मंगलवार, 26 जून 2012

फुरसतनामा: बापू मल त्याग केंद्र - एक मनुवादी सोच

फुरसतनामा: बापू मल त्याग केंद्र - एक मनुवादी सोच: बापू ने स्वच्छता के साथ स्वालम्बन का भी सपना देखा था इसलिए “ईटाईलेट”को देश की जनता पर थोपने के बजाय सभी लोगों को अपनी सुविधानुसार मल त्याग करने का अधिकार मिलना चाहिए और ये सुनिश्चित होना चाहिए कि किसी का भी मल देश पर बोझ ना बने और मल से बनने वाले खाद का लाभ सर्वजन हित में बराबर वितरित हो । इस देश में गरीबों का भी बराबर का हक है । देश के सभी संसाधनों पर उनका भी बराबर का अधिकार होना चाहिए इसलिए उन्हे अपने स्व निर्मित जैविक खाद के उपयोग करने का अधिकार मिलना ही चाहिए और इस हेतु वे किस प्रकार के मलत्याग केंद्र बनायें इसका भी उन्हे ही निर्णय करने का अधिकार होना चाहिए, तभी सही मायनो में बापू के सपने पूरे होंगे वरना शौचालय में लगे बापू के नाम की तख्ती से केवल सड़ांध ही आयेगी स्वराज नहीं ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. गम्भीर आलेख ||


    @ देश के सभी संसाधनों पर उनका भी बराबर का अधिकार होना चाहिए ||
    मनमोहन सिंह ने तो बताया था कि अल्पसंख्यको का पहला है ||

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    1. टिप्पणी के लिए धन्यवाद रविकर जी । मनमोहन ने वर्तमान परिदृश्य में बिल्कुल सही कहा था कि देश के संसाधनो पर पहला हक अल्पसंख्यकों का ही है पर मूर्ख जनता ये नहीं समझ पाई कि इस देश में पूँजीवादी सामंती लोग ही असली अल्पसंख्यक हैं और सारे संसाधनों पर उनका ही हक बना हुआ है ।

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