गुरुवार, 28 नवंबर 2013

रूपा की थण्डर बीयर


अपना कोई परमानेंट ठिकाना तो रहता नहीं । कल रात पुराना मित्र जिग्नेश भाई हमें फोन कर पूछा - जय श्री कृष्णा महापात्र भाई , केम छो ? 

हमने कहा - मज्जा मा ।  तमे केम छो जिग्नेश भाई ?   

गिग्नेश बोला - हुँ सवारे रायपुर आऊँ छुँ । तमे क्याँ रहो छो ? 

मैने सोचा , साला ई गुज्जु भाई इतना दिन बाद आ रहा है और मैं शहर से बाहर हूँ । सोचा चेला भोला शंकर को फोन लगा कर इसकी व्यवस्था बनवाता हूँ । मैनें जिग्नेश से कहा - जिग्नेश भाई मैं तो शहर के बाहर हूँ ,  पर मेरा बन्दा आपको रिसीव करेगा और रूकने खाने की व्यवस्था कर देगा मैं कल रात तक पहुँचता हूँ , फिर मिलते हैं । 

ओके जय जिनेन्द्र - जिग्नेश ने कहा 

मैने भोला को फोन लगाया । भोला ने फोन उठा कर कहा -  अरे क्या बात है महाराज,  आज कुँआ खुद प्यासे के पास । मुझे तो ठीक वैसा ही फील हो रहा है जैसे राहुल भैय्या किसी गरीब आदिवासी के घर में डिनर के लिए आये हों ।  

हमने कहा -  सुन बे केजरीवाल के आंतरिक लोकपाल,  ज्यादे फुदक मत । मेरा दोस्त सुबह आ रहा है । उसे एयरपोर्ट से पिकअप कर लेना और उसके खाने पीने की पूरी व्यवस्था अच्छी तरह से करना । शिकायत का कोई मौका नहीं मिलना चाहिए । मैं कल रात या फिर परसों सुबह आऊँगा । तब तक उसकी खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए । समझा ? 

 भोला बोला - महाराज आप चिंता ना करें । हमारे गऊमित्र के पीने खाने में कोई कमी नहीं रहेगी , ये भोला शंकर का वचन है ।

हमने कहा - अबे उसे गौमूत्र पिलायेगा क्या ? 

भोला बोला - अरे नहीं महाराज , आप भी ना कभी कभी शुद्ध हिन्दी व्याकरण समझ नहीं पाते हो । गौमूत्र नहीं , गऊमित्र , माने गुरू का मित्र .......  ग + ऊ + रू + मि + त्र = गऊमित्र  । इसमें "रू" साईलेंट है क्योंकि गुरू के मित्र की व्यवस्था के लिए रूपये पैसे की चिंता नहीं होनी चाहिए , ये अधर्म है । 

हमने कहा – वाह रे वर्ण संकराचार्य । तुझ पर तो पतंजलि का पूरा व्याकरण महाभाष्य न्यौछावर करना चाहिए, पर देख हमारे मित्र को कोई तकलीफ ना हो । 

भोला बोला – डोण्ट वरी महाराज , योर फ्रेण्ड इस ऑन माय कस्टडी । गिविंग मी रिस्पांसिबिलिटी यू डन हाफ वर्क  बिकॉस वेल बिगन इस हॉफ डन  । 

हमने कहा – चल भाई भगवान करे ऐसा ही हो , मेरे पास और कोई ऑप्शन भी नहीं है । 

अभी सुबह सुबह मैने जिग्नेश भाई को फोन लगा कर खैरियत पूछी तो बोला - भाई , मजा मा छे पर तमारी  चेला भोलाशंकर भाई खूब ज खतरनाक छे । 

हमने कहा – क्या हुआ जिग्नेश भाई , उसने आपसे कोई बदतमीजी की क्या ? 

जिग्नेश बोला – ऐ क्या बोलते हो तमें महापात्र भाई ? आपका चेला तो बड़ा ही मस्त आदमी है पर .. ( फिर उसने अपनी परेशानी बताई ) 


मैने भोला को फोन लगाया लेकिन मैं उसे कुछ कहता उससे पहले ही भोला का वन वे ट्रैफिक चालू हो गया –
अरे हम अभी नहाकर आपको फोन लगाने ही वाले थे , आप जल्दी मरोगे नहीं महाराज ।
पर महाराज आपका दोस्त तो बहुते बड़ा वाला पियक्कड़ है भाई । साला सुबह से ही चालू हो जाता है । सुबह सुबह एयरपोर्ट से आते समय ही बोला – ऐ भोलाभाई , तमेको एक बात बोलूँ त बुरा तो नई मानोगे न ?  
तो मैने कहा – अरे आप गऊमूत्र हो आपकी बात का क्या बुरा मानना ? 
तो उसने कहा – में हे ना अपना ठण्डर बीयर लाना भूल गया हूँ । तमे दो पीस ला दोगे क्या ? 
तो मैने कहा – अभी तो दूकान खुला नहीं होगा ? एकदम जरूरी है क्या ? 
तो उसने कहा – हाँ भाई जरूरी ही है । क्या है ना के मेरे को नहाने के बाद बड़ी दिक्कत हो जायेगी । 
मैने उन्हे होटल में पहुँचाया और बस आपका इज्जत रखने के लिए बड़ी मुश्किल से ठेका के पिछले दरवाजे से जुगाड़ बनाकर चार बोतल थण्डर बीयर लिया । उसे होटलब्वाय को उनके कमरे में पहुँचाने के लिए देकर बस अभी घर पहुँचा हूँ नहाने के लिए । अच्छा महाराज , आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे ? दोपहर में उनके पीने के लिए क्या ले जाना है ? बता दीजीए नहाने के बाद पहुँचा आऊँगा , तब तक अपनी पर्ची वाली दुकान भी खुल जायेगी ।  

हमने कहा – अबे लालबुझक्कड़ की भटकती आत्मा ...  वो गुज्जू आदमी है , शुद्ध वैष्णव समझा । उसने तुझे अण्डरवीयर के लिए बोला और तू उसे थण्डर बीयर दे आया । उसका अभी फोन आया था, नहाने के बाद गीला टावेल पहन कर ठिठुर रहा है , जल्दी जा और दो रूपा की चड्डी पहुँचा कर आ ।  और सुन बे रूपा की मतलब रूपा कम्पनी की देना वरना तेरा कोई भरोसा नहीं पड़ोसन की छत से उतार कर दे आये । 


शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

सरकार तो बननी तय है


चेला भोला शंकर भी आजकल राजनैतिक पण्डिताई की दुकान जमाने में लगा है । कल सुबह सुबह ही उसने मुझसे निवेदन किया - महाराज , आपके मातापिता को नमन है जिन्हे आपके जन्म पर ही पता चल गया कि आप दूरदृष्टा होंगे इसलिए आपका नाम संजय रख दिया । आप जैसा अंतर्यामी इस ब्रह्माण्ड में कोई नहीं । एक बार अगर शोभन सरकार के सपने के बारे में पुरातत्व वाले आपसे सलाह लिये होते तो आज साठ लाख रूपये की ऐसी मिट्टी ना खोदे होते जो ईंटा भट्टा के काम भी नहीं आ पा रहा है । 

हमने कहा - रे, ब्रह्मभट्ट कुल के नन्दन । हमारे खुरदरे चरित्र पर चिकनाई लगाना छोड़  ।  मेरे मातापिता भी हर  बालक के मातापिता जैसे ही सामान्य थे , जो समयकाल के लोकप्रिय व्यक्ति के नाम पर बच्चों का नाम रखते हैं । घरवाले बताते हैं कि पिताजी ने जब हमें पहली बार गोद में लिया था तब हमने उनके उपर तेज धारा में ऐसा मूत्र प्रक्षालन माने सू-सू कर दिया जैसे उनकी जटा से कोई नदी उद्गम हो रही हो इसी चरित्र के कारण उन्होने संजय गाँधी के नाम पर हमारा नामकरण कर दिया । हालांकि घर वालों की बात पर मैं अब भी विश्वास नहीं करता हूँ ।

 विश्वास से याद आया .... बता बे कुमार विश्वास के चारित्रिक सहोदर  इस चापलूसी के पीछे तेरा क्या स्वार्थ निहित है ? 


भोला सकपकाया और संकोच करता हुआ बोला - महाराज , हमारी दोनों पार्टी के लाईजिनिंग नेतानुमा व्यापारियों से सेटिंग हुई है । उन्होने कहा है कि एक बार उन्हे गोपनीय ढंग से बता दें कि कंफर्म किसकी सरकार बन रही है तो अपना दक्षिणा पेंशन सेट कर देंगे ।

हमने कहा - ठीक है , दोनों को एक एक कर भीतर खोपचे में लाओ । 

चेला भोला दौड़कर बाहर गया और एक खद्दर धारी व्यक्ति को लेकर आया । उस आदमी के लाल दमकते चेहरे को देखने से ही लगता था कि वो माँ के दूध के बाद केवल जूस का ही सेवन कर रहा है । उसने  हमें देखकर अपना पंजा हिलाया । 

भोला शंकर ने उसे तुरंत टोका - अबे, कुटिल मुनि ! महाराज ये हैं , तू इन्हे आशीर्वाद देने आया है या लेने । चरण स्पर्श कर और महाराज को अपना पंजा हिलाने दे ।   

कुटिल मुनि ने कहा - क्षमा करें महाराज , हमारा धर्म एक ही ईश्वर की पूजा करने की इजाजत देता है और राजमाता के सिवा किसी के आगे अपना सर नहीं झुकाते । 

हमने कहा - वाह रे मेरे कोहेतूर , जब राजमाता के चरणवन्दन में कोई तकलीफ नहीं तो फिर वन्देमातरम कहने में क्या दिक्कत है ? 

भोला शंकर अपनी दक्षिणा पेंशन का मामला बिगड़ता देख बीच में बोल पड़ा - जाने दें महाराज , नादान है । आप तो इन्हे बताये की सरकार बनेगी की नहीं ? 

हमने कहा- खैर चाहे कुछ भी हो जाये पर मैं दावे के साथ कहता हूँ कि सरकार बनना तय है ।  

इतना सुन कुटिल मुनि की बाँछे खिल गई और अपना चरित्र बदलकर साष्टाँग प्रणाम किया और जोर से बोला - वन्देचीनीउँगलीमहाराज । 

कुछ समय बाद भोला दूसरे क्लाईंट को लेकर आया । माथे पर कुमकुम चन्दन से बना त्रिशुल , काँधे में गेरूआ दुपट्टा । देखने से ही लगता था कि नया नया दीक्षा लिया है और किसी बड़े सप्लाई आर्डर की फिराक में है । 

सामने आते ही उसने अपनी तीन उँगली निकाली और बोला - महाराज नमो नमो । 

भोला शंकर भड़क गया ,  बोला - अबे नवीन दीक्षित, तू यहाँ कोई रैली में नहीं आया है । चुनाव खतम हो गये हैं, अपनी तीनों उँगली अन्दर रख ।  अगर महाराज ने अपनी चीनी उँगली कर दी तो फिर ना उठ पायेगा ना बैठ पायेगा । तमीज से प्रणाम कर  । 

दीक्षित सकपकाया और सर झुकाते हुए बोला - प्रणाम , भाई साहब । 

भोला ने भुनभुनाते हुए मेरे कान में कहा - महाराज , इनकी यही दिक्कत है , अपने दादा के उम्र के लोगों को भी भाईसाहब कहते हैं । 

हमने कहा - क्या मतलब है तेरा , हम क्या इतने उम्रदराज है ? 

भोला ने कहा - नहीं महाराज , हम तो यूँ ही बता रहें है - जस्ट फॉर यूवर काईण्ड इंफोर्मेशन । 

अच्छा , फेर ठीक है । और हमने उसके तंत्र मंत्र पर नैसर्गिक विश्वास के चरित्र को भाँप कर कुछ बुदबुदाया और अपनी चीनी उँगली को इधर उधर हिलाते हुए कुछ गणना करने जैसा अभिनय कर कहा -  अखबार , सर्वे चाहे कुछ भी कहें , सरकार तो बननी तय है  । 

दीक्षित का चेहरा कमल जैसा खिल उठा और हाथ जोड़कर बोला - महाराज के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम । 

फिर जोर से एक नारा लगाया " कहो दिल से ... चीनी उँगली महाराज फिर से ।"   


भोला दोनो को किसी तरह विदा कर पुन: वापस आया और बोला - महाराज आप तो कभी झूठ बोलते नहीं फिर आज क्यूँ ? 

हमने कहा - अबे हमने न कभी झूठ बोला है और ना बोलेंगे । 

भोला चिढ़ते हुए बोला - तो ई बताओ इन दोनो पार्टी का सरकार कैसे बनेगा ?  क्या दूनो पार्टी मिलकर सरकार बनायेंगे ? 

हमने कहा - बेटा भोला शंकर ना तो राजमाता कभी ठीक से हिन्दी बोल पायेंगी और ना नमो टोपी पहनेगा इसलिए गठजोड़ का तो कोई चांस ही नहीं है ।

तो फिर दोनो की सरकार कैसे बन सकती है ? बेवकूफ बनाने की भी हद होती है ? - भोला अब लगभग करूणा बुआ के तेवर में आने लगा था । 


हमने उसके तेवर को भाँप अटल स्वर में कहा - देख बे , हमने दोनो को कहा है कि सरकार का बनना तय है लेकिन ये अभी तक नहीं कहा "किसकी बनेगी"  

चल जा और नहाकर आ , मुझे कुछ जलने की बदबू आ रही है । 

रविवार, 3 नवंबर 2013

नरकरूप चौदस कथा

चेला भोला शंकर आज शाम को पिटकर आया ।
हमने पूछा अबे क्या हुआ बे ? ये तेरा चेहरा आज इतना साम्यवादी क्यूँ लग रहा है ?

भोला बोला क्या बताऊँ महाराज , कल आपने कहा था ना के नरक चौदस में जाकर पटाखा ले आना ।

हा त साले तुम क्या सीधे नरक चले गये थे या पटाखे की दुकान पर आग लग गई ?

नहीं महाराज, हम बाजार गये , देखा त डबल चेचीस टाईप की महरारू भी पटाखा लग रहीं थी । साले ये कमबख्त मेरे दो अनमोल आँख मुझसे बगावत कर दिये और बिल्कुल आशाराम के चरित्तर के जैसे किसी ना किसी महरारू की ओर अपनी दिशा कर रहे थे । हमारी गलती इतनी हुई के जब हम दुकानदार से ये पूछ रहे थे के ये अनार कितने की है ? ये फुलझड़ी कितने की है ? उस वक्त भी ये बगावत जारी रहा । साले कुछ मुस्टण्डे टाईप के समाजसेवियों ने मेरे आँखों के जेहनी बगावत का सारा पुण्यप्रताप मेरे पूरे चेहरे में उड़ेल दिया । मैंने पूछा हरी ॐ बोलना पड़ेगा तो सालों ने मेरे तशरीफ को भी इज्जत बख्श दी ।

अच्छा त साले ये बात है ?

लेकिन महाराज इ बताओ के दीपावली तो कल है । इ महरारू लोग आज काहे इतना डेंटिंग पेंटिंग करवाया है?

अबे आज रूप चौदस है ।

लेकिन आज त नरक चौदस है ।

अबे नरक चौदस त हमारे लिए है । मेहरारू लोगन के लिए आज रूप चौदस है ।

महाराज बात कुछ समझ नहीं आई । दीपावली का बख्शीस के रूप में आज यही ज्ञान समझा दो

त सुन बे ....  नरकरूप चौदस कथा

   एक समय की बात है, शांति लाल नामक एक पत्नीपीड़ित पति था। वह बहुत ही निरीह और दुखी पुरूष था। सदैव
 पत्नी के सेवा कार्यों में लगा रहता था। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उसे लेने के लिए आये। वे दूत शांति लाल को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। 

यमदूतों को देख कर शांति लाल आश्चर्य चकित हो गया और उसने पूछा- "मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है । 

शांति लाल की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- " अबे शांति लाल एक बार तुम्हारे द्वार से चीनी उँगली महाराज ( याने के हम ) बिना दारू पिये प्यासा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।

शांति लाल ने यमदूतों से उलाहना देते हुए कहा कि मैं पृथ्वी पर ही अपनी पत्नी से पीड़ित होकर नारकीय जीवन जी रहा हूँ मुझे नरक ले जाकर क्या फायदा? ले जाना है तो मेरी पत्नी को ले जाओ। वो अनअथराईज्ड रूप से स्वर्ग का आनन्द ले रही है। शांति लाल का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और हॉटलाईन पर यमराज से डेथ वारंट में नाम परिवर्तन हेतु अनुशंसा कर अनुमति माँगने लगे।

यमराज ने मामले की गंभीरता को देखते हुए चित्रगुप्त को आदेश दिया – चित्रगुप्त, तत्काल शांतिलाल के डेथवारंट वाली नोट शीट में उसकी पत्नी का प्रपोजल डालकर लाओ और बैकडेट में मुझसे एप्रुवल साईन करवाकर पृथ्वीलोक में फैक्स करो।

चित्रगुप्त भी मंत्रालय का वरिष्ठ एवं अनुभवी लेखाधिकारी था । उसने नोट शीट में लिखा – 

गत पृष्ठ के आगे.....
यमराज महोदय के मौखिक निर्देशानुसार शांतिलाल के स्थान पर उसकी पत्नी के आत्माहरण के प्रस्ताव प्रशासकीय स्वीकृति हेतु प्रस्तुत है, किन्तु महोदय के ध्यान में इस तथ्य को लाना आवश्यक है कि शांतिलाल की पत्नी ही नहीं, वरन उस जैसी सारी पत्नियाँ पृथ्वीलोक में अपने अपने पतियों के जीवन में नरकमय वातावरण बनाये रखने में पूरे मनोयोग से कार्यरत है। ऐसी सारी भद्र महिलायें यमलोक के नर्क विभाग के कर्मचारियों से भी अधिक कार्य-कुशलता से बिना वेतन कार्य कर रहीं हैं। वास्तव में इन्हे पृथ्वीलोक में नर्क विभाग से प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत कर्मचारी का दर्जा दिया जाना चाहिए। यदि ऐसी स्त्रियों का आत्माहरण कर यमलोक लाया जायेगा तो यमलोक की आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था बिगड़ने के साथ साथ पृथ्वीलोक में यमलोक के यातनाओं के प्रचार-प्रसार पर अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, साथ ही शांतिलाल जैसों के पत्नी पीड़ा से मुक्त हो जाने पर उन्हे पृथ्वीलोक में नारकीय जीवन नहीं मिलने के कारण उन्हे भी नर्क में शिफ्ट करना पड़ेगा जिससे नर्क लोक में एकोमेंडेशन की समस्या विकराल रूप लेकर भगदड़ की स्थिति निर्मित करेगी।  

इसलिए पृथ्वीलोक पर ही कुछ ऐसी व्यवस्था बनाई जाय कि ऐसी सभी स्त्रियों को नर्क विभाग की प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत कर्मचारी घोषित कर उन्हे बिना वेतन कार्य करने के बदले मानदेय स्वरूप उनके पति के खर्चे से स्वर्गिक आनन्द प्रदान हो सके और वे बिना किसी रूकावट के अपने पतियों को नर्कविधान अनुसार कष्ट प्रदान करती रहें ।

इस व्यवस्था की वार्षिक समीक्षा के लिए एक निश्चित तिथि भी निर्धारित किये जाने हेतु प्रस्तावित है जिसमें शांतिलाल जैसे पुरूष यमराज के नाम से भयाक्रांत होकर आप श्रीमान की पूजा अर्चना करें और उनकी पत्नियाँ के प्रतिनियुक्ति पर एक वर्ष पूर्ण होने पर वार्षिक आनंदोत्सव का आयोजन किया जाय । 

यदि महोदय सहमत हों तो महोदय के अवलोकनार्थ एवं अनुमोदनार्थ प्रस्तुत ....  सी.गुप्त , वरिष्ठ सचिव , लेखा विभाग

यमराज ने इस अद्भुत टीप से प्रभावित होकर अपना इरादा बदला और लिखा ... 

अनुमोदित , यथा प्रस्तावित ।
शांतिलाल के आत्माहरण आदेश निरस्त किया जाय और वार्षिक समीक्षा के लिए कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी की तिथि निर्धारित की जाती है ।

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इस तरह प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी की तिथि को शांतिलाल के प्राण बचने के कारण पुरूषों द्वारा इस दिवस को “नरक चौदस” एवं अपने पति को प्रताड़ित किये जाने के कर्तव्य को वैधानिक दर्जा दिये जाने पर स्त्रियों द्वारा आनंदोत्सव के रूप में इसे “रूप चौदस” के रूप में मनाया जाने लगा।