बुधवार, 28 जनवरी 2015

बिन बुलाया मेहमान



अपनी ही मूर्खता के कारण अग्रिम व्यवस्था न होने के कारण ग़णतंत्र दिवस की सोमवारीय सुरामयी संध्या के जबरिया मंगलवारीय व्रत  बनने से क्षुब्ध देर रात टीवी पर ओबामा मामा की हरकतो को मजबूरी मे निहारते हुए हम लक्ष्मी वाहन की तरह जाग रहे थे और भोला शंकर हमारे मानसिक जख्मो पर बडे प्यार से ऐसे नमक लगा रहा था जैसे गाँधी जी ने 1930 मे इर्विन को लगाया था ।  

गणतंत्र दिवस पर "खरीदी बिक्री पर पाबंदी है, आत्मसात करने में नहीं "  इस संवैधानिक व्यवस्था में आस्था रखने वाले गण-मान्य नागरिक, भविष्य की विषम परिस्थितियों को पूर्व से भाँपकर सूखा संकट से निपटने की उचित व्यवस्था करने में विशेष योग्यता रखते हैं ।

ऐसे ही विशेष समुदाय के एक सज्जन को उनके ही सहधर्मियो देर रात हाईवे ढाबे से हैप्पी बर्थडे ऑफ रिपब्लिक इंडिया का बाकायदा जश्न मनाकर चतुष्चक्र वाहन से उनके घर के सबसे करीब वाले चौराहे पर किसी तरह सकुशल धरावतरण करवा दिया । नगर निगम द्वारा शहर की तंग गलियों को अतिक्रमण से बचाने के उद्देश्य से बनी नालियों मे खुद को आत्मसात होने से बचाते हुए वे अपने निजी पैरो के माध्यम से आटो पायलेट मोड मे बडी बारीकी से सड़क की चौड़ाई मापते हुए घर की ओर चले आ रहे थे ।


रात के सन्नाटे को चीरती हुई अपनी चाल से तालमेल बिठाती हुई उनकी लरजती आवाज के माध्यम से एक मधुर गीत हमारे कानों के भीतर किसी बांग्लादेशी घुसपैठिए की तरह चली आ रही थी ।

मेरे चन्दा
, मेरे अनमोल रतन 
तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूँ

हमने भोला शंकर को पूछा – अबे भोला , जरा खिडकी से झाँक कर तो देख , ये आधी रात को कौन कमबख्त लहराते हुए गाना गा रहा है ?

भोला ने बिना देखे ही तपाक से जवाब दिया – महाराज गाने के बोल और आवाज की मदहोशी से तो कोई आम आदमी ही लगता है ।

हमने कहा – वो कैसे ?

भोला बोला - क्योकि महाराज , इतनी रात को नशे मे भी चन्दे की बात तो कोई झाड़ू छाप आदमी ही कर सकता है ।

हम खुद ही खिडकी से झाँककर देखे तो मोफलर चाचा निकले । हमने पूछा- क्यूँ चचा , आज गणतंत्र दिवस मे नहीं गये का ?

चचा बिफरकर बोले – हमको तो किसी ने बुलाया ही नही जी , सब मिले हुए है ।

हमने कहा – अरे तो बिन बुलाये ही चले जाते । किसी का बारात मे थोडे ही धरना देने जाना था । अपने देश का त्यौहार है, खुशी का मौका है , लोकतंत्र किसी कि बपौती थोड़े न है, सबका बराबर का हक है ।


चचा बोले – वो तो ठीक है जी , लेकिन इतनी कड़ी सुरक्षा मे हम बिना पास घुसते कैसे ?  

हमने कहा - अरे चचा , पेपर मे त छापा रहा कि रेड कारपेट मे एक देशी कुकुर भी घुस गया था । उ हिसाब से आप भी आराम से घुस सकते थे । वैसे भी कही भी घुस कर चाटने मे कुकुर से पहिला हक आप-का बनता है ।

चचा बोले – यही तो भ्रष्टाचार है । इस बात पर हम धरना देंगें जी , आंतरिक लोकपाल के कोर्ट में मानहानि का दावा करेंगे ।

हमने पूछा – किसकी मानहानि का दावा करेंगे चचा ?

चचा कुछ कहते इससे पहले ही भोला शंकर बोल पड़ा – कुकुर की, और किसकी ?

हमने पूछा  - कैसे ?

भोला बोला – अरे महाराज , मोफलर चचा के बदले में कुकुर को घुसायेंगे तो उसका मानहानि हुआ कि नई ?