेतु उत्सव के क्रम में फेरबदल भी किया जाता है ।



कैसे पँहुचें ….... छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर देश के अन्य भागों से हवाई, रेल तथा सड़क मार्गों से सुव्यवस्थित जुड़ा हुआ है । रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर से दंतेवाड़ा के लिए सड़क मार्ग द्वारा बहुतायत में लक्जरी स्लीपर बसों का संचालन होता है । प्राइवेट टैक्सी द्वारा भी 7 घण्टे की यात्रा द्वारा रायपुर से पहुँचा जा सकता है । रेल यात्री विशाखापट्नम से भी किरंदुल पैसेन्जर से यहाँ पहुँच सकते हैं ।



कहाँ रूकें .......... माँ दंतेश्वरी के दो धर्मशाला निर्मित है जिनमें नाममात्र शुल्क अदा कर ठहरा जा सकता है । इसके अतिरिक्त होटल मधुबन एवं विभिन्न विभागों के सरकारी विश्राम गृह भी हैं ।

 

अन्य समीपस्थ दर्शनीय स्थल - बारसूर (30किमी) , लौहनगरी बैलाडीला (30किमी) , चित्रकूट जलप्रपात ( 75किमी) तीरथगढ़ जलप्रपात एवं कुटुमसर गुफा ( 80किमी ) ।