शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

सावधानी हटी , दुर्घटना घटी

भारतीय फिल्मे कभी कोई जागृति पैदा नही करती । वो केवल कमाई करती है । आपको यदि ऐसा लगता है कि इससे सामाजिक चेतना जागृत होती है तो ये ठीक वैसा ही भ्रम है जैसे किसी पुरूष को वेश्यागमन के समय ऐसा लगे कि स्त्री उसके प्रेम मे आकण्ठ डूबी हुई है । ये क्षणिक उन्माद है और इसका मूल आधार है - अर्थोपार्जन ।


करोड़ों भारतीयों के लख़्तेजिगर, तथाकथित यूथ आइकॉन अर्थात शाहरूख, सलमान और आमिर खान द्वारा अभिनीत मल्टीप्लेक्सों मे करोडो की कमाई करने वाले फिल्मो के सुदर्शन चक्रो को सडक किनारे हस्त चलित दुकान अर्थात हाथ ठेले पर इन यूथ आईकानो के असली औकात के हिसाब से बीस बीस रूपये मे बेचता एक नवयुवक अपने परिवार के उदर तृष्णा को शांत करने के उपक्रम मे निरंतर लगा हुआ है । 

(अंग्रेजी माध्यम मे जीवन यापन करने वाले सज्जन सुदर्शन चक्र के नाम से भ्रमित ना हो, हिन्दी मे DVD  को शायद सुदर्शन चक्र ही कहा जायेगा।)

 
कानून के हिसाब से पाईरेसी का ये अवैध धंधा उसके रक्षको की विश्राम स्थली अर्थात सिटी कोतवाली के सामने ही निर्बाध रूप से चल रहा है । कोतवाल साहब भी अपने महकमे के मूल मंत्र “विथ यू, फॉर यू, आल्वेस फॉर यू”  के नैतिक बन्धन मे बँधे होने के कारण ठेले वाले नवयुवक “इस्माईल बजरंगी” को अपना दिव्य सूक्ष्म संरक्षण प्रदान कर रखा है जिससे वह संवैधानिक कष्टो के मानसिक संताप से मुक्त हो कानून के आर्थिक उन्नति में अपना योगदान दे सके ।

यद्यपि भगवान सदैव भावना के ही भूखे होते है, लेकिन फिर भी भक्त अपनी सकुशलता और तरक्की के लिए हफ्ते मे एक दिन भगवान के सरकारी निवास मे मत्था टेककर अपनी पूरी श्रद्धा से भोग प्रसाद अर्पित कर कृतज्ञता प्रकट करता है । अपनी इसी प्राचीन दिव्य संस्कृति को अक्षुण रखने की नीयत से कोतवाल साहब ने भी इस महान धार्मिक परम्परा को सामाजिक परम्परा मे रूपांतरण कर अपने कार्यक्षेत्र मे लागू किया है ।

इस्माईल बजरंगी भी कोतवाल साहब के इस सामाजिक परम्परा मे पूर्ण आस्था रख सप्ताह मे एक दिन जाकर कानून के रक्षको को संवैधानिक कष्टो के मानसिक संताप से मुक्त रखने के लिए निर्धारित भोग लगाकर अपनी कृतज्ञता प्रकट करता है । हालाँकि कुछ असंतुष्ट और विध्नसंतोषी नास्तिक बुद्धजीवियो द्वारा इस पुनीत कर्म को “हफ्ता वसूली” जैसे घृणित शब्दो से कलंकित करने का कुत्सित प्रयास निरंतर किया जाता रहा है।

कोतवाली से थोड़ी ही दूरी पर सड़क के दूसरी तरफ बनारसी पान मन्दिर पर हमारी नियमित उपस्थिति बिल्कुल उसी प्रकार होती जैसे किसी मौलवी साहब की मस्जिद में । दुकान के सामने खड़े भर हो जाने से अधर श्रृंगार की सामग्री तैयार हो जाती । कुछ देर वहीं बौध्दिक जुगाली करने के पश्चात हम अपने जीविका उपार्जन के श्रम हेतु निर्धारित केन्द्र की ओर प्रस्थान करते। इसी पान मन्दिर से जरा बाजू हटकर सड़क किनारे इस्माईल बजरंगी सुदर्शन चक्र का ठेला लगाता था ।

आप ठेले वाले नवयुवक का नाम इस्माईल बजरंगी होने से जरा चकित होंगे। लाजमी भी है, ये उसका असली नाम नहीं है । उसका असली नाम तो शायद किसी को पता नहीं पर हर रोज सुबह अखाड़े में जाने वाला यह हनुमान भक्त विषम परिस्थितियों में भी सदैव मुस्कुराता रहता इसलिए लोग इसे इस्माईल बजरंगी कहते हैं।

25 फरवरी को हमारा निजी शहीद दिवस होता है। कर्सिव राईटिंग में पढ़ने लिखने वाले लोग इसे मैरिज एनवर्सरी जैसा कुछ कहते है। 12 वर्ष पहले हम इसी दिन कुछ लोगों के बहकावे में आकर खुद ही जानते बूझते अपनी आजादी से हाथ धो बैठे थे। चूँकि हम ऐसे क्षेत्र बस्तर के निवासी हैं जो नक्सलवाद की छत्रछाया में फल फूल रहा है और वहाँ शहीदी सप्ताह मनाने का रिवाज है । अत: परम्परानुसार हम भी अपने शहीदी सप्ताह में अपने बासी खून में उबाल लाने के उद्देश्य से “ये देश है वीर जवानों का” , “दिल दिया है जाँ भी देंगे” टाईप के देशभक्ति गीतों वाले सुदर्शन चक्र हेतु इस्माईल बजरंगी की सेवा लेने का निश्चय किया।

इसी प्रयोजनार्थ हम अपनी फटफटी पर अर्धविराजमान होकर बनारसी पान मन्दिर के सामने जुगाली करते हुए इस्माईल बजरंगी के ठेले को काफी देर से निहार रहे थे । काफी सभ्रांत दिख रहे एक सज्जन को ठेले पर अकेले काफी देर से कई सुदर्शन चक्र परखने के बाद भी मानसिक संतुष्टि नही मिल पा रही थी । उनके इस उफापोह को समझने और उनके सभ्रांत होने की भ्रांति मिटाने के उद्देश्य से हम भी ठेले के समीप पहुँच गये। सभ्रांत सज्जन हमें अपने समीप पाकर जरा असहज हुए जा रहे थे । उसी वक्त जरा दूर खड़ी कार की खिड़की से एक महिला की आवाज आई – सुनो जी, अगर नही मिल रहा है तो चलो, दूसरी जगह मिल जायेगी ।

पता नही उन्हे महिला का दबाव था या खुद को सभ्रांत दिखाने की असहजता, पर हडबड़ी मे उन्होने भयाक्रांत होकर इस्माईल से धीमे स्वर में पूछा - क्यूँ वो वाली सीडी नही है क्या ?

इस्माईल बोला – कौन सी ? नीली वाली ?  फिर उनसे मौन सहमति पाकर पूछा – इंग्लिश या देशी ?

उसने कहा – नई वाली कुछ है ?

अमूमन मुझे इंग्लिश और देशी के सम्बन्ध मे केवल इतना ही मालूम था कि ये शराब ठेको की दो अलग अलग मान्यता प्राप्त सरकारी किस्मे है । सीडी के बारे में पहली बार सुना ।

इस्माईल ने ठेले के नीचे झोले मे कुछ बगैर लेबल वाली दो कोरी सीडी निकाल कर उन्हे दिया । उन्होने उसे 100 रूपये देकर कहा – प्रिंट तो साफ सुथरी है ना ?

इस्माईल बोला – एकदम साहब , पसन्द न आये तो मुँह पर फेंक कर चले जाना ।

सज्जन के जाने के बाद हमने इस्माईल से पूछा – अबे इस्माईल, तू मुझे दो बात बता ? पहली बात तो ये कि तू पिक्चर वाली सीडी बीस रूपये मे बेचता है और ब्लेंक सीडी 50 रूपये मे और दूसरी ये कि ब्लेंक सीडी मे प्रिंट साफ सुथरी होने का क्या मतलब है ?

 इस्माईल नई कविता का गुमनाम कवि निकला ।
उसने बिल्कुल साम्यवादी कवि सा गंभीर चेहरा बनाकर कवितानुमा ज्ञान पेला

भाई साहब, लगता है शहर मे आप नये आये 
इसलिए ऐसी नासमझी दिखाये 
इन ब्लेंक साफ सुथरी सीडी की बिल्कुल वैसी ही हैं अदायें
जैसे पॉश कालोनी की सम्भ्रांत दिखने वाली अमीरजदा महिलायें 
बाहर से कोरी,  साफ– सुथरी,  जहीन
लेकिन अन्दर मामला एच डी क्वालिटी रंगीन 
दोनो को समझना है तो अपनी हैसियत बढाईये
सीडी को प्लाज्मा टीवी पर और उन्हे अपने फार्म हाऊस मे बुलाईये
रिकार्डेड और लाईव मे फर्क भूल जायेंगे
ऐसा भी हो सकता है
जो टीवी मे दिख रही हो उसे ही अपने बिस्तर पर पायेंगे
बोलिये भाई साहब बालीवुड पिक्चर वाली सीडी चाहेंगे
या आप भी साफ सुथरी प्रिंट वाली ब्लेंक सीडी ही ले जायेंगे



हम उसके कड़वे शास्त्रीय तर्क से घबरा गये और जिस तरह आखिर मे उसने हमे लपेटा उससे कुछ हडबडाते हुए कहा - आपके पास कोई देशभक्ति गीत वाली सीडी हो तो बताना ।

इस्माईल बोला – साहब , अब हमको पक्का यकीन हो गया है । आप शहर मे ही नही इस देश मे ही नये आये हो । आज 20 फरवरी है, देशभक्ति तो 27 जनवरी को ही आऊटडेटेड हो गई । उसकी डिमाण्ड अब अगस्त के दूसरे सफ्ताह मे आयेगी । हाँ अगर आपको सही मे देशभक्ति के गीत वाली सीडी चाहिए तो देखता हूँ यदि स्क्रेप मटेरियल मे मिल गया तो कल मुफ्त मे ले जाना । लेकिन देशभक्ति ज्यादा ही उछाल मार रही हो तो नेट से डॉऊनलोड कर लेना ।

फिर उसने तंज किया - साहब यहाँ देशभक्ति हॉलिडे है, लाईफस्टाईल नही।

तभी एक कूल डूड  अपनी बाईक का गला दबाते हुए जबरिया रूका और लगभग चिल्लाकर कहा – हल्ल्लो अंकल, हनी सिंग का कोई लेटेस्ट रिलीज है क्या ?

इस्माईल ने अपने सर को क्षैतिज के समानांतर हिलाते हुए जवाब दिया और मेरी ओर देखकर कहा – चार बोतल वोदका , काम इनका रोज का ।

हमने कहा – इस्माईल भाई , इसमे इनकी कोई गलती नही है । दरअसल ये पैदा नही किये गये । इनके माँ-बाप तुम्हारी ये साफसुथरी वाली ब्लेंक सीडी देखकर इंज्वाय कर रहे थे और ये गैरइरादतन जबरिया ही बीच मे टपक पडे ।

बडे बुजुर्ग यूँ ही नहीं कह गये है - सावधानी हटी – दुर्घटना घटी 

बुधवार, 28 जनवरी 2015

बिन बुलाया मेहमान



अपनी ही मूर्खता के कारण अग्रिम व्यवस्था न होने के कारण ग़णतंत्र दिवस की सोमवारीय सुरामयी संध्या के जबरिया मंगलवारीय व्रत  बनने से क्षुब्ध देर रात टीवी पर ओबामा मामा की हरकतो को मजबूरी मे निहारते हुए हम लक्ष्मी वाहन की तरह जाग रहे थे और भोला शंकर हमारे मानसिक जख्मो पर बडे प्यार से ऐसे नमक लगा रहा था जैसे गाँधी जी ने 1930 मे इर्विन को लगाया था ।  

गणतंत्र दिवस पर "खरीदी बिक्री पर पाबंदी है, आत्मसात करने में नहीं "  इस संवैधानिक व्यवस्था में आस्था रखने वाले गण-मान्य नागरिक, भविष्य की विषम परिस्थितियों को पूर्व से भाँपकर सूखा संकट से निपटने की उचित व्यवस्था करने में विशेष योग्यता रखते हैं ।

ऐसे ही विशेष समुदाय के एक सज्जन को उनके ही सहधर्मियो देर रात हाईवे ढाबे से हैप्पी बर्थडे ऑफ रिपब्लिक इंडिया का बाकायदा जश्न मनाकर चतुष्चक्र वाहन से उनके घर के सबसे करीब वाले चौराहे पर किसी तरह सकुशल धरावतरण करवा दिया । नगर निगम द्वारा शहर की तंग गलियों को अतिक्रमण से बचाने के उद्देश्य से बनी नालियों मे खुद को आत्मसात होने से बचाते हुए वे अपने निजी पैरो के माध्यम से आटो पायलेट मोड मे बडी बारीकी से सड़क की चौड़ाई मापते हुए घर की ओर चले आ रहे थे ।


रात के सन्नाटे को चीरती हुई अपनी चाल से तालमेल बिठाती हुई उनकी लरजती आवाज के माध्यम से एक मधुर गीत हमारे कानों के भीतर किसी बांग्लादेशी घुसपैठिए की तरह चली आ रही थी ।

मेरे चन्दा
, मेरे अनमोल रतन 
तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूँ

हमने भोला शंकर को पूछा – अबे भोला , जरा खिडकी से झाँक कर तो देख , ये आधी रात को कौन कमबख्त लहराते हुए गाना गा रहा है ?

भोला ने बिना देखे ही तपाक से जवाब दिया – महाराज गाने के बोल और आवाज की मदहोशी से तो कोई आम आदमी ही लगता है ।

हमने कहा – वो कैसे ?

भोला बोला - क्योकि महाराज , इतनी रात को नशे मे भी चन्दे की बात तो कोई झाड़ू छाप आदमी ही कर सकता है ।

हम खुद ही खिडकी से झाँककर देखे तो मोफलर चाचा निकले । हमने पूछा- क्यूँ चचा , आज गणतंत्र दिवस मे नहीं गये का ?

चचा बिफरकर बोले – हमको तो किसी ने बुलाया ही नही जी , सब मिले हुए है ।

हमने कहा – अरे तो बिन बुलाये ही चले जाते । किसी का बारात मे थोडे ही धरना देने जाना था । अपने देश का त्यौहार है, खुशी का मौका है , लोकतंत्र किसी कि बपौती थोड़े न है, सबका बराबर का हक है ।


चचा बोले – वो तो ठीक है जी , लेकिन इतनी कड़ी सुरक्षा मे हम बिना पास घुसते कैसे ?  

हमने कहा - अरे चचा , पेपर मे त छापा रहा कि रेड कारपेट मे एक देशी कुकुर भी घुस गया था । उ हिसाब से आप भी आराम से घुस सकते थे । वैसे भी कही भी घुस कर चाटने मे कुकुर से पहिला हक आप-का बनता है ।

चचा बोले – यही तो भ्रष्टाचार है । इस बात पर हम धरना देंगें जी , आंतरिक लोकपाल के कोर्ट में मानहानि का दावा करेंगे ।

हमने पूछा – किसकी मानहानि का दावा करेंगे चचा ?

चचा कुछ कहते इससे पहले ही भोला शंकर बोल पड़ा – कुकुर की, और किसकी ?

हमने पूछा  - कैसे ?

भोला बोला – अरे महाराज , मोफलर चचा के बदले में कुकुर को घुसायेंगे तो उसका मानहानि हुआ कि नई ?