बुधवार, 28 मार्च 2012

सरदार और असरदार अर्थशास्त्र

कल जरा फुर्सत मिली तो लोकसभा में बजट पर चर्चा सुनने लगा ! शाम 3.30 को छ बार बजट पेश कर चुके पूर्व वित्त मंत्री और हजारीबाज ( झारखण्ड ) से वर्तमान सांसद यशवंत सिन्हा जी का अभिभाषण और उसके बाद वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी का बयान सुना ! सबसे पहले तो इस बात की खुशी मिली कि संसद में इन डेढ़ घण्टों में बिना कोई शोर शराबे के गंभीर और सार्थक परिचर्चा सुनने को मिली ! प्रणव दा निसंदेह  UPA  सरकार में सबसे योग्य और निर्विवाद मंत्री है जिनका विरोधी भी सम्मान करतें है !
उन्होने बड़ी गम्भीरता से इस बात पर जोर दिया कि देश की अर्थव्यवस्था पर पेट्रोलियम पदार्थों का काफी असर पड़ता है और पेट्रोलियम पदार्थ का अधिकांश मात्रा आयात की जाती है ! अन्य चीजें जो भारत में उत्पादित नहीं होती है उन्हे आयातित किया जाता है और जो चीजें निर्यात की जातीं है उसका मूल्य भी विदेशी बाजार ही तय करतें है अत: ये बिल्कुल ठीक है कि मँहगाई के निर्धारण में विदेशी बाजार के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता ! सरकार को अपने खर्चे और अन्य विकास कार्यों के लिए भी राशि आवश्यक होती है जिसे उसे टैक्स के जरिये हासिल करने के अलावा कोई बड़ा विकल्प नहीं है !
लेकिन कोई भी इस बात से असहमत नही होगा पर यदि इन विकास कार्यों पर खर्च की जाने वाली राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाय तो देश के टैक्स पेयर जनता का ये शोषण नहीं तो और क्या है और इस शोषण की जिम्मेदारी कौन लेगा ! NRHM , NRGA जैसी योजनाओं में होने वाले करोड़ों के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी किसकी है ! क्या टैक्स बढ़ाने की बजाय इन भ्रष्टाचारों पर अंकुश लगाकर देश का फिजूल व्यय कम नहीं किया जा सकता !
अर्थशास्त्र का नियम यदि ये कहता है कि व्यय की पूर्ति हेतु आय बढ़ाया जाना आवश्यक है तो क्या ये नियम अर्थशास्त्र से बाहर है कि आय ना बढ़ाकर फिजूल खर्ची और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने वाली राशि को रोककर व्यय कम किया जाय !


सीधा सा अर्थशास्त्र है! ये मुझ जैसे सामान्य अर्थशास्त्र की जानकारी रखने वाले बस्तरिया को समझ में तो आती है लेकिन हार्वर्ड शिक्षित सरदारों के पल्ले नहीं पड़ती ! क्या हार्वर्ड मे अर्थशास्त्र का ये दूसरा नियम नहीं पढ़ाया जाता ! सरकार का काम केवल योजना बना कर पैसे खर्च करना ही नहीं वरन उस पैसे से कितनी उत्पादकता हुई और कितना पैसे का उपयोग् हुआ ये भी सुनिश्चित करना है !

देश में मंहगाई कम करने का ये तरीका भी है जो इस अनपढ़ जंगली बस्तरिया नक्सली का सिध्दांत है ! हार्वड के अर्थशास्त्री तो अपने ज्ञान में फेल हो चुके हैं तो इस अर्थशास्त्री के सिद्धांत पर अमल करने में क्या जाता है ! पता नहीं मेरी शिक्षा और सिध्दांत गलत है या सही पर मेरा बजट तो इसी दूसरे सिध्दांत पर टिका हुआ है और आज 19 वर्षों से कभी घाटे का बजट पेश नहीं हुआ है !! जय हो !!

बुधवार, 21 मार्च 2012

बुध्दजीवियों की संगोष्ठी और कार्यशाला


सोशियल नेटवर्किंग साईटस पर अक्सर देखता हूँ बड़े नामचीन लोग अपना फेस दिखाता हुआ तस्वीर डालते हैं और बताते हैं कि एक बहुत ही गंभीर मसले पर एक कार्यशाला थी ! कई देशों के सुविख्यात लोग इसमें शरीक हुए और बहुत ही व्यापक और शोध परक तथ्यों का पाठन हुआ ! कुल मिलाकर संगोष्ठी अत्यंत सफल रही !

मुझे आज तक इन संगोष्ठियों का अर्थ और सफलता का मापदण्ड समझ नहीं आया क्योंकि समस्यायें तो जस कि तस बनी हुई हैं ! क्या संगोष्ठी के सफल होने का अर्थ ये है कि खाने पीने और ठहरने की उच्च स्तरीय व्यवस्था थी और बड़े पुरूस्कारों ,सम्मानों ने नवाजा गया !
आखिर इन संगोष्ठियों का वास्तविक धरातल पर क्या अर्थ है ! ये बात मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ ! बस्तर में नक्सलवाद पर कई उच्च स्तरीय संगोष्ठी पर लाखों रूपये खर्च कर आयोजन किया जाता रहा है और जाने माने विशेषज्ञ इन संगोष्ठीयों, कार्यशालाओं में अपने उच्चस्तरीय व्याख्यान देते रहें है लेकिन वास्तविक धरातल पर समस्या सुलझने के बजाय और विकराल रूप लेती जा रही है ! आखिर इन बुध्दजीवी कार्यशालाओं से समस्या उन्मूलन का क्या सम्बंध है और ये आयोजित ही क्यों होते हैं !

अभी कुछ दिनों पूर्व ही भारीभरकम स्थापना व्यय वाले योजना आयोग की रिपोर्ट आई थी जिसमें गरीब होने के मापदण्ड को कई विद्वानों और अर्थशास्त्रीयों ने अथक परिश्रम और करोड़ों रू खर्च कर पहले 32 रू निर्धारित किया था फिर कम पढ़े लिखे और जाहिलों के दबाव में पुन: वातानूकूलित कक्ष में बैठकर उन चिल्लाने वालों मे से कुछ को अमीर बनाने हेतु 28 रू किया ! धन्य है ऐसे बुध्दजीवी
, विचारक, और धन्य है इनकी संगोष्ठी और कार्यशाला !! इनकी ही सदैव जय हो !!  

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

जन्मदिन मुबारक हो दादू


बीस हजार की आबादी वाला नगरीय संस्कृति को आत्मसात करता एक अर्धविकसित एक कस्बा ..  पद्मनाभपुर ! महाराज भीखम सिंह कस्बे के मालगुजार हैं ! विरासत में पुरखों ने इतनी सम्पत्ति छोड़ रखी है कि सात पुश्तों तक कुछ काम करने की आवश्यकता ही नहीं ! अतीत की वैभव से आज भी दमकती शानदार हवेली ! हवेली के  सामने दस एकड़ में फैली फूलों की बगिया, सैकड़ों वफादार नौकरचाकर, दिन रात सेवा में इस कदर तत्पर है कि उनका वश चलता तो ईश्वर से महाराज की सारी तकलीफें अपने लिए माँग लेते, और हों भी क्यों न ?  इतना सबकुछ होने के बावजूद महाराज में तिल मात्र का भी अहंकार नहीं ! नौकर-चाकरों को परिवार के सदस्यों सा स्नेह, प्यार, दुलार दिया करते हैं ! उनके हर सुख-दुख में, रीति रिवाजों में छूआछूत, भेदभाव भूलकर स्वयं सम्मिलित होते हैं ! 

अभी पिछले दिनों ही महाराज ने कस्बे की तीन दलित निर्धन कन्याओं के विवाह का सारा खर्च उठाया था ! विवाह भी ऐसी शानदार और शाही कि आसपास के सारे छत्तीस गाँवो के लोगों ने देखा और मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की ! महाराज ने खुद बारातियों का स्वागत किया और पूरे समय ऐसे व्यस्त रहे जैसे उनके स्वयं की बिटिया की शादी हो ! सारा कस्बा उन्हे भगवान की तरह पूजता था ! वे लोगों के लिए थे भी दयानिधि ! सारा जीवन लोगों के दुखदर्द बाँटने और पीड़ा हरने में निस्वार्थ भाव से समर्पित था !

महाराज भीखम सिंह शरीर से भले ही पतले दुबले कृशकाय हों लेकिन चेहरे में ऐसी दबंगता और गंभीरता की लोग सम्मान के साथ साथ भय भी खाते थे ! किसी की हिम्मत नहीं थी कि उनके सामने नजरें उठाकर जबान चलायें ! अजीब शख्सियत थी उनकी इतने उदार होने के बावजूद भी कभी किसी से विनोद या हास परिहास नहीं करते थे ! शायद यही कारण है कि लोग उनसे खौफ भी खाते थे !

लेकिन इससे उलट गाँव के बच्चों का सबसे प्रिय पात्र अगर कोई था तो वो महाराज ही थे ! बच्चे उनकी धोती भी खींचकर भाग जाते थे लेकिन वो गुस्सा होने के प्रयास में असफल हो जाते और चेहरे पर दुर्लभ सी हँसी आने से नहीं रोक पाते ! बच्चों के सामने वे खुद को असहाय पाते थे ! सारी रौबदारी यूँ गायब हो जाती जैसे उषा की किरणों को पाकर फूल पर से ओस की बूँदे ! 

इतना वैभव होने के बावजूद भी महाराज की आँखों में हरदम एक अजीब उदासी छाई रहती है लेकिन कभी वे उसे जाहिर नहीं करते ! इसका कारण भी सभी को पता था ! उनकी बगिया में पूरी दुनिया के सारे किस्म के फूल होने के बावजूद उनके अपने जीवन बगिया के आँगन में कोई नन्हा फूल नहीं था ! विवाह के बाईस वर्ष बाद भी उनकी गोद सूनी थी ! इतने सम्मान, उपाधियों के बावजूद उन्हे पिता कह कर पुकारने वाला कोई नहीं था ! यही गम उन्हे अंदर ही अंदर दीमक की तरह खाये जाती थी !

धीरे धीरे उन्होने इसे नियती मानकर कस्बे के बच्चों में अपनी खुशी ढूँढने लगे थे ! शायद यही कारण था कि बच्चों के आगे उनकी सारी गंभीरता, सारी दबंगई गायब हो जातीं और वे खुद बच्चों से हार जाने में अपनी जीत समझते थे ! सारे बच्चे उन्हे बाबा कहकर पुकारते थे और यही वो शब्द था जिसके कारण उनकी साँसे चल रही थी वरना जीने का और कोई मकसद तो बचा नहीं था !  तमाम अच्छाईयों के बावजूद महाराज की सबसे बड़ी कमजोरी थी उनके बागीचे के फूल ! मजाल है कोई सपने में भी उनके बागीचे के फूलों को हाथ लगाकर देखे !

महाराज का सबसे विश्वस्त और वफादार नौकर है रामू काका, जिसने महाराज को बचपने में गोद में खिलाया है ! महाराज उसे बहुत सम्मान करते थे और रामू काका इस बुढ़ापे में भी अपना भरा पूरा परिवार छोड़कर महाराज की हवेली में ही रहता और महाराज की देखभाल करता ! रामू काका का एक नाती भी है हरिया ! हरिया रोज सुबह अपने घर से हवेली आ जाता और फिर यहीं खेलता फिर स्कूल जा कर पुन: स्कूल से हवेली आकर देर शाम तक रहता ! रात उसके पिता आकर उसे जबरदस्ती ले जाते ! जाता भी क्यूँ पूरी हवेली में वो ही अकेला शख्स था जिसे महाराज के किसी भी निजी सामान को भी छूने, तोड़ने, फेंकने की इजाजत थी ! पूरे समय धमाचौकड़ी मचाता ! मजाल है कोई महाराज के सामने उसे टोक दे !

पूरी दुनिया में हरिया ही वो एकमात्र शख्स है जो महाराज को दादू कहता था और महाराज उसे हरी कह पुकारते थे ! उसी ने महाराज के धोती खींचने की परम्परा भी प्रारंभ की थी ! उसका दैनिक नित्यकर्म था महाराज की धोती खींचना या पीछे से कान मरोड़ना ! महाराज उसे पकड़ने दौड़ायेंगे, वो भागकर बागीचे में जाकर घुस जायेगा और फिर फूल तोड़ने की धमकी देगा ! महाराज उससे फूल ना तोड़ने और बाहर निकलने की मनुहार करेंगे फिर इसके लिए सौदेबाजी होगी ! हरिया को कुछ पैसे मिलते फिर वो स्कूल जाता ! हरिया महाराज की इस फूल ना तोड़ने वाली कमजोरी से भली भाँति परिचित था इसलिए उसे जब-जब जेबखर्च चाहिए होता वो इसी तरह बागीचे में फूल तोड़ने की धमकी देकर महाराज को ब्लैकमेल करता था !

रविवार का दिन है ! आज एक अनहोनी हो गई ! पूरी हवेली में अजीब सी बैचैनी और खामोशी छाई हुई है ! यूँ लग रहा था जैसे कोई सूनामी आकर चली गई हो ! शाम को महाराज को अपने बगीचे में टहलते समय पौधों की डालियों से कुछ फूल गायब दिखे ! टहनियाँ साफ साफ चुगली कर रही थीं कि किसी ने वहाँ से फूलों को चुराया है ! खबर कस्बे में जंगल की आग की  तरह फैल गई !

आज हरिया भी धोती खींचकर अपनी वसूली करने नहीं आया था ! किसी ने आकर बताया हरिया ने ही बागीचे से फूल तोड़ा है ! महाराज क्रोध से ऐसे आग बबूले हो उठे थे जैसे जमीन फट कर आसमान को निगलने वाली हो ! “हरिया जहाँ भी हो फौरन पकड़ कर मेरे सामने लाओ” महाराज ने चीखते हुए आदेश दिया !

पहली बार महाराज ने हरिया को हरी ना कह हरिया कहा था ! रामू काका ने हरिया को महाराज के सामने पेश किया ! हरिया के दोनो हाथ पीछे की ओर छुपे हुए थे ! उसे अचानक सामने देख महाराज अपना आपा खो बैठे और बिना कुछ बोले उसके गालों पर तड़ातड़ कई थप्पड़ जड़ दिये ! हरिया के गालों में महाराज के उँगलियों के निशान यूँ उभर आये जैसे किसी जलजले के बाद मलबा दिखाई देता हो ! हाथों ने थक कर जब और प्रहार करने से इंकार कर दिया तो बदहवास से चीख कर बोले “बता तेरी इतनी हिम्मत कैसे हुई मेरे फूलों को छूने की”

सारा कस्बा हवेली में जमा था लेकिन सन्नाटा यूँ पसरा हुआ था जैसे कोई वीरान बियाबान हो ! हरिया ने सिसकते हुए अपने दोनो हाथ आगे कर उन्ही फूलों का गुलदस्ता महाराज की ओर बढ़ाया जिसे उसने तोड़ने का दुस्साहस किया था और काँपते होंठों से कहा ......   “ जन्मदिन मुबारक हो दादू ”  

इतना सुनते ही महाराज को लगा जैसे उन पर कोई बज्रपात हुआ हो ! जोर से चीख कर बस इतना ही कहा मुझे अकेला छोड़ दो ! अगले ही पल हरिया समेत पूरा कस्बा वहाँ से जा चुका था !

रात घिर आयी थी ! हवेली की बाहरी बत्तियाँ भी आज नहीं जली थी ! रामू काका भोजन के आमंत्रण हेतु महाराज के कमरे में दाखिल हुआ ! दरवाजा पहले से ही खुला हुआ पर महाराज अपने कक्ष में नहीं थे ! उन्हे ढूँढते हुए बागीचे की ओर निकल पड़ा ! पूर्णिमा की चाँदनी बागीचे में फैली तो हुई थी पर दूर से कुछ साफ साफ नजर नहीं आ रहा था !
रामू काका जब बागीचे के निकट पहुँचा तो अचानक उसके मुँह से चीख निकल आयी ! उसकी चीख सुनकर पूरी हवेली इकठ्ठी हो गई !

बाहर आँगन की बत्तियाँ जलाई गईं तो देखा सारा बागीचा तहस नहस पड़ा हुआ है ! सारे पौधे किसी ने उखाड़ फेंके थे ! बागीचे के बीचोंबीच बने फव्वारे पर महाराज अर्ध चेतन से गिरे हुये है ! पास जाकर देखा तो उनके हाथों में हरिया का वही गुलदस्ता, आँखों में अश्रु की अविरल धारा बह रही हैं और सांसे उखड़ती चली जा रही थी ! रामू काका ने उनका सिर अपनी गोद में उठाया और धीरे से पुकारा “महाराज” ! किसी तरह महाराज ने आँखे खोलीं और कहा “ हरी कहाँ है ” ! हरिया उनके पास ही खड़ा था, सामने आया तो महाराज ने उसे जोर से भींच कर छाती से लगाया और कहा “हो सके तो अपने इस बेरहम दादू को मॉफ कर देना मेरे लाल ” !  हरिया कहता भी क्या, इतनी छोटी सी उम्र में भी उसे अपने गालों पर पड़े निशानो की कीमत का पता चल गया था ! उसके आँख से सुबह की मार के आँसू अब बह रहे थे पर जो कीमत उसे इस मार के बदले मिली थी उसके लिए वो रोज ऐसी मार खाने के लिए मन ही मन ईश्वर से याचना कर रहा था !

अजीब नजारा था दोनों की आँखो से अविरल अश्रु बह रहे थे और दोनो ही एक दूसरे को ना रोने की समझाईश दे रहे थे ! और दोनो की ये स्थिति देखकर पूरी हवेली के लोग रो रहे थे ! पर सभी के आँखों में वही आँसू थे जो कमोबेश अत्यधिक खुशी के क्षणोँ में अनायास ही सबके ये वहीं आँखों से निकल आते हैं !

सभी ने समवेत स्वर में कहा " जन्मदिन की बधाई हो महाराज "  

शनिवार, 10 मार्च 2012

मिडिया इवेंट - राईट टू रिकाल


खबरिया चैनलों की बाढ़ और फिर उनका चौबीस घंटे प्रसारण ! आधे घण्टे के समाचार को कितना भी लम्बा  खींच लें 24 घण्टा तो हो नहीं सकता फिर उबाऊ और बोरियत भरी खबरों को सुनसुन कर दर्शकों का टोटा होगा ! TRP घटेगी तो विज्ञापन के लाले पड़ेंगे मतलब साफ है अर्थ व्यर्थ सब अनर्थ ! इसलिए खबरों का चटपटा और मसालेदार होना जरूरी है ! ऐसी ही मसालेदार खबरों के लिए कच्चा माल सप्लाई करने वाला यूपी चुनाव अब बीत चुका है !

मीडिया का दुर्भाग्य कि समाजवादी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलने के कारण विधायकों की “मण्डी लाईव” कार्यक्रम आयोजित नहीं हो पाया और एक बड़ा मिडिया इवेंट बनते बंमते रह गया ! किसी के साड़ी पहनने और बच्चों को चुनावी खबर बनाकर परोसने वाली जागृत मिडिया पर ये किसी कठोर वज्रपात से कम नहीं है ! कितनी तैयारी करवाई थी ! एजेंसियों से एक्जिट पोल कराया फिर हन्ग असेम्बली का ब्रह्म भविष्यवाणी किया !  सोचा तो यही था विधायक यहाँ वहाँ हगते फिरेंगे और वे नत्था के जैसे उन्हे पीपली लाइव कव्हर कर सनसनी फैलाकर TRP बटोरेंगे लेकिन हाय री अभागी किस्मत और धोखेबाज जनता , तूने स्पष्ट बहुमत देकर सुहागन मीडिया को भरी जवानी में ही विधवा ही कर दिया !

पाँच राज्यों के चुनावों विशेषकर उत्तरप्रदेश के बाद अचानक आये इस मिडिया सूनामी जलजले से कार्पोरेट मीडिया की TRP तबाह हो गई और अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है !  उसे इस मंदी से उबरनेके लिए बेल आऊट पैकेज में किसी बड़े इवेंट की जरूरत है और इस राष्ट्रहित के नेक कार्य में अन्ना हजारे से बड़ा प्रिमीयम प्रोडक्ट और कौन हो सकता है ? इसलिए अन्ना के आंदोलन से जनता को उत्सुकता ना हो लेकिन मिडिया इस चंदामामा की तरफ चकोर बन रेगिस्तान के प्यासे की तरह टकटकी लगाये देख रही है ! कई अनुष्ठान किये जा रहे होंगे कि अब इस नये तमाशे राईट टू रिकाल में भीड़ का टोटा ना पड़े और हाऊस फुल  शो बन हिट हो जाय तो फिर TRP संजीवनी से नया जीवनदान  मिल जाये ! 

इस नये खेला के लिए अभी मेगा प्रोजेक्ट तैयार हो रहा है, बस बच्चों की बोर्ड परीक्षायें खत्म हो जायें फिर देखिये नया खेला “तू चोर मैं सिपाही”
रोजाना 24 घंटे बार बार लगातार राईट टू रिजेक्ट बिल ! टाईम टेबल भी बन गया है और कालखण्ड का विभाजन पूर्व की तरह ही किया गया है ..  6 घण्टे अन्ना के लिए ( जिसमें नित्य क्रिया
, शौच आदि के कार्यक्रम सम्मिलित है ) , 3 घण्टा केजरी किरण स्पेशल,  3 घण्टा दिग्गी और मनीष का मिकी माऊस शो  2 घण्टे संजय झा, शाजिया इल्मी का डोनाल्ड डक एक्स्पर्ट कामेंट्स और 10 घण्टा मेरी साड़ी उसकी साड़ी से सफेद कैसे वाले विज्ञापन ! सब पहले से फिक्स है !


इन सब चक्करों से इतर इतना समझ लें जन आंदोलन किश्तों में और मिडिया में नहीं होता ! लेकिन बिना जाने बूझे और समझे इसे पढ़ते ही अन्नावादी फाईनेंसियल इरेग्यूलर लोग राशन पानी लेकर चढ़ जायेंगे ! लानत मलामत की बौछार होगी और चीख चीख कर कहेंगे  मिस्टर महापात्र तुम्हारी सोच गंदी है
, कलम का दुरूपयोग करते हो, अपनी हरकतों से बाज आओ, तुम भ्रष्टाचार समर्थक हो ! कुछ उच्च कोटी के गालियों का भी गुफ्तार करेंगे लेकिन हम ठहरे उँगलबाज, आदत है उँगली करते ही रहेंगे ! लेकिन बुध्दजीवियों से अपेक्षा है क्लोरोमिंट खायें दिमाग की बत्ती जलायें क्योंकि ये सिर्फ जुबान पर लगाम लगाता है उँगलियों पर नहीं :):):)

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

फुरसतनामा: विशेषाधिकार और अवमानना

फुरसतनामा: विशेषाधिकार और अवमानना:निवेदन - इस लेख हेतु मुझे कोई विशेषाधिकार हनन का नोटिस मिलता है तो अन्ना की टीम की तरह आर्थिक और कानूनी मदद देने को तैयार रहें ! इतना तो आपका नैतिक दायित्व बनता ही है !! JJJ !! 

विशेषाधिकार और अवमानना

यूँ तो अरविंद केजरीवाल ने जो सांसदो  के लिए बयान दिया उससे मैं निजी तौर पर सहमत नहीं हूँ परंतु यदि इस बयान को संसद की छत्र छाया में निवास करने वाले देश के रहनुमाओं और कुछ तथाकथित बुध्दजीवियों ने लोकतंत्र का अपमान और संसद की अवमानना बताया !

केंद्रीय केबिनेट में मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने स्तुतिगान क्षमता की चरमस्थिति को प्राप्त कर अपने कोयला मंत्रालय के नाम के अनुरूप एक सार्वजनिक चुनावी सभा में बयान दिया कि राहुल गाँधी जब चाहें तो रात के बारह बजे भी प्रधानमंत्री बन सकते हैं उन्हे कोई भी नहीं रोक सकता !


उनके इस बयान की समवेत स्वरों में उतनी तीखी आलोचना नहीं हुई जितनी केजरीवाल के बयान की हुई ! इस बयान के पीछे उनकी मूलभावना क्या है ये तो वही बता सकतें हैं लेकिन यदि केजरीवाल के बयान पर उनकी मूल भावनाओं को त्यागकर आलोचना हो रही है तो मेरी नजर में श्रीप्रकाश जायसवाल का ये बयान उससे भी बड़ा लोकतंत्र अपमान और संसद की अवमानना है !

मेरी अल्पबुध्दि के ज्ञान से भारतीय संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री लोकसभा के बहुमत दल का नेता होता है और उसे लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त होता है अर्थात यद्यपि तकनीकि रूप से प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है किंतु संविधान मूल भावना यह है कि लोकसभा के आधे से अधिक सदस्य अपने स्वविवेक और संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधी के तौर पर जिसे चुने वही प्रधानमंत्री होना चाहिए !

श्रीप्रकाश जायसवाल के अनुसार यदि राहुल गाँधी जब भी चाहें प्रधानमंत्री बन सकतें है तो इसका सामान्य अर्थ ये हुआ कि उनको ही व्यक्तिगत रूप से लोकसभा में बहुमत प्राप्त है, वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नहीं अर्थात जायसवाल जी की माने तो क्या मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बने रहने का कोई नैतिक अधिकार है ? क्या वे देश के क्षद्म प्रधानमंत्री नहीं हुए ? या फिर लोकसभा के बहुमत सदस्य राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं किंतु राहुल गाँधी ने लोकसभा के सांसदों के समर्थन को अपनी इच्छा से दिशा परिवर्तित कर स्वेच्छा से मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया हुआ है अर्थात मनमोहन सिंह लोकसभा के सदस्यों के समर्थन से नहीं किसी एक व्यक्ति विशेष की इच्छा पर प्रधानमंत्री बने हुए हैं !

क्या ये भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और संविधान का सीधा अपमान नहीं है ? क्या इसे संसद के अवमानना के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए ? और तो और किसी का रात के बारह बजे प्रधानमंत्री राष्ट्र पर संवैधानिक संकट या वर्तमान प्रधानमंत्री के साथ अचानक किसी अनहोनी घटना होने पर ही होता है ! इसका अर्थ भी ये लगाया जा सकता है कि बकौल जायसवाल राहुल गाँधी कभी भी संवैधानिक संकट पैदा करने की ताकत रखते हैं !

इससे ये कयास बिल्कुल भी ना लगायें कि राहुल गाँधी ऐसा करेंगे क्योंकि ये सारी संभावनायें जायसवाल के बयान पर निर्मित हो रहीं है राहुल गाँधी से इसका कोई सम्बंध नहीं !

श्री जायसवाल का बयान इन अर्थों में भी गंभीर है कि ये बयान प्रधानमंत्री के केबिनेट का ही एक मंत्री दे रहा है अर्थात उसे अपने ही केबिनेट मुखिया पर यकीन नहीं कि उसे सही मायनों में बहुमत प्राप्त है ! क्या इसे संसद का अपमान नहीं  कहा  जा सकता ? क्या यह संविधान की मूल भावना और एक संवैधानिक पद प्राप्त प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता पर हमला नहीं है ? क्या भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों से इतर सांसदो और मंत्रियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हेतु संविधान में पृथक से विशेष अधिकार प्राप्त है ?  

इस पर और भी कई गंभीर सवाल किये जा सकते हैं लेकिन मैं सांसद या मंत्री नहीं अत: शायद मुझे अवमानना की अपराधी ठहराया जा सकता है अतएव आप श्री जायसवाल के बयान के संदर्भ में इन बातों पर स्वयं चिंतन कर निर्णय लें कि क्या ये संसद और लोकतंत्र का स्पष्ट अवमानना और अपमान नहीं है ?

निवेदन -  इस लेख हेतु मुझे कोई विशेषाधिकार हनन का नोटिस मिलता है तो अन्ना की टीम की तरह आर्थिक और कानूनी मदद देने को तैयार रहें ! इतना तो आपका नैतिक दायित्व बनता ही है  !!  JJJ !!  


नोट – कृपया चंदा देने के इच्छुक मैसेज बाक्स का प्रयोग करें! आयकर वालों की पैनी निगाह बनी रहती है !!JJJ!!