गुरुवार, 25 जुलाई 2013

थ्री ईडियट - अहमद, पिल्ले और हम

 सावन का महीना चल रहा है और कई दिनों बाद आसमान साफ था , सुबह सुबह सूरज के ड्यूटी पर आने की उम्मीद थी । बचपन में कक्षा आठ के हिन्दी द्वितीय के परीक्षा में अक्सर ये पूछा जाता कि बरसात के दिनों में मोहन दास गाँधी जी की माँ अक्सर भूखी क्यों रहती थीं और मास्टर जी के द्वारा इसे आईएमपी सवाल बता कर जवाब भी रटाया जाता था कि वे सूर्य देवता के दर्शन किये बिना अन्न ग्रहण नहीं करती थीं ।

उसी किताबी ज्ञान और स्मृति के आधार पर आज के मौसम के बारे में ये कहा जा सकता है कि गाँधीजी की माँ आज भरपेट  खाना खा सकेंगी, ऐसा माहौल बनने के पूरे आसार हैं । भरपेट इसलिए लिखा क्योंकि संसद के मानसून सत्र तक तो मन्नू मामा का फूड सिक्योरिटी बिल लागू रहेगा ही और छोटू मामा (मोंटेक सिंह ) ने गरीबी तय करने वाली नई गाईड लाईन भी जारी कर दी है । 

आज दैनिक परम्परा के विपरीत हम भी सुबह जल्दी उठ गये और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत परिभ्रमण के लिए निकल पड़े । लेकिन बाजू वाली गीता के सर पर हाथ रखकर यदि हमसे कहलवाया जाय तो सच्चाई ये है कि हम रात भर सो ही नहीं सके इसलिए जागने का प्रश्न ही नहीं उठता । खैर हमने सुन रखा था कि सुन्दर दिखने के लिए सुबह सुबह शहरी सभ्रांत महिलायें स्पोर्टी लुक में विचरण करती हैं, जिसे वे अपनी भाषा में जॉगिंग कहती हैं । उनके स्पोर्टी लुक के प्रात:कालीन दर्शन के प्रलोभन में आकर हम चिड़ियों के चहचहाते ही सुबह की सैर को निकल पड़े वरना आजकल के महानगरीय संस्कृति में कौन ऐसा कोल्हू का बैल, उल्लू का पठ्ठा है जो सुबह 6 बजे अपने नर्म और वातानूकूलित बिस्तर को ओके, टा-टा, बाय-बाय कहता है । 

जब पत्नी के दबाव में जूते खोलकर मंदिर के गर्भ गृह के सामने आ ही गये हैं तो प्रसाद न खाने के अपराधभाव से क्यों ग्रसित हों । इसी सिध्दांत के आधार पर हमने अपने जवानी के दिनों वाला ट्रैक सूट निकाला और उसके भीतर किसी तरह खुद को स्थापित कर निकल पड़े ग्यारह नम्बर की बस पर । अमूमन सभ्य लोगों की बौद्धिक भाषा में इसे मॉर्निंग वॉक कहते हैं । 

 ( वैधानिक सूचना - यहाँ पर हम एक तथ्य बिल्कुल स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि “जवानी के दिनों वाला”  से ये तात्पर्य बिल्कुल ना लगायें जवानी दिन गुजर चुके है बल्कि यथार्थ तो ये है कि वो दिन आज भी पास्ट परफेक्ट टेन्स न होकर प्रजेंट परफेक्ट कंटिनिवस टेन्स में है । ) 

जब गाँव में ठिकाना था, तो हमें रोज झझकोर कर दादी कहती थी- “सुबह जल्दी उठकर ताजी हवा लेने से दिल और दिमाग दोनो तन्दरूस्त रहता है, और घास पर पड़ी ओस की बूंदो पर नंगे पाँव चलने से आँखो की रोशनी तेज होती है।” 

खैर उनकी नसीहत पर तो कभी अमल किया नहीं लेकिन आज स्पोर्टी लुक की कानो-सुनी थ्योरी को आँखो देखी में परिवर्तित करने के लिए चुपके से घर के बाहर निकला । चुपके से निकलने का कारण सिर्फ यही था कि श्रीमती जी यदि हमें इस रूप में देख लेती तो वैसे ही कोहराम मचा कर आरोप लगाती जैसे दिग्विजय सिंह जी किसी भी दुर्घटना के पीछे भगवा साजिश का दावा करते हैं और हम अपनी सारी उर्जा लगाकर भी खुद को बेदाग साबित नहीं कर पाते क्योंकि हमारी पत्नी, राघवजी की अर्धांगिनी की तरह उदार एवं खुले विचारों वाली है ही नहीं ।


पत्नी द्वारा तय की गई एलओसी को बगैर सूचना के अनधिकृत रूप से लाँघ कर जैसे ही कालोनी के अहाते से बाहर आये, वैसे ही हमें इस बात का पूरा विश्वास हो गया कि यहाँ ना तो ताजी हवा है और ना हरी हरी घास जिसमें ओस की बूँदे पड़ी हों । जो मौजूद है, वो केवल सीमेंट कांक्रीट की सड़के और ताजी हवा के नाम से नालियों से निकलती बदबूदार गंध । जिसमें रही सही कसर उन भैंसों का झुण्ड पूरा कर रहा था, जिसका मालिक इलाके का वही दबंग नेता था, जिसके तबेले को पिछले पाँच सालों से नगर निगम का पूरा अमला इस रिहाईशी इलाके से बाहर निकालने में ठीक उसी तरह असफल रहा जैसे हमारी सरकार अवैध बांग्लादेश के घुसपैठियों को निकालने में रही । 

हमने सोचा जब एक बार कालोनी की सीमा लाँघ ही गये हैं तो सामने नुक्कड़ वाले चाय ठेले तक चले चलते है । अगर रम्भा, मेनका, उर्वशियों के स्पोर्टी लुक का दर्शन लाभ नहीं भी मिले ( हकीकत में जिसके कारण ही हम सैर को निकले थे ) तो कम से कम ठेले वाले रामखिलावन के यहाँ एक कटिंग चाय ही पी लेंगे । वैसे भी कई महीने हो गये कैटल क्लास के स्पेशल ठेले की चाय पीकर खुद को आम आदमी फील किये हुए । 

कालोनी के अन्दर से लेकर नुक्कड़ वाले चाय ठेले तक मॉर्निग वॉक की बड़ी गहमागहमी थी । स्वास्थ्य के प्रति जागरूक इन प्राणियों की प्रजाति को पहनावे ओढ़ावे और चाल ढाल से लिंग, क्षेत्र, जाति के आधार पर पृथक करना अत्यन्त  दुष्कर कार्य था ! महिलायें मनचाहे शारीरिक आकृति को आत्मसात करने में सक्षम पैण्ट-शर्ट में थी, जिसे पढ़े लिखे लोग जॉगिंग ट्रैकसूट कहते हैं , तो कई पुरूष रविशंकर, रामदेव और ओशो टाईप से चोंगानुमा नाईट गाऊन पहने हुए थे, इसलिए हमने इन्हे कार्य के आधार पर विभाजित करने का निर्णय लिया । 

त्वरित शोध से ये निष्कर्ष निकला कि मॉर्निग वॉक में अमूमन दो प्रकार के लोगों की बहुतायत है – 

पहले वे जो किसी भी मकान के अहाते से बाहर झाँक रहे पेड़-पौधे पर मुस्कुरा रहे फूल को मकान मालिक के जागने से पहले ही तोड़कर चोरी कर लेते हैं, जिसे बाद में नहा धोकर निर्मल तन और कलुषित मन से भगवान को रिश्वत पेशकर अपनी माँगे स्वीकृत करने हेतु दबाव बनाते हैं ।


दूसरे वे जो विदेशी नस्ल के कुत्ते को घुमाते हैं, ये अलग बात है कि उन्हे देखकर अबोध बालक भी बता देगा कि वे कुत्ते को घुमा रहे हैं या कुत्ता उनको । एक बार तो एक नवयौवना का उसके पामेलियन कुत्ते के प्रति प्यार और स्नेह देखकर अपने पुरूष रूप में मानव होने का अफसोस हुआ और एक तीव्र इच्छा जागृत हो गई कि काश मैं भी अंग्रेजी जात का पट्टाधारी कुत्ता होता । 

जैसे भी हो इन दिव्यात्माओं के दर्शन लाभ करते हुए कब नुक्कड़ वाले चाय ठेले तक पहुँच गया पता ही नहीं चला । हमारा सोशियल सर्किल ठीक वैसे ही है, जैसे धोबी के कुत्ते का होता है । उसे या तो उसके घर के लोग जानते हैं या घाट पर कपड़े धोने वाले । क्योंकि इस शहर में जब से ठिकाना जमाया है , “मुल्ले की दौड़ मस्जिद तक” वाली कहावत हम पर सौ फीसदी लागू होती है । 

चाय ठेले वाले राम खिलावन को हमने कहा – भैय्या, एक ब्लैक लेमन टी देना । ठेले वाले ने हमें इस अंदाज से देखा जैसे कोई नेता चुनाव जीतने के बाद मतदाता को देखता है । चाय की गंजी में खौलते पानी में पहले से इस्तेमाल की गई चायपत्ती को डालते हुए हमसे बोला – सर, इस इलाके में नये आये हो क्या ? 

हमने कहा – नही प्राण साहब, इस इलाके में तो पिछले एक साल से हूँ , हाँ तुम्हारी दुकान पर पहली बार आया हूँ । लेकिन तुमने ऐसा क्यूँ पूछा ?


रामखिलावन बोला – प्राण साहब के बड़े फैन लगते हैं आप सरजी, हमारा नाम रामखिलावन है , इधर ब्लैक लेमन टी नहीं चलता, उसे“लाल चाय नींबू मार के”  कहते हैं । बैठिये, आपने हमको प्राण साहब कहा इसलिए आपको साफ गंजी में बना कर दे रहें हैं, इस्पेशल ।  

मैं उसके ठेले के सामने लगी पटिया पर बैठ गया । वहाँ कुछ बुद्धजीवी टाईप का हुलिया बनाये, कुछ गली मोहल्ला छाप नेता लोगों के बीच एक गंभीर चर्चा चल रही थी । 

“ कुत्ता शब्द साम्प्रदायिक है या सेकुलर ”  

बहस गंभीर चल रही थी । रामखिलावन ने हमें इस्पेशल चाय थमाते हुए पूछा – सरजी , आप क्या कहते हो ? कम्युनल या सेकुलर ? 

हमने एक चुस्की लगाई और उससे कहा – देखो रामखिलावन, कुत्ता अगर गाड़ी के नीचे आया तो सेकुलर , किसी को काट खाया तो कम्यूनल और गाड़ी में बैठकर आया तो इंटेक्चुअल । 

और ई कौन टाईप का कुत्ता है सरजी ? रामखिलावन ने टोस्ट के लिए जीभ लपलपाते हुए एक देशी आवारा कुत्ते की ओर इशारा करते हुए पूछा । 

हमने कहा- पॉलिटिकल । 

तभी अचानक भीड़ में एक चेहरा जाते हुए दिखा , वो मेरा पुराना लंगोटिया यार था, जिससे कालेज के बाद कई सालों से मिला नहीं था । वही है या कोई और ? इस कश्मकश में वो थोड़ी दूर निकल गया । पर जब यकीन हो गया कि वही है, तो उसे रोकने के उद्देश्य से पीछे से मैने जोर से चिल्लाया........

     
 -  अबे पिल्ले !
वो पीछे पलट कर देखा और तेजी से मेरी ओर लपका.....  

और सीधे मेरा कालर पड़ा ....
अचानक तेजी से घटनाक्रम बदला , 


* पिल्ले कहने से चाय ठेले के आसपास कुछ लोगों की भावनायें आहत हो गई  ,

* भीड़ में कुछ लोग उसके द्रारा की जाने वाली किसी भी हरकत के अग्रिम मदद को तैयार दिखे ,

* लेकिन इस वाकये से एक अर्धअंगधारी बुद्धजीवी के सोने की चिड़िया उड़ गई और उसने तत्काल अपने मोबाईल से मेरे इस दुर्व्यवहार पर अपना फेसबुक स्टेटस अपडेट कर तहलका मचाने का प्रयास किया ।

* उस अपडेट पर कुछ सेकुलर लोगों ने इसकी "कड़ी"  निन्दा की ...

* कुछ समर्थकों ने मेरी लानत मलामत भी की .....

* कुछ कौमी समर्थकों ने मेरे वॉल पर आकर अपनी नैसर्गिक टिप्पणी की .....

* एक उत्साही कौमी समर्थक ने दो कदम आगे आकर मुझे मोदी का बच्चा कहा ....  

( शायद उसकी भावना मेरे लिए नेक हो और वो मुझे मोदी का बच्चा कह  उत्तराधिकार के रूप में  मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुझे गुजरात का मुख्यमंत्री बनना चाहता हो )


* एक और कौमी समर्थक को मेरा पाजामा ढीला नजर आने लगा .... 

( शायद अमेरिका के किसी एयरपोर्ट में उसे गहन सुरक्षा जाँच से गुजरने का अनुभव हो ) 

* बजरंगियों ने मुझे राष्ट्र का भविष्य बताया और मुझे देश की जरूरत बता कर मेरी भूली हुई शक्ति और वरदान की याद उसी तरह दिलाने की कोशिश की जैसे जामवंत ने लंका जाने से पहले हनुमान जी को दिलाई थी । 

( फिर अचानक वे गायब हो गये , शायद ये सोचकर फूलों की माला लेने गये होंगे कि यदि भीड़ से बच गया तो शौर्यजूलूस निकालेंगे और यदि मर खप गया तो लाश को फूलों से ढककर शहर में घूमायेंगे । दोनो ही स्थिति में दुकानो को लूटने का और राह चलती महिलाओं को छेड़ने की सुविधा की पूरी गारंटी थी । )  

* कुछ लोगों ने मुझे अपना नैतिक समर्थन इसलिए दिया क्योंकि जुम्मन चाचा का लड़का उनकी बहन को घूर कर देखता है ।  


* कुछ कंफ्यूजियाये टाईप के लोग जिन्हे इस वाकये के बारे में कुछ पता नहीं था, उन्होने SMS पर हमें समझाइश टीप लिखा – महाराज आपसे ऐसे बर्ताव की उम्मीद नहीं थी । आपको किसी को इस तरह सार्वजनिक रूप से कुत्ते का पिल्ला नहीं कहना चाहिए । 

* मैग्सेसे पुरूस्कार पाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा एक केजरीवाल टाईप के आदमी ने अर्धअंगधारी को तत्काल आदेशात्मक सलाह दी कि ऐसे पड़ोसी से तत्काल सम्बन्ध तोड़कर दोनो घर के बीच अम्बूजा सीमेंट की दीवार खड़ी कर देनी चाहिए ।  

अर्ध अंगधारी बुद्धजीवी को सलाह जँची ।  उसने हमे तत्काल अनफ्रेण्ड किया लेकिन अभी तक दीवार खड़ी नहीं की है क्योंकि हमें उनका हमाम अब भी नजर आ रहा है । 

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ओ तेरी ....  इन सब तेजी से हुए घटनाक्रम के कारण मैं अपने ट्रेक से ही उतर गया । चलिए मुद्दे पर आते हैं और मार्निग वॉक की स्टोरी कंटिन्यू करते हैं... 

तो मैं कहाँ था .. हाँ ...  मैने चिल्लाकर कहा ---  अबे पिल्ले ! 

वो पीछे पलट कर देखा और तेजी से मेरी ओर लपका.....  


और सीधे मेरा कालर पड़ा ....

उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी, पता करना मुश्किल था कि खुशी है या आश्चर्य ? 

उसने चहकते हुए कहा – अबे साल्ले बाभन, कहाँ है बे आजकल, और क्या कर रहा है यहाँ ?
मैने कहा – अबे पप्पू, मैं यहीं सेटल हो गया हूँ पिछले एक साल से । 
उसने कहा – चल घर चल । मेरी मिसेस बहुत खुश हो जायेगी तुझे देखकर, बार बार पूछती है कौन है ये तुम्हारा दोस्त बाभन , जिसकी हमेशा चर्चा करते रहते हो ?  
मैने कहा – नहीं यार आज मुझे जरूरी काम निपटाना है, शाम तक फ्री हो जाऊँगा फिर दो दिन तक फुरसत है । 
उसने कहा – अच्छा ! चल शाम को किसी बार में आराम से बैठकर महफिल जमाते हैं, वहीं इत्मीनान से बातें करेंगे । 
फिर उसने मेरा फोन छीनकर किसी को कॉल किया  -  अबे अहमद मियाँ

........  

अबे कौन नहीं , पप्पू पिल्ले बोल रिया हूँ बे कमीने । 
.......  
अबे हाँ बे, ये मेरा नम्बर नहीं है लेकिन जिसका नम्बर है, उसका नाम सुनेगा तो चौंक जायेगा बे ! 
...... 
अबे किसका नहीं, अपना लंगोटिया यार बाभन का फोन है बे । हमारे शहर में घूम रिया था मियाँ । हमसे टकरा गया बे .. पकड़ लिया हूँ साले को ! शाम को चाँदनी बार आ जईयो बे । और हाँ रजिया भौजी को बता के अईयो के बाभन आया है .. महफिल रात भर चलेगी । 

मेरा फोन वापस करते हुए पप्पू बोला – चल बे बाभन तेरा दो दिन का प्रोग्राम बुक हो गया है । आज होटल में फुल नाईट बकलोल पार्टी, कल दोपहर का खाना मेरे घर पर क्योंकि अहमद मियाँ कह रहा है – रजिया भौजी ने हुक्म जारी किया है कि जब भी पप्पू भैय्या और आप मिलते हो , हमेशा बाभन की ही बातें करते हो, अब आये हैं तो हमें भी मिलना है , रात की दावत तो हमारे घर पर ही होगी । 

हम और पप्पू पिल्ले चाँदनी बार पहुँचते इससे पहले ही अहमद मियाँ वहाँ पीठ किये हुए खड़े मिले । जैसे ही हम गाड़ी से उतरे उन्होने कमर से शरीर को समकोण बनाकर कहा – अबे कमीने बाभन, तुस्सी राघव जी हो बे,  तोहफा कबूल करो । 

हमने आदतन पप्पू को धकेलते हुए कहा – अबे पिल्ले ...  तुझे कह रिया है बे ।  

लेकिन इस बार किसी की भावना आहत नहीं हुई ..  ना तो पिल्ले की और ना अहमद मियाँ की ।

तीनो खुले आसमान के नीचे चाँदनी में नहाते हुए जाम टकराया और एक सुर में तरन्नुम में गाया ...  

“ खुदा का शुक्र है वरना गुजरती कैसे ये शाम 
  शराब जिसने बनाई , उसे हमारा सलाम ॥ ”