शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

ख्वाब में ...

कल रात एक मौजिज सा हुआ
एक अजीम नूर से रूबरू हुआ
पहली नजर में गरीब नवाज लगा
चिमटी काटी तो यकीन हुआ
उसने पूछा बता तेरी रजा क्या है
मैं कहा मुझसे पूछता क्या है
मैंने सजदों में तो ना कभी याद किया
फिर क्यूँ मुझपे ईलाही ये एहसान हुआ
आ ही गया है तो इतना करम कर दे
वो जो सजदे में पड़े हैं उन्हे दीदार बख्श दे
मेरी नादानी पर खुदा मुस्काया
जरा सा तल्ख हुआ फिर समझाया
उँची आवाज से सजदे में असर नहीं होता
मैं देर से सुनता हूँ , उँचा नहीं सुनता

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें